खरीफ फसल में धान की कटाई के बाद खेत में बची हुई पराली को ही पुआल कहा जाता है. देश के ज्यादातर किसान भाई पराली को बड़ी मात्रा में जलाते हैं, जिससे ना सिर्फ वातावरण प्रदूषित होता है बल्कि मृदा की उर्वरक क्षमता भी कम होती चली जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसान धान के पुआल को ना जलाते हुए उससे पैसे भी कमा सकते हैं.
एक तो पर्यावरण प्रदूषित होने से बचेगा और दूसरा किसानों की आय में भी वृद्धि होगी. तो आइए जानते हैं कि पुआल के इस्तेमाल का सही तरीका क्या है और इसे किसानों को कैसे फायदा मिलेगा.
पुआल का उपयोग (use of straw)
आपको बता दें कि पुआल का उपयोग परंपरागत तौर पर मवेशियों के चारे से लेकर बिछावन बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा फूस का छप्पर भी बनाया जाता है. देखा जाए तो पुआल बिजली उत्पादन, कागज निर्माण और फाइबर बोर्ड आदि कई बेहतरीन कार्य में इसका इस्तेमाल किया जाता है. आज के समय में नई तकनीकों की मदद से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के छात्रों ने पुआल से कप और प्लेट का भी निर्माण किया है. पुआल से किसान बेहतर किस्म की कंपोस्ट खाद को भी तैयार कर सकते हैं.
लेकिन आज के इस आधुनिक समय में किसानों के पास इतना समय नहीं होता है कि वह खेत में पुआल को लंबे समय तक छोड़ सकें. ताकि बाद में खेत की अच्छे से जुताई कर उसे मिट्टी में मिला दिया जाए. बल्कि किसान इन्हें जलाना सही समझते हैं. जो गलत है. किसानों का यह भी कहना है कि आर्थिक हालात ऐसे नहीं हैं कि पुआल को समुचित उपयोग में ला सकें.
पराली को लेकर सरकार की मदद (Government help for straw)
पुआल को बॉयोमास बिजली उत्पादकों, फाइबर बोर्ड निर्माताओं, पेपर मिल और पशु चारे के लिए सरकार को भी आगे आ कर इनकी मदद करने की जरुरत है. ताकि किसान भाई जो पराली को जलाना ही एक मात्र विकल्प समझते हैं वो इनका बेहतर इस्तेमाल कर सकें और साथ ही पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकें.
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सरकार को पुआल के समुचित तकनीक के विकास व अन्य साधनों की तुलना में सस्ता बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए. देश में कच्चे माल के तौर पर पुआल के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए. इसके लिए किसानों को जागरूक भी किया जाना चाहिए.
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