झारखंड के लातेहार क्षेत्र के परहिया जनजाति के लोग एक बार फिर मड़ुआ की खेती की तरफ लौटे हैं. दशकों से गायब मड़ुआ की फसल एक बार फिर यहां के खेतों में लहलहा रही है. इसकी बढ़ती मांग के कारण वह इन लोगों की जीविका का साधन भी बन रही है. बता दें कि मड़ुआ की फसल की तरह यहां की परहिया जनजाति के लोग भी बेहद कम होते जा रहे हैं. ऐसे में मड़ुआ इस जनजाति के ग्रामीणों के लिए आर्थिक समृद्धि की वजह बन रही है.
इन गांवों में हो रही खेती
मड़ुआ की खेती लातेहार क्षेत्र के उच्चाबल एवं जान्हो गांव में की जा रही है. यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. एक समय में इन गांवों में मड़ुआ का खेती बड़े पैमाने पर होती थी. लेकिन धीरे-धीरे ग्रामीण इससे दूर होते गए. गांव के रमेश परहरिया का कहना है कि अब फिर ग्रामीण मड़ुआ की खेती की तरफ लौटे हैं और उन्हें इससे अच्छे उत्पादन की उम्मीद है.
रोटी बनाकर खाते थे वहीं
सहदेव परहिया बताते हैं कि आज से 15 साल पहले जब धान की फसल नहीं कटती थी तब तक मड़ुआ के आटे की रोटी बनाकर खाते थे. वहीं उस समय चावल की उपज भी ज्यादा नहीं होती थी. ग्रामीण धान की फसल आने के छह माह तक मड़ुआ से पेट भरते थे. परहिया आगे बताते हैं कि बाद में धान की उन्नत किस्में आ गई जिसके चलते ग्रामीणों में धान की खेती के प्रति रुझान बढ़ गया वहीं मड़ुआ की खेती कम हो गई. लेकिन अब मड़ुआ की खेती फिर से की जा रही है. वहीं इससे लोगों को अच्छा मुनाफा भी मिल रहा है. इसलिए दूसरे लोगों को इसकी खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
कई तत्वों से भरपूर
कृषि एक्सपर्ट एके मिश्रा का कहना है कि मड़ुआ स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होता है. इसमें कई पोषक तत्व पाए जाते हैं कई बीमारियों में फायदेमंद है. उनका कहना है कि मड़ुआ अनाज शुगर के रोगियों के लिए लाभदायक है. उन्हें इसका नियमित सेवन करना चाहिए. वहीं हाईब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए भी यह फायदेमंद है. मड़ुआ अनाज साइटिका या अर्थराइटिस के रोगियों के लिए भी उत्तम है. इसमें 50 से 60 प्रतिशत तक कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है. इसके अलावा इसमें फाइबर, प्रोटीन, ट्रिपलीन और आयरन जैसे तत्व पाए जाते हैं. कई बड़ी कंपनियां मड़ुआ का उपयोग शुगर फ्री उत्पादों को बनाने में कर रही है.
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