बिहार के गया में किसानों के पास कम जमीन है. इसीलिए अब वहां पर बायोफ्लॉक के माध्यम से मछलीपालन करके लाखों रूपए की आमदनी आसानी से हो सकती है. दरअसल यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें कम जगह में ही ज्यादा मछली का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है. यहां पर शेरघाटी के हमजापुर में इस तकनीक से मछली का उत्पादन आसानी से किया जा रहा है. यहां पर आईपीसीएल के महाप्रंबधक इंजीनियर आलोक ने अपनी जॉब करते हुए डेढ़ एकड़ जमीन में तालाब खोदकर मछलीपालन शुरू किया है साथ ही वह आसनसोल के रघुनाथपुर में भी बायोफ्लॉक के जरिए मछलीपालन का कार्य किया जा रहा है. वह कहते है कि गांव के युवा अपने सपने को सच कर सकते है. नई तकनीक के सहारे मछलीपालन और कृषि से बेहतर मुनाफा कमाया जा सकता है .
तिलाफिया मछली का उत्पादन हो सकता
वर्तमान में आज बायोफ्लॉक तकनीक के सहारे सिंघिल और तिलाफिया मछली का उत्पादन किया जा सकता है. जल्द ही आने वाले दिनों में फंगेसियस, मांगूर, पाबड़ा, कतला आदि मछलीपालन का कार्य शुरू करेंगे. वह बताते है कि बायोफ्लॉक के सहारे छोटी सी जगह पर मछलीपालन का कार्य किया जाता है. जबकि पारंपरिक तरीके से इसके लिए काफी जमीन की जरूरत पड़ती है. उन्होंने बताया कि बायोफ्लॉक से मछली उत्पादन के लिए टैंक की जरूरत भी होती है, यहां पर चार मीटर रेंज के टैंक में पांच क्विंटल मछली उत्पादन किया जा सकता है. एक बार इसमें बीज डाल देने के बाद यदि ठीक ढंग से काम किया जाए तो चार से पांच महीने में ही मछली बिक्री के लिए तैयार हो जाती है.
क्या है बायोफ्लॉक सिस्टम
पशुओं के उत्पादन पर पर्यावरण नियंत्रण में सुधार के लिए बायोफ्लॉक प्रणाली को विकसित किया गया है. जलीय जानवरों के उच्च संग्रहण घनत्व और उनके ठीक से पालन के लिए अपशिष्ट जल उपचार की आवश्यकता होती है, बायोफ्लॉक सिस्टम बेहतरीन अपशिष्ट उपचार है जिसको एक्वाकल्चर में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके माध्यम से नाइट्रोजन अपशिष्ट को आत्मसात करता है.
मछली पालन लाभदायक
बायोफ्लॉक के सहारे मछली पालन करने से काफी लाभ होगा. लेकिन दक्षिण बिहार के न के बराबर होता है. वही उत्तर बिहार के कुछ जिलों में यह किसानों ने शुरू किया है. वही पश्चिम बंगाल ने तो बड़े पैमाने पर बायोफ्लॉक के सहारे मछली उत्पादन किया जा रहा है, यहां पर ज्यादातर लोग मछली खाना पसंद करते है.
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