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मत्स्य विशेषज्ञों के इस सलाह पर करेंगे अमल तो वर्षा काल में नहीं मरेंगी मछलियां

पश्चिम बंगाल में मछली पालन करने वाले किसानों को वर्षा काल में विशेष रूप से सतर्क रहने की हिदायत दी गई है. इसलिए कि वर्षा ऋतु में मछलियों में विभिन्न तरह के रोग देखने को मिलते हैं. रोग की चपेट में आकर मछलियां मरने लगती हैं और पूरा तालाब दूषित हो जाता है. तालाब दूषित हो जाने के बाद मछलियों को बचाना मुश्किल हो जाता है. अक्सर वर्षा काल में बाहर से गंदा पानी मत्स्य पालन केंद्रों में घुस जाता है. बाहर से गंदा पानी प्रवेश करने के बाद तालाब के पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है.

अनवर हुसैन
अनवर हुसैन

पश्चिम बंगाल में मछली पालन करने वाले किसानों को वर्षा काल में विशेष रूप से सतर्क रहने की हिदायत दी गई है. इसलिए कि वर्षा ऋतु में मछलियों में विभिन्न तरह के रोग देखने को मिलते हैं. रोग की चपेट में आकर मछलियां मरने लगती हैं और पूरा तालाब दूषित हो जाता है. तालाब दूषित हो जाने के बाद मछलियों को बचाना मुश्किल हो जाता है. अक्सर वर्षा काल में बाहर से गंदा पानी मत्स्य पालन केंद्रों में घुस जाता है. बाहर से गंदा पानी प्रवेश करने के बाद तालाब के पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है.

मत्स्य विशेषज्ञों के मुताबिक तालाब के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घटने पर मछलियां मरने लगती है. मछलियों के शरीर में इस समय फुलका रोग देखने को मिलते है. मछलियों के शरीर पर पहले लाल फोड़ा देखने को मिलता है और उसके बाद वह फट जाता है. अधिक मछलियों के फुलका रोग की चपेट में आने के बाद पूरा तालाब प्रदूषित हो जाता है. तालाब के पानी का स्तर पीएच 7 से नीचे आने के बाद मछलियों के लिए खतरा पैदा हो जाता है.

प्रशासनिक सूत्रों के पश्चिम बंगाल के मत्स्य विभाग ने मछली पालन करने वाले किसानों को सतर्क रहने और तालाबों की विशेष देखभाल करने का सुझाव दिया है. कृषि विभाग ने भी किसानों को वर्षा काल में तालाब में मछलियों का चारा डालने को लेकर विशेष सावधानी बरतने का परामर्श दिया है. वर्षा काल में तालाबों में मछलियों के चारा छोड़े जाते हैं. मछली पालन शुरू करने के लिए बरसात का समय अच्छा माना जाता है. इस समय मछुआरे और किसान भी मछलियों का चारा तालाब में छोड़ते हैं. लेकिन किसानों को मछली का चारा डालने से पहले तालाब की जांच परख कर लेनी चाहिए.

अगर तालाब पहले से प्रदूषित हो तो उसमें मछली का चारा नहीं डालना चाहिए. तालाब के पानी का स्तर पीएच 7 से नीचे चले जाने का मतलब ऑक्सीजन की भारी कमी मानी जाती है. जिस तालाब के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो उसमें मछली का चारा नहीं डालना चाहिए. ऑक्सीजन की मात्रा कम होने पर तालाब में पल रही मछलियों के लिए भी खतरा पैदा हो जाता है. मत्यस्य विशेषज्ञों के मुताबिक तालाब में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने पर मछलियों को बचाने का वैज्ञानिक उपाय करना होगा. इसके लिए तालाब में प्रति डेसीमल 500 ग्राम चूना में नमक मिलाकर तालाब में डालना होगा. तालाब में जैविक खाद डालकर भी मछलियों को फुलका रोग से बचाया जा सकता है.

अक्सर देखा जाता है कि बरसात के समय मछलियां रोग की चपेट में आकर मरने लगती हैं और पानी की उपरी सतह पर निर्जिव दिखने लगती हैं. ऐसी स्थिति में मछली पालन करने वाले किसानों को धैर्य से काम लेना चाहिए. तुरंत तालाब में नमक के साथ चूना मिलाकर डालना चाहिए. ऐसी स्थिति में जैविक खाद डालना भी अच्छा होता है. इससे तालाब में प्रदूषण कम होता है औ ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने के बाद मछलियां भी स्वस्थ हो जाती है. विशेषज्ञों ने बरसात के समय मत्स्य पालन केंद्रों पर हमेशा नजर रखने और विशेष रूप से उसकी देखभाल करने की सलाह दी है ताकि बाहर का गंदा पानी अंदर प्रवेश नहीं कर सके.

ये खबर भी पढ़े:मानसून 2020: हिलसा मछली पकड़ने समुद्र में कूद पड़े बंगाल के मछुआरे

English Summary: If fisheries experts follow this advice, fishes will not die in the rainy season Published on: 23 July 2020, 07:31 IST

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