क्या आप सूरन (Suran) उगाना चाहते हैं या यह जानना चाहते हैं कि इसको कैसे उगाया जाता है? यदि हां, तो आज हम आपको इस लेख में सूरन (ओल) की खेती की संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं, जिसमें इसकी बुवाई, रोपाई, किस्म, ग्रोइंग सीजन, बीज दर, खाद, कटाई व अन्य खबर शामिल होंगी. बता दें कि सूरन को अंग्रेजी में एलीफैंट फुट याम (Elephant Foot Yam) के नाम से भी जाना जाता है.
सूरन की खेती के लिए मिट्टी (Soil for Suran Cultivation)
सूरन की खेती के लिए 5.5-7.0 पीएच रेंज वाली समृद्ध लाल-दोमट मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है. यह एक उपोष्णकटिबंधीय फसल है. इसके लिए आर्द्र और गर्म मौसम के साथ अच्छी तरह से वर्षा की जरूरत होती है. फिर इसकी विकास अवधि के दौरान ठंडे और शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है.
सूरन की खेती की किस्में (Varieties of Suran Cultivation)
सूरन (Suran) की किस्मों में गजेंद्र और श्री पद्मा लोकप्रिय हैं, इसलिए किसान भाई इन किस्मों का चयन कर सकते हैं. इससे पैदावार अच्छी प्राप्त होगी.
सूरन की खेती के लिए मौसम और रोपण (Seasons and Planting for Suran Cultivation)
यह 45 से 60 दिनों की सुप्त अवधि से गुजरता है. परंपरागत रूप से किसान फरवरी-मार्च के दौरान रोपण करके सुप्त अवधि (Dormant Period) का लाभ उठाते हैं ताकि प्री-मानसून (Pre-monsoon) वर्षा के साथ सेट अंकुरित हो जाए, लेकिन सूरन की बुवाई का उपयुक्त मौसम अप्रैल-मई (March-May) का होता है. कंद को 750-1000 ग्राम छोटे टुकड़ों में इस तरह से काटा जाता है कि प्रत्येक बिट में कली के चारों ओर रिंग का एक छोटा सा हिस्सा हो. रोपण सामग्री के रूप में 45 x 30 सेमी की दूरी पर 100 ग्राम आकार के कॉर्मेल और मिनीसेट का उपयोग (Use of Cormel and Miniset) करने का भी सुझाव दिया जाता है.
इन्हें रोपण से पहले हटा दिया जाता है क्योंकि ये कंद के विकास में बाधा डालती हैं. एक साधारण आकार का सूरन रोपण के लिए लगभग 6 से 8 बिट देता है. कटे हुए टुकड़ों को गोबर के घोल में डुबोया जाता है ताकि कटी हुई सतह से नमी का वाष्पीकरण न हो. कहीं-कहीं छोटे गोल डॉटर कॉर्म भी लगाए जाते हैं. फिर कटे हुए टुकड़ों को 45 सेमी x 90 सेमी की दूरी पर क्यारियों में लगाया जाता है या 60 x 60 x 45 सेमी आकार का गड्ढा खोदा और लगाया जाता है. रोपण से पहले गड्ढे को ऊपर की मिट्टी और खाद से भरना चाहिए. टुकड़ों को इस तरह लगाया जाता है कि अंकुरित क्षेत्र मिट्टी के ऊपर रहता है. एक हेक्टेयर में रोपण के लिए लगभग 3500 किलोग्राम कॉर्म (Corms) की आवश्यकता होती है.
सूरन की खेती के लिए अंतर फसल (Inter Crop for Suran Cultivation)
Suran ki Kheti के साथ आप नारियल, सुपारी, रबर, केला और रोबस्टा कॉफी की फसल भी लगा सकते हैं. इनको 90 x 90 सेमी की दूरी पर लाभकारी रूप से अंतर-फसल किया जा सकता है. गोबर की आधी मात्रा (12.5 टन/हेक्टेयर) और एनपीके की एक तिहाई (27:20:33) अंतरफसल के लिए पर्याप्त होती है.
सूरन की खेती की सिंचाई (Irrigation of Suran Farming)
इसे ज्यादातर बारानी फसल (Rainfed Crop) के रूप में उगाया जाता है. हालांकि, मानसून में सही से पानी ना मिलने पर इस फसल को सिंचाई की आवश्यकता होती है. बता दें कि पानी का ठहराव फसल के लिए हानिकारक है. जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां सप्ताह में एक बार सिंचाई की जा सकती है.
सूरन की खेती के लिए उर्वरकों का प्रयोग (Application of Fertilizers for Suran Cultivation)
अंतिम जुताई के दौरान 25 टन गोबर प्रति हेक्टेयर डालें. एनपीके प्रति हेक्टेयर की अनुशंसित खुराक 80:60:100 किलोग्राम है. 40:60:50 किग्रा एनपीके/हेक्टेयर रोपण के 45 दिनों के बाद निराई-गुड़ाई और अंतर-सांस्कृतिक कार्यों के साथ करें.
सूरन की खेती में रोग और उसका नियंत्रण (Disease and its Control in Suran Cultivation)
लीफ स्पॉट (Leaf Spot): मैनकोजेब का 2 ग्राम/लीटर का छिड़काव करके लीफ स्पॉट रोग को नियंत्रित किया जा सकता है.
सूरन की कटाई कब करें (When to Harvest Suran)
कटाई रोपण के 8 महीने बाद और विशेष रूप से जनवरी-फरवरी महीनों के दौरान की जाती है. तने और पत्तियों का सूखना सूरन में कटाई की अवस्था का संकेत देता है.
सूरन की खेती में प्रति हेक्टेयर पैदावार (Suran Cultivation Profit Per Acre)
फसल 240 दिनों में लगभग 30 - 35 टन प्रति हेक्टेयर उपज दे सकती है.
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