भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में अंगूर की बागवानी की जा सकती है. यह फल बहुत स्वादिष्ट होता है, साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभकारी होता है. इस कारण अंगूर की बागवानी की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. अगर उत्पादन के आधार पर देखा जाए, तो इसके उत्पादन में दक्षिण में कर्नाटक, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु मुख्य राज्य हैं, तो वहीं उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली राज्य मुख्य हैं.
अगर उत्पादन के आधार पर देखा जाए, तो इसके उत्पादन में दक्षिण में कर्नाटक, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु मुख्य राज्य हैं, तो वहीं उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली राज्य मुख्य हैं.इसकी खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु की जरूरत होती है. ज्यादातर किसान खेती में ड्रिप इरीगेशन का इस्तेमाल करते हैं.
किसान भाई ध्यान दें कि जितना जरूरी अंगूर की उन्नत किस्म (Improved Grapes Variety), सिंचाई, खेती की तैयारी समेत अन्य प्रबंध पर देते हैं, उतना ही ध्यान अंगूर में लगने वाले रोगों पर देना चाहिए. आज हम अंगूर में लगने वाले रोग और उनके रोकथाम की जानकारी देने वाले हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़िए.
एंथ्रेक्नोज रोग (Anthracnose Disease)
अंगूर में लगने वाला यह मुख्य रोग है, जो मुख्य रूप से पत्तियों और नयी कलियों पर हमला करता है. यह पत्तियों में छोटे छेद बना देता है और पत्ती क्षेत्र को कम कर देता है.
पाउडरी फफूंदी रोग (Powdery mildew Disease)
यह सबसे अधिक विनाशकारी रोग है. वहीं ताजा अंगूरों के निर्यात की दृष्टि से यह अधिक महत्वपूर्ण है. संक्रमित बेरियों की पत्तियां पर धब्बे पड़ जाते हैं और उन्हें विकृत कर देते हैं. यह रोग गर्म और शुष्क परिस्थितियों में पैदा होता हैं. इस रोग की पहचान पत्तियो, कलियों और अपरिपक्व बेरियों के दोनों तरफ के पैचों में सफेद पाउडरी की कोटिंग की उपस्थिति है.
रतुआ रोग (Rust disease)
इस रोग के प्रकोप से पत्तों पर पीले रंग के छोटे-छोटे धब्बे कतारों में बन जाते हैं. कभी-कभी ये धब्बे पत्तियों के डंठलों पर भी पाए जाते हैं.
रोगों की रोकथाम (Prevention of diseases)
इस रोग की रोकथाम के हेक्सास्टॉप का प्रयोग कर सकते हैं. यह रोगों को नियंत्रित करने और उनका उपचार करने में बहुत सहायक है. इसके अलावा पौधों में फुफंदी की बीमारियों को नियंत्रित करने में भी काफी प्रभावी है. यह मानव, पक्षी व स्तनधारी तीनों जीवों के लिए सुरक्षित है. हेक्सास्टॉ की अधिक जानकारी के लिए https://hindi.krishijagran.com/coromandel/hexastop.html पर विजिट करें.
हेक्सास्टॉप रोग की मुख्य विशेषताएं (Key Features of Hexastop Disease)
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यह कई रोगों को नियंत्रितन करता है.
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यह फफूंदनाशक जाइलेम द्वारा पौधे में संचारित होता है.
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इसका उपयोग बीज उपचार, पौधे में स्प्रे और जड़ो की ड्रेंचिंग में किया जाता है.
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यह सल्फर परमाणु के कारण फाइटोटॉनिक प्रभाव (हरेभरे पौधे) दिखाता है.
हेक्सास्टॉप की उपलब्धता (Availability of Hexastop)
हेक्सास्टॉप की बाज़ार में उपलब्धता 6 वर्गों के मात्रा में जैसे- 50g, 100 g, 250 g, 500g, 1 kg और 5 kg के पैकेट में है.
हेक्सास्टॉप की मात्रा (Dosage of Hexastop)
अंगूर में एंथ्रेक्नोज रोग की रोकथाम के लिए हेक्सास्टॉप की 300 ग्राम/एकड़ मात्रा प्रयोग करना चाहिए.
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