पौधों को अपनी वृद्धि के लिए अनेक तत्वों की आवश्यकता होती है और ये तत्व मृदा, जल, वायु इत्यादि से पोधे ग्रहण करते हैं. पौधे सबसे अधिक मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटेशियम शोषित करते है अथवा पौधों को सबसे ज्यादा मात्रा में जरूरत होती है अतः इन तीनों पोषक तत्वों को मुख्य पोषक तत्व कहा जाता है. पौधों में इन पोषक तत्वों की कमी अधिक देखने को मिलती है जिसे पहचान कर उसकी पूर्ति की जा सकती है अतः इन पोषक तत्वों की कमी के लक्षण इस प्रकार है.
नाइट्रोजन
पौधों में नाइट्रोजन की कमी के निम्न लक्षण दिखाई देते हैं-
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पौधों की पत्तियों का रंग पीला या हल्का हरा हो जाता है.
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पौधों की वृद्धि ठीक प्रकार से नहीं हो पाती है या रूक जाती है, इसलिये पैदावार में कमी होती है.
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दाने वाली फसलों में सबसे पहले पौधों की निचली पत्तियाँ सूखना प्रारम्भ कर देती हैं और धीरे धीरे ऊपर की पत्तियाँ भी सूख जाती है.
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मक्का, धान, गेहूं, सरसों आदि फसलों में कमी होने पर पौधे की सारी पत्तियाँ हल्की हरी हो जाती है. अधिक कमी होने पर पुरानी पत्तियाँ पीली हो जाती है तथा पीलापन पत्तियों की नोक से आरम्भ होकर मध्यशीरा के सहारे V आकार में आधार की ओर बढ़ता है.
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अधिक कमी होने पर पत्तियाँ भूरे रंग की होकर सुख जाती है.
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गेहूँ तथा अन्य फसलें जिनमें टिलर फार्मेशन होती है, इसकी कमी से टिलर कम बनते हैं.
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फलों वाले वृक्षों में अधिकतर फल पकने से पहले ही गिर जाते है, फलों का आकार भी छोटा रहता है, परन्तु फलों का रंग बहुत अच्छा हो जाता है.
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पत्तियों का रंग सफेद हो जाता है और कभी-कभी पौधों की पत्तियाँ जल भी जाती है. हरी पत्तियों के बीच-बीच में सफेद धब्बे (क्लोरोसिस) भी पड़ जाते हैं.
फास्फोरस
इसकी कमी से मुख्यत कपास, रिजका, आलू, टमाटर, तम्बाकू, दलहनी फसलों में पौधों पर निम्न तरह के लक्षण उभरते हैं-
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नवजात पौधों में जड़ों तथा ऊपरी हिस्से की वृद्धि नहीं हो पाती जिससे पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है.
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पुरानी पत्तियों के ऊपरी भाग लाल-भूरे या परपल रंग के साथ झुलसने लगते हैं. इस तरह के लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों के किनारों (नोक) पर उभरते हैं.
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धान, मक्का, गेहूं, सरसों आदि फसलों में पुरानी पत्तियाँ गहरे नीले हरे रंग की हो जाती है. अत्यधिक कमी की अवस्था में पुरानी पत्तियों पर रंग बैंगनी हो जाता है, जो कि किनारे नोक से आगे बढ़ते जाते है.
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फास्फोरस की कमी से दानों का नहीं बनना, फसल में भुट्टों का खाली रहना तथा बीजों में हल्कापन रहना मुख्य है.
पौटेशियम कमी के लक्षण:
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पोटेशियम की कमी के लक्षण सर्वप्रथम पौधों की परिपक्व पत्तियों पर दिखते हैं.
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इन पत्तियों के किनारे झुलसे हुये दिखाई पड़ते है.
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अनाजों की फसलों में इसकी कमी से तने पतले रहना तथा अधिक कमी में पत्तियाँ झुलस जाती हैं.
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कल्लो पर बालियाँ नहीं आती तथा दानों का विकास नहीं हो पाना है.
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कपास में रेशों का गुण उच्च कोटि का नहीं हो पाता है.
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दलहनी पौधों में इसकी कमी का पहला लक्षण पत्तियों के किनारों पर चकत्तों के रूप में देखा जा सकता है. पत्तियों का रूप खराब हो जाना.
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नींबू वर्गीय पेड़ों में फूल आने के समय बहुत ज्यादा पत्तियाँ झड़ना. कोपलें और नयी पत्तियाँ पकने और कड़ी होने से पहले ही झड़ जाना आदि मुख्य है.
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सरसों, मक्का, गेहूं में पुरानी पत्तीयों पर नोक से शुरू होकर किनारों से आगे बढ़ते हुए ये पीली भूरी हो जाती है. पत्ती की मध्यशीरा हरी रहती है जो अन्त में पत्तियाँ सुखकर गिर जाती है.
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