आमतौर पर लोग रंगों की होली खेलते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन में होली कुछ अलग तरह से खेली जाती है. यहां पर होली अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है. दरअसल भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम के प्रतीक बरसाने में होली 8 दिन पहले ही शुरू हो जाती है. होली के रंग में रंगने के लिए दूर-दराज से लाखों की संख्या में श्रृद्धालु बरसाना पहुंचते है. कान्हा की नगरी में होली मानने का रिवाज़ अलग ही होता है. इसी तरह का अलग रिवाज विधवाओं के लिए शुरू हुआ है.
यह है परंपरा
दरअसल देश में विधवाओं ने हमेशा से ही एक कठिन वक्त देखा है. ज्यादातर विधवाओं को उनके घर परिवार से निकाल दिया जाता था और अलग जीवन जीने को मजबूर किया जाता था. विधवा होने के बाद वह हमेशा से ही वाराणसी और वृंदावन के आश्रम में रहने के लिए मजबूर हो जाती है. विधवा हो जाने के बाद वह हमेशा ही सफेद वस्त्र पहनती थी और वह कभी भी रंगों की होली नहीं खेलती थी.
लेकिन कुछ साल पहले ही वृंदावन में पागल बाबा विधवा आश्रम की विधवाओं ने इस परंपरा को तोड़ते हुए रंगो से खेलना शुरू कर दिया है. इस उत्सव को हर साल वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में मनाया जाता है. इसमें सभी नगर की विधवाएं शामिल होती हैं और साथ में होली का उत्सव मनाती हैं. यह होली फूलों और रंगों से खेली जाती है.
पहले ऐसी हुई थी होली
इस होली कार्यक्रम में 1200 किलोग्राम गुलाल तथा 1500 किलोग्राम गुलाब व गेंदें के फूल की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है. यहां पर सफेद साड़ी पहन कर विधवा एक-दूसरे पर रंग उड़ाती हैं. देश के कुछ क्षेत्रों में आज भी विधवा महिलाओं को होली खेलने से दूर रखा जाता है. होली इस कुप्रथा को दूर करने में मदद करती है.
इससे उम्मीद जताई जाती है कि यह होली वृंदावन और वाराणसी की विधवाओं के जीवन में नए रंग भरने के साथ ही वृंदावन में विदेशी पर्यटकों को आने के लिए भी प्रेरित करेगी.
काफी होती है मथुरा में भीड़
इस दिन मथुरा और वृंदावन में बहुत भीड़ होती है. बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं. बेहतर होगा कि खाने का कुछ सामान पहले ही खरीदकर अपने साथ रख लिया जाए. क्योंकि त्योहार के बाद एक तरफ जहां आपको बहुत भूख लग रही होगी, वहीं हर जगह भीड़ के कारण खाना मिलने में वक्त लगेगा.
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