
Vegetable Production Tips: भारत, जो विश्व में चीन के बाद सबसे बड़ा सब्जी उत्पादक देश है, अपनी कृषि परंपराओं और तकनीकी विकास के माध्यम से सब्जी उत्पादन में अग्रणी बना हुआ है. हालांकि, बढ़ते उत्पादन के साथ, किसानों के सामने कई चुनौतियाँ भी आती हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख कीट और बीमारियों का नियंत्रण है. ऐसे में किसानों के लिए सब्जियों का सही उत्पादन और उनकी रक्षा के उपाय जानना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. आइए जानते हैं कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में, जो किसान सब्जी उत्पादन के दौरान ध्यान में रख सकते हैं.
1. सब्जियों को सही समय पर तोड़ना
सब्जियों को उनके उपयोग और बाजार से दूरी के अनुसार सही समय पर तोड़ना चाहिए. जल्दी खराब होने वाली सब्जियों को थोड़ी कच्ची अवस्था में तोड़ना चाहिए ताकि वे ज्यादा समय तक ताजगी बनाए रख सकें. वहीं, नजदीकी बाजारों के लिए सब्जियों को शाम के समय तोड़ना फायदेमंद होता है, क्योंकि रात में उनका भंडारण और परिवहन अधिक सुरक्षित रहता है.
2. कद्दू जाति की सब्जियां
कद्दू जाति की सब्जियों को खेत में नालियां बनाकर लगाना चाहिए. इससे सिंचाई, निराई-गुड़ाई में आसानी होती है और पानी तथा खाद की खपत कम होती है. इसके अलावा, सूखी भूमि पर इनका फल कम सड़ता है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है.
3. टमाटर की खेती में विशेष ध्यान
टमाटर के पौधों को मेढ़ो पर न लगाएं, क्योंकि इससे फल सड़ सकते हैं. फलों के सड़ने से बचने के लिए, जल्दी-जल्दी सिंचाई करनी चाहिए और फसल में नाइट्रोजन की अधिकता से बचना चाहिए.
4. गाजर, मूली और शलगम की खेती
गाजर, मूली, शलगम और चुकंदर को चिकनी मिट्टी में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इससे इनकी जड़ें फटने लगती हैं. इन फसलों में दो-तीन बार मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है, ताकि जड़ें अच्छी तरह से विकसित हो सकें.
5. फूल गोभी और बंधा गोभी की खेती
फूल गोभी और बंधा गोभी की फसल में मिट्टी चढ़ाना अत्यंत आवश्यक है. यह उपाय पौधों को गिरने से बचाता है और पैदावार में वृद्धि करता है.
6. आलू और शकरकंद की खेती
आलू और शकरकंद पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है. इससे कंद बड़े और सुविकसित आकार के होते हैं और हरा रंग भी नहीं आता है, जो गुणवत्ता को प्रभावित करता है.
7. दाल वाली सब्जियों में सिंचाई
दाल वाली सब्जियों में पहली सिंचाई बीज जमने के लगभग 15-20 दिन बाद करनी चाहिए, जिससे फसल की वृद्धि अच्छी होती है.
8. भिंडी की खेती में सिंचाई
भिंडी के बीज को 12-24 घंटे तक पानी में भिगोकर लगाना चाहिए, ताकि जमाव अच्छा हो. पहली सिंचाई तब करनी चाहिए, जब पौधे पानी की कमी से मुरझाने लगे.
9. पत्ती वाली सब्जियों में खाद
पत्ती वाली सब्जियों में नाइट्रोजन खाद ही देना चाहिए. अमोनियम नाइट्रोजन का मिश्रण विशेष रूप से फायदेमंद होता है, क्योंकि यह पौधों की वृद्धि में मदद करता है.
10. गर्मी के मौसम में पौधारोपण
गर्मी के मौसम में पौधारोपण केवल शाम के समय ही करना चाहिए. पौधारोपण के तुरंत बाद पानी देना न भूलें, ताकि पौधे को स्थिरता मिल सके.
11. कीटनाशकों का प्रयोग
टमाटर और बैगन में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव कीड़े लगे फलों के तोड़ने के बाद ही करना चाहिए. कीड़े लगे फलों को गड्ढे में दबा देना चाहिए, ताकि कीटों का प्रसार रुक सके.
12. दवा छिड़काव के बाद तोड़ाई
दवा छिड़काव के बाद 8 से 10 दिन तक सब्जियों को उपयोग के लिए तोड़ना उपयुक्त होता है, ताकि कीटनाशक के अवशेषों से बचा जा सके.
13. कीटों और बीमारियों से बचाव
सब्जियों में कीट और बीमारियों के नियंत्रण के लिए विशेषज्ञों से सलाह लेकर कार्य करना चाहिए. यह न केवल उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार लाता है, बल्कि अधिक पैदावार प्राप्त करने में भी मदद करता है.
सब्जियों में रोगों और कीटों का नियंत्रण
भारत में सब्जियों के विभिन्न कीट और रोगों का प्रकोप समय-समय पर होता है, जिससे पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इन रोगों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. जीवाणु रोग
जीवाणु रोग सब्जियों को विभिन्न प्रकार से नुकसान पहुंचाते हैं. प्रमुख जीवाणु रोगों में बैगन, टमाटर, आलू, गोभी, गाजर और प्याज में होने वाला जीवाणु गलन रोग शामिल है.
2. फफूंद रोग
फफूंद रोग फफूंदी के आक्रमण से उत्पन्न होते हैं, जैसे आलू की पछेती अंगमारी और मटर का चुर्णकी रोग.
3. विषाणु रोग
विषाणु रोगों का कारण अक्सर कीट होते हैं, जो विषाणुओं के वाहक होते हैं. उदाहरण स्वरूप, मिर्च और टमाटर का पात मरोड और आलू, मिर्च, टमाटर में भोजक रोग शामिल हैं.
सब्जियों के कीटों और बीमारियों से बचाव के उपाय
- बीज उपचार: बीज को बोने से पहले कैप्टान, थाइरम या बाविसिटन के साथ उपचारित करें.
- पौधशाला की देखभाल: पौधशाला की मिट्टी रेतीली दोमट होनी चाहिए और पौधशाला में सघन बुआई से बचें.
- खरपतवार नियंत्रण: खरपतवारों को नष्ट करने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करें.
इन उपायों के द्वारा किसान अपनी फसलों की रक्षा कर सकते हैं और अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी.
लेखक
रबीन्द्रनाथ चौबे, ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तरप्रदेश
Share your comments