रबी सीजन की शुरुआत हो चुकी है और किसान अपने खेतों में रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई करने की तैयारी में जुट गए हैं. अगर गेहूं की खेती की बात करें, तो सबसे पहले खेत की तैयारी, किस्म और बुवाई की प्रक्रिया आती है. गेहूं की खेती (Wheat Cultivation) में अगर उन्नत किस्मों (Wheat Varieties) का चयन किया जाए, तो फसल का बंपर उत्पादन मिलना तय है.
ऐसे में आज हम किसान भाईयों के लिए गेहूं की कुछ उन्नत किस्मों (Wheat Varieties) की सही जानकारी लेकर आए हैं. कहा जाता है कि गेहूं की इन किस्मों (Wheat Varieties) की बुवाई कर उत्पादन में ढाई से तीन गुना वृद्धि हो सकती है. तो आइए आपको गेहूं की इन किस्मों की (Wheat Varieties) जानकारी देते हैं.
एचआई-8663 (HI-8663)
इस किस्म से उच्च गुणवत्ता व ज्यादा उत्पादन मिलेगा. यह किस्म गर्मी को सह सकती है. इससे 120-130 दिन में फसल पककर तैयार हो जाती है और उपज 50-55 क्विंटल मिलती है.
पूसा तेजस (Pusa Tejas)
गेहूं की नई किस्म (Wheat Varieties) पूसा तेजस को मध्य भारत के लिए चिह्नित किया गया है. यह किस्म 3 से 4 सिंचाई में पककर तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 55-75 क्विंटल उपज देती है. इस गेहूं से चपाती के साथ पास्ता, नूडल्स और मैकरॉनी जैसे खाद्य पदार्थ भी बनाए जा सकते हैं. इस किस्म में प्रोटीन, विटामिन-ए, आयरन व जिंक जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं.
पूसा उजाला (Pusa Ujala)
गेहूं की नई किस्म (Wheat Varieties) पूसा उजाला को ऐसे प्रायद्वीपीय क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है, जहां सिंचाई की सीमित सुविधाएं उपलब्ध होती हैं. इस किस्म 1 से 2 सिंचाई में फसल पककर तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 30 से 44 क्विंटल उपज मिल सकती है. बता दें कि इस किस्म के गेहूं में प्रोटीन, आयरन और जिंक की अच्छी मात्रा होती है.
जे-डब्ल्यू 3336 (J-W 3336)
इस किस्म को न्यूट्रीफार्म योजना के तहत विकसित किया गया है. इसमें जिंक प्रचुर मात्रा में होता है और यह 2 से 3 सिंचाई में फसल तैयार कर देती है. यानि इस किस्म से 110 दिन में फसल तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 50-60 क्विंटल उपज मिल जाती है.
अगर किसान भाई चाहें, तो गेहूं की इन सभी किस्मों (Wheat Varieties) की बुवाई श्री विधि से कर सकते हैं. इससे फसल की उपज अच्छी प्राप्त हो सकती है. तो चलिए आपको श्री विधि से गेहूं की बुवाई करने के बारे में बताते हैं.
क्यों श्री विधि से करें गेहूं की बुवाई? (Why sow wheat by Shree method?)
गेहूं की बुवाई वर्गाकार विधि से करने पर कतार व पौधों के बीच पर्याप्त दूरी स्थापित रहती है. इससे पौधों की समुचित वृद्धी और विकास अच्छा होता है. इससे उनमें स्वस्थ कसे तथा पुष्ट बालियों का निर्माण होता है और फलस्वरूप अधिक उपज प्राप्त होती है.
कब श्री विधि से करें बुवाई(When to sow by Shree method)
इस विधि से खेती करने पर गेहूं की खेती लागत परंपरागत विधि की तुलना में आधी हो जाती है. इस विधि से सामान्य तौर पर गेहूं की बुवाई नवंबर-दिसंबर के मध्य में कर सकते हैं.
श्री विधि से गेहूं की बुवाई का तरीका (Method of sowing wheat by Shree method)
इस विधि के तहत बीजों को कतार में 20 सेमी की दूरी में लगाएं. आप इसके लिए देसी हल या पतली कुदाली की सहायता ले सकते हैं. इसकी मदद से 20 सेमी की दूरी पर 3 से 4 सेमी गहरी नाली बनाएं, साथ ही उसमें 20 सेमी. की दूरी पर एक स्थान पर 2 बीज डालते रहें.
बुवाई के बाद बीज को हल्की मिट्टी से ढंक दें, फिर बुवाई के 2 से 3 दिन में पौधे निकल आते हैं. बता दें कि कतार और बीज के मध्य वर्गाकार (20 बाय 20 सेमी) की दूरी रखने से हर पौधे के लिए पर्याप्त जगह मिल पाती है.
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