आपने कई तरह की मिठाइयों को खाया होगा. निश्चित ही गर्मियों के दिनों में आपने पेठा भी खाया ही होगा, लेकिन आगरा का पेठा थोड़ा सबसे अलग है. आगरा में मिलने वाला पेठा कई फ्लेवर में यहां मिलता है. इतना ही नहीं यहां पेठे के कई रंग होते हैं. स्वाद तो पूछिए मत. यहां के पेठे का स्वाद काफी ही अनोखा है. तभी तो आगरा का पेठा पूरे विश्व में काफी प्रसिद्ध है. आगरा एक पर्यटन स्थल होने के साथ-साथ यहां आए पर्यटकों के यहां का पेठा खरीदने और घर ले जाने का एक अलग ही उत्साह रहता है. वहीं, यहां के पेठे को GI tag भी मिल चुका है. साथ ही साथ इस मिठाई की पहचान वैश्विक स्तर तक पहुंच चुकी है. ऐसे में आइए जानते हैं आगरा के पेठे के बारे में बिस्तार से-
आगरा के पेठे के बारे में मान्यता
गर्मियों के दिनों में गांवों में पानी पिने के लिए लोग गुड़, बतासे व पेठे का ही उपयोग करते हैं. कोई घर पर मेहमान आ जाए तो उनको रुखा पानी नहीं दिया जाता है. पानी के साथ कुछ मीठा देने की एक सभ्यता शुरु से ही रही है. कहीं- कहीं पेठे को मोरब्बा भी कहते हैं. पेठे के लेकर एक मान्यता ये भी है कि यह मिठाई महाभारत काल से अस्तित्व में है. महाभारत काल में पेठे का उपयोग एक औषधि के रुप में किया जाता था. सदियों से अम्लावित्त, रक्तविकार, वात प्रकोप, दिल की समस्या, स्त्री रोग और अन्य बीमारियों में इसका उपयोग किया जाता रहा है.
वहीं पेठा मुख्यरूप से कुम्हड़ा नाम के फल से बनाया जाता है. औषधिय गुणों से परिपूर्ण होने की वजह से इसे संस्कृत में कूष्मांड नाम से अनेकों चिकित्सीय विधि में प्रयोग करते हैं.
अनेकों गुण से भरा हुआ है पेठा
पेठा स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है. पेठे में गर्मियों में खाने से प्यास कम लगती है, क्योंकि इसमें पानी की मात्रा ज्यादा होता है. साथ ही साथ ये हल्का मिठा होने की वजह से गर्मियों में थकान, कमजोरी नहीं होने देता. साथ ही साथ यह कम वसा वाला और फाइबरयुक्त होता है.
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आगरा के पेठा का ताजमहल से है कनेक्शन
ऐसी मान्यता है कि आगरा में मुगलों के पास काफी संख्या में सैनिक थे. सबके लिए खाने बनाते थे औऱ हर इंसान की एक फितरत होती है खाना खाने के बाद कुछ मिठा खाने की. उस वक्त मुगल अपने सैनिकों को मिठाई के रुप में पेठा ही दिया करते थे. ताजमहल के निर्माण में करीब 22,000 कारीगर कार्यरत थे. हर रोज कारीगरों के लिए पेठे का इंतजाम किया जाता था. काम करते-करते अगर प्यास लगी तो कारीगर पेठा खाकर ही अपनी प्यास बुझाते थे.
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