भारत का कृषि क्षेत्र काफी तेज़ी से आगे बढ़ता नजर आ रहा है. इस ओर भारत का बढ़ता हर कदम नई ऊंचाई पर लेकर जा रहा है. इसी कड़ी में आज हम आपको ऐसी खेती के बारे में बताएँगे, जिसमें एक बार पौधा रोपने के बाद सीधे आप उसकी हार्वेस्टिंग यानि कटाई कर सकते हैं, क्योंकि बाकी का पूरा काम वहां लगे सेंसर ही करते हैं.
मजेदार बात ये है कि ये मुंबई के घाटकोपर इलाके (Ghatkopar) में एक कमर्शियल बिल्डिंग के मात्र 300 स्क्वायर फुट (Square Foot) के इलाके में हो रहा है, जहां करीब 3,500 पौधे लगाए गए हैं.
मुंबई के बंद कमरों में हो रही खेती
मुंबई में बढ़ती जनसंख्या और खेती की जमीन जिस तरह से कम होती जा रही है, वो किसानों के लिए समास्या का कारण बनती जा रही है. ऐसे में हर्षिल शाह बताते हैं कि मुंबई जैसे शहर में खेती मुमकिन नहीं है, इसलिए नई खेती की शुरुआत की. जैसे कुछ देशों में वर्टिकल खेती (Vertical farming) की जाती है, तो हमने सेंसर बेस्ड टेक्नोलॉजी (sensor based technology) का इस्तेमाल करके खेती शुरू की.
जानें क्या और कैसे होती है सेंसर बेस्ड खेती
उन्होंने बताया कि वर्टिकल खेती बहुत से लोग करते हैं, लेकिन हम इस खेती को पूरी तरह ऑटोमेशन (automation) पर ले गए हैं. अब हम आपको बताते हैं कि ये सेंसर बेस्ड खेती होती कैसे होती है? तो इसके तीन सबसे जरूरी पहलू हैं. पहला रोशनी, दूसरा पानी और तीसरा न्यूट्रियन्स है.
अब मिट्टी के बिना उगेंगे पौधे!
लोगों को गलतफहमी है कि मिट्टी के बिना पौधे उग ही नहीं सकते हैं. वहीँ कई लोग पर्याप्त मिट्टी होने के बावजूद भी मिट्टी की उर्वरक क्षमता को दोष देते हैं, जबकि यहां 300 स्क्वायर फुट के एरिया में करीब 3,500 पौधे बिना मिट्टी के उगाए जा रहे हैं. ऐसे में आज हम जानेंगे कि किस तरह से इन पौधों में पानी दिया जाता है? बता दें कि जिन रैक्स में पौधों को लगाया जाता है, उन्हें चैनल कहा जाता है. इन चैनल्स को ट्यूब्स के माध्यम से पानी के टैंक से जोड़ा गया है. इन ट्यूब्स से सेंसर और टाइमर के जरिए हर 15 मिनट में चैनल्स में पानी जाता है.
अगर चैनल्स में जरूरत से ज्यादा पानी आ भी जाता है, तो स्लोप के माध्यम से एक्स्ट्रा पानी ट्यूब्स के जरिए वापस टंकी में चला जाता है. बता दें कि करीब 3,500 पौधों को एक महीने में 1000 लीटर पानी की जरूरत पड़ी है, जबकि भारत में अगर आप जमीन पर सामान्य तरीके से खेती करेंगे, तो आपको सर्दियों में हर दिन 1100 लीटर पानी की जरूरत होगी, और गर्मियों में तो ये ओर भी ज्यादा हो जाएगी.
इस खेती में मिट्टी की जरुरत नहीं!
अब सवाल ये है कि इस खेती के लिए मिट्टी की जरूरत क्यों नही होती है. मिट्टी का काम पानी सोखने और पौधों तक उर्वरक पहुंचाने के लिए किया जाता है. मिट्टी की जगह पर इस खेती में फसल उगाने के लिए नारियल के छिलकों और भूसे का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें कोई न्यूट्रिएंट नहीं होते हैं.
इसका इस्तेमाल सिर्फ इसलिए किया जाता है, ताकि पेड़ की जड़ों (tree roots) को एक सपोर्ट मिल सके. थोड़ा बड़ा होने के बाद पेड़ चैनल्स में एक दूसरे की जड़ों को पकड़ना शुरू कर देते हैं. इसके लिए इस अनोखी खेती में पोटेशियम, फॉस्फोरस, सोडियम, नाइट्रोजन का एक घोल बनाकर एक टंकी में डाल दिया जाता है. इस टंकी को पानी की टंकी से कनेक्ट किया जाता है.
टाइमर के हिसाब से लगाए जाते हैं पंखे
अक्सर हवा का दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर होती है. इस बंद कमरे में भी इसी तरह हवा का ऑटोमेशन किया गया है. टाइमर के हिसाब से अलग-अलग पंखे अलग-अलग टाइम पर चालू होते हैं और बंद हो जाते हैं. जहां तक सवाल बंद कमरे में रोशनी का है, तो इस कमरे में अलग- अलग फसल के हिसाब से अलग-अलग लाइट्स लगाई गई हैं. इसी कमरे में ठंडी जगहों पर उगाई जाने वाली स्ट्रॉबेरी का भी उत्पादन किया गया था, जिसके छोटे से एक पेड़ में 3 किलो स्ट्रॉबेरी उगी थीं.
अब बंद कमरे में उगा सकते हैं कश्मीर की फसल
मुंबई जैसी जगह जहां, तापमान 35 डिग्री तक पहुंच जाता है और हवा में ह्यूमिडिटी भी ज्यादा होती है, ऐसे में इस कमरे में हमेशा 20 डिग्री के तापमान को बनाया रखा जा सके. ये पूरे साल बना रहता है. इस कमरे में आप मुंबई में रहकर कश्मीर की फसल भी उगा सकते हैं. अब यहां पर वनीला को भी उगाया जा रहा है.
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