क्या है महिला आरक्षण का इतिहास
भारतीय संसद में बीते कुछ सालों से महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है लेकिन फिर भी यह उतना नहीं है जितना हम उम्मीद कर रहे है। एक 2016 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में महिलाओं की की कुल आबादी तकरीबन 48 फीसद है लेकिन फिर भी उनको संसद और विधानसभाओं में 15 प्रतिशत भी स्थान नहीं है। बता दें कि सबसे पहले लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण वाला विधेयक 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा की सरकार में संसद के निचले सदन लोकसभा में पेश किया था। उसके बाद यह विधेयक 1998, 1999, 2002 में पेश हुआ। अगर महिला आरक्षण बिल की बात करें तो यह यूपीए की सरकार के दौरान 2010 में राज्यसभा से पास हो गया लेकिन लोकसभा से यह हमेशा ही लटका रहा है। कांग्रेस की सरकार ने इसे राज्यसभा में पारित तो करवा दिया था लेकिन लोकसभा में उस समय समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के क्षेत्रीय विरोध के चलते इस बिल को पास नहीं करवाया जा सका था।
अब अगली लोकसभा का इंतजार
अब अप्रैल मई में लोकसभा के चुनाव होने है। जल्द ही 17 वीं लोकसभा के चुनाव हेतु चुनाव तारीखों का ऐलान होने वाला है। लंबे समय से इस विधेयक के पारित होने का इंतजार किया जा रहा है इसीलिए अब सभी महिलाओं की नजर आने वाली नई लोकसभा पर टिकी हुई है। वर्तमान में केंद्र में मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार है उम्मीद थी कि महिला आरक्षण बिल पास होगा लेकिन आलम यह है कि इसे पास करवाना तो दूर कि बात संसद में इस बिल पर चर्चा तक नहीं हो पाई है। अब इस बात का फैसला नई लोकसभा ही करेगी।
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