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ज्वार की नई उन्नत बहुकटाई वाली CSV 35 MF किस्म

भारत में चारा मांग की स्थिति अत्यधिक अनिश्चित है तथा अंतर बहुत अधिक है. अतः इस अंतर को कम करने के लिए पोषक तत्वों युक्त हरा चारा उगाना अति आवश्यक है. ज्वार की CSV 35 MF किस्म का विकास सूडान घास ज्वार CoFS 29 से उत्परिवर्तन द्वारा किया गया है,

हेमन्त वर्मा
Sorghum
Sorghum

भारत में चारा मांग की स्थिति अत्यधिक अनिश्चित है तथा अंतर बहुत अधिक है. अतः इस अंतर को कम करने के लिए पोषक तत्वों युक्त हरा चारा उगाना अति आवश्यक है. ज्वार की CSV 35 MF किस्म का विकास सूडान घास ज्वार CoFS 29 से उत्परिवर्तन द्वारा किया गया है, जिसमें पौधों में कल्लों की संख्या, जैवभार, पुनरुद्भवन क्षमता, शुष्क पदार्थ पाचकता तथा प्रोटीन की मात्रा अधिक थी. यह अखिल भारतीय ज्वार उन्नयन परियोजना, कोयम्बटूर के वैज्ञानिकों द्वारा चयनित की गई है.

ज्वार की CSV 35 MF किस्म की विशेषताएँ (Characteristics of the CSV 35 MF variety of sorghum)

एक तीव्र वृद्धि करने वाली किस्म है, जिसमें कल्लों की संख्या प्रत्येक कटान के साथ बढ़ती जाती है. इसमें पहली फसल में 5 से 7 कल्ले तथा अगली कटान पर 10-20 कल्ले, जो पतले, हरे तथा रसीले प्राप्त होते हैं. पौधे 200 से.मी. तक बढ़ते हैं. साथ ही इन पर 14-15 पत्तियाँ होती हैं जिनकी लम्बाई 80-85 से.मी. तथा चैड़ाई 4-5 से.मी. होती हैं. यह 65 से 70 दिनों में 50% पुष्पन अवस्था प्राप्त करती है, जो कि हरे चारे के लिए कटान अवस्था है. आगे की कटाई 45 दिनों पश्चात् की जा सकती है. बीज उत्पादन वाली फसल 115-120 दिनों में सम्पूर्ण परिपक्वता प्राप्त करती है. बीज बहुत छोटे, गहरे नारंगी तथा बैंगनी रंग के होते हैं. इसमें HCN की मात्रा कम तथा पाचक शुष्क पदार्थ की मात्रा अधिक पाई गई है. पत्तियों पर लगने वाली बीमारियों जैसे पत्ता झुलसा व श्याम वर्ण रोग के प्रति प्रतिरोधी तथा मृदुरोमिल आसिता के लिए सामान्य प्रतिरोधी होती है. इसी प्रकार यह ज्वार के कीटों जैसे तना छेदक और मिज के लिए प्रतिरोधी तथा बरूथी और प्ररोह मक्खी के लिए सामान्य प्रतिरोधी होती है.

इस किस्म में प्रोटीन मात्रा अधिक पाई जाती है, जो कि पशुधन, डेयरी पशुओं तथा मांस पशुओं के लिए पोषक मानी जाती है. यह किस्म पुष्पन अवस्था के दौरान अधिकतम शुष्क पदार्थ पाचकता व क्रूड प्रोटीन का संचय करती है. इसके सुविकसित जड़ों के कारण यह किस्म कटाई के पश्चात् सूखे को सहन कर सकती है तथा वर्षा के पुनः आगमन पर अधिक कल्ले उत्पन्न कर तीव्र वृद्धि करती है.

ज्वार के हरे चारे का उत्पादन (Production of green Sorghum)

सिंचाई की सुविधा के साथ इसकी 6 कटाई सम्भव है तथा 200 टन/हेक्टर से अधिक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है. पहली कटाई 50% पुष्पन पर (60-70 दिन) पर आती है तथा आगे प्रत्येक पुष्पन पर लगभग 45 से 50 दिन पर आती है. यह किस्म सामान्य तथा उच्च उत्पादक मृदा में हर ऋतु में वर्षा आधारित तथा सिंचित खेती के लिए उपयुक्त है तथा सामान्य शीत तथा ग्रीष्म स्थितियों में सहनशील है. अच्छी उपज पाने के लिए तथा न्यूनतम सिंचाई में अधिक फसल उपज के लिए काली मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है. 30 से.मी. कतार तथा 15 से.मी. पादप दूरी पर 5 कि.ग्रा. बीज/हे. की बुआई की जा सकती है. अधिक कल्ले उत्पादन की क्षमता के कारण सिंचित क्षेत्रों में काली मिट्टी के लिए 4.25 किलो/हे. बीज दर प्रस्तावित है.

पहली सिंचाई बीज अंकुरण के समय, दूसरी सिंचाई कायिक अवस्था (35-40 दिन) तथा अगली अगर सम्भव हो तो पुष्पन अवस्था (55 दिन) से पहले कर दे. पेढ़ी फसल के लिए कटाई के पश्चात् तथा कायिक (35 दिन) तथा पुष्पन अवस्था (55 दिन) पर एक सिंचाई दी जानी चाहिए. काली मिट्टी के लिए दो सिंचाई ही पर्याप्त है. इसके बाद प्रत्येक पेढ़ी फसल के लिए नाइट्रोजन की आधी मात्रा दी जानी चाहिए. फसल की कटाई ब्रुश व्हील कटर, लम्बे नुकीले चाकू अथवा नुकीले हासिये से की जानी चाहिए जिससे आधारीय तने का कटान न्यूनतम हो.

खेत की तैयारी (Field preparation)

राजस्थान में हरे चारे हेतु ज्वार की बुवाई फरवरी के अंत में अथवा मार्च माह के प्रारंभ में की जानी चाहिए. यह तभी संभव है जब खेत में रबी की फसल ना ली गई हो या जल्दी परिपक्व होने वाली फसलों की बुवाई की गई हो. ज्वार की बुवाई से पूर्व खेत को भलीभांति तैयार कर लेना चाहिए. इस हेतु एक या दो बार कल्टीवेटर चलाने की आवश्यकता होती है.

बीज उपचार (Seed treatment)

बीज को 2 ग्राम थाईरम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके ही बोएं. देर से बुवाई करते समय तना मक्खी के बचाव के लिए 70 मिली लीटर पानी और 18 ग्राम गुड़ के बने घोल में 60-70 ग्राम कार्बोफ्यूरान 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण मिलाकर प्रति किलो बीज को उपचारित कर बुवाई करें. बीज को एजोटोबेक्टर तथा पी.एस.बी. कल्चर से उपचारित करना भी लाभदायक रहता है.

ज्वार फसल की बुवाई (Sowing of Sorghum crop)

20-25 से.मी. कतार से कतार तथा 5-10 से.मी. पादप से पादप दूरी पर इसकी बुवाई की जानी चाहिए. इस हेतु 4.5 से 6 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर बीज दर सही रहती है. बीज को 2.5 से 3 से.मी. गहराई पर बोना चाहिए.

चारा उत्पादन के लिए ज्वार फसल में खाद एवं उर्वरक की मात्रा (Amount of fertilizer and manure in Jowar crop for fodder production)  

ज्वार फसल के लिए 80 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटेशियम की आवश्यकता होती है. बीज की बुवाई के साथ 40 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटेशियम को कतारों में ऊर कर देना चाहिए. शेष नाईट्रोजन की आधी मात्रा 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर प्रथम कटान के पश्चात् तथा शेष 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन दूसरी कटान के बाद छिड़क कर सिंचाई कर देनी चाहिए.

ज्वार में सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई (Irrigation and weeding in Sorghum)

बीज की बुवाई के पश्चात् खेत में क्यारियां बना लेनी चाहिए जिससे सिंचाई करने में सुविधा रहे. प्रथम सिंचाई बुवाई के तुरंत पश्चात् तथा अगली सिंचाइयां आवश्यकतानुसार की जानी चाहिए क्योंकि भिन्न-भिन्न प्रकार की मृदाओं में सिंचाई की अलग-अलग आवश्यकता होती है. इसी प्रकार पेढ़ी फसल में एक सिंचाई कटाई के तुरंत पश्चात् तथा आगामी सिंचाइयां आवश्यकतानुसार दी जानी चाहिए. चारे की फसल में बुवाई के 10-15 दिन पश्चात् गुड़ाई की जानी चाहिए.

ज्वार को चारे के लिए कटाई कब करें (When to harvest Jowar for fodder)

इसकी प्रथम कटाई 50% पुष्पन अवस्था एवं अधिकतम 60 दिनों पर की जानी चाहिए. पेढ़ी फसल की कटाई 50% पुष्पन अवस्था या अधिकतम 45 दिनों पर की जानी चाहिए.

English Summary: New Advanced Multicutting CSV 35 MF Variety of Sorghum Published on: 29 May 2021, 05:10 PM IST

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