इतिहास-
वर्ष 1995 में चीन, बीजिंग में विश्व महिला सम्मेलन आयोजित किया गया. इसके घोषणा पत्र में पहली बार सभी देशों की सरकारों से बालिकाओं की सुरक्षा और अधिकारों के लिए आह्वान किया गया.
विशेषज्ञों का मानना है कि बालिका दिवस की शुरूआत कनाडा में प्लान इंटरनेशनल के रूप में हुई. वहां सर्वप्रथम इसे एक एनजीओ ने संचालित किया था. 19 दिसंबर, 2011 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 अक्टूबर को बालिकाओं के स्वास्थ्य-शिक्षा की चुनौतियों से निपटने और वैश्विक स्तर पर लोगों को जागरूक करने के लिए ‘इंटरनेशनल डे ऑफ द् गर्ल चाइल्ड’ प्रतिवर्ष मनाने का संकल्प लिया था.
यूएनजीए के प्रस्ताव 66/170 में उल्लिखित है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना अनिवार्य है. इसके अलावा हमारे देश में हर साल राष्ट्रीय बालिका दिवस भी 24 जनवरी को मनाया जाता है.
महत्व-
यह दिन पूरी दुनिया में बालिकाओं की शक्ति और क्षमताओं के जश्न के रूप में मनाया जाता है. इसके साथ ही विश्व को लैंगिक समानता हासिल करने और बालिकाओं को सशक्त बनाने पर प्रकाश डालता है.
यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट की मानें तो कोविड-19 के बाद आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों के सामने एक करोड़ से ज्यादा लड़कियों के बाल विवाह का जोखिम है. प्राथमिक और उच्चतर विद्यालयों में महिला शौचालयों की कमी है. लड़कों के मुकाबले 72% लड़कियां यौन शोषण का शिकार होती हैं. वर्ल्ड इंटरनेट यूजर्स की रिपोर्ट में उपयोगकर्ताओं के लिंगांतर 2013 में 11% से बढकर अब 2022 तक 21% तक पहुंच गया है. वहीं कुछ विकासशील देशों में इंटरनेट यूजर्स लिंगातर 50% से अधिक पहुंच चुका है.
भारत सरकार ने बालिकाओं की शिक्षा-सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए वर्ष 2015 में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना शुरू की थी. इसका उद्देश्य देश में गिरते लिंगानुपात के मुद्दे पर लोगों को जागरूक करना था. देश के सभी क्षेत्रों में इस योजना का कार्यान्वयन महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, मानव संसाधन और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है.
उद्देश्य-
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का प्रमुख उद्देश्य किशोरियों की सुरक्षा, उनके मानवाधिकारों और सशक्तिकरण पर लोगों का ध्यान केंद्रित करता है. बालिकाओं को ना केवल अपने प्रारंभिक वर्षों में बल्कि महिलाओं के रूप में परिपक्व होने के दौरान भी सुरक्षित, शिक्षित और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है.
यदि बालिकाओं को उनके प्रारंभिक वर्षों में परिवार और समाज समर्थन करे तो वे कल की उद्यमी, वैज्ञानिक या रोजगार कुशल बन सकती हैं. परिवार और समाज का बालिकाओं के लिए यह समर्थन एक समृद्ध भविष्य का वादा करता है. महिलाएं जलवायु परिवर्तन, राजनीतिक संघर्ष, आर्थिक संघर्ष और बीमारियों की रोकथाम जैसे गंभीर वैश्विक मुद्दो में सहभागिता कर रही हैं. लेकिन महिलाओं का अनुपात पुरुषों के तुलना में बहुत कम है.
आज बालिकाओं को उनके अधिकारों, सुरक्षा और बराबरी के लिए जागरुक करना है. ताकि वे भविष्य में आने वाली चुनौतियों का डटकर सामना कर सकें. यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लिंगाधारित पर वैश्विक चुनौतियों का समाप्त करता है, जिसका सामना दुनिया भर में लड़कियां कर रही हैं. इसमें बाल विवाह, शिक्षा, भ्रूण हत्या, भेदभाव और घरेलू हिंसा शामिल है.
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