समझ जाओगे किसान का दर्द,
एक बार खेतों में हल चलाकर तो देखो
किसी जमीन के टुकड़े में,
कभी अनाज उगाकर तो देखो
कभी जून की धूप में तो कभी दिसंबर की जाड़ में,
एक बार खेतों में जाकर तो देखो
भूखे प्यासे खेतों पर,
एक बार हल चलाकर तो देखो
कभी दोपहर के दो बजे तो कभी रात के तीन बजे,
एक बार सिंचाई के लिए मोटर चलाकर तो देखो
कंधों पर 15-15 लीटर की टंकियां लिए,
एक बार खेतों में स्प्रेयर चलाकर तो देखो
कभी मौसम की मार से,
तो कभी नकली बीज, खाद और दवाईयों के व्यापार से
कभी बीमारी, कीड़ों के वार से,
अपनी फसल लुटाकर तो देखो
समझ जाओगे किसानों का दर्द,
एक बार खेतों में हल चलाकर तो देखो
अगर यह सब कर भी लिया तो,
लागत से कम में फसल बिकवाकर तो देखो
कभी बाजार में मांग ना होने पर,
सड़कों पर अपनी फसल फिंकवाकर तो देखो
पापा ! मेरी गुड़िया कब लाओगे ?
बिलखती बच्ची को अगली फसल में लाने के झूठे सपने दिलाकर तो देखो
पूरी दुनिया को खाना खिलाकर,
अपने परिवार को भूखा रखवाकर तो देखो
नहीं मांगता खैरात में किसी से कुछ,
एक बार मेरे मेहनत का फल दिलाकर तो देखो
'सोने की चिड़िया' फिर से बन जायेगा भारत,
एक बार किसान को उसका हक़ दिलाकर तो देखो
निखिल तिवारी
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