खरीफ फसलों में मूंग का स्थान प्रमुख है. ये एक दलहनी पौधा है, जिससे भारत को 1.6 मिलियन के लगभग उपज प्राप्त होती है. इसकी खेती मुख्य रूप से राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के साथ-साथ तमिलनाडु में की जाती है. इसकी खेती के लिए खरीफ, रबी और जायद, तीनों मौसम उपयुक्त है.
वैसे पिछले कुछ सालों से मूंग के उत्पादन में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है. इसके दानों में प्रोटीन, विटामिन, खनिज व अन्य पोषक तत्वों का खजाना होता है. चलिए आज हम आपको इसकी खेती के बारे में बताते हैं.
मूंग की खेती के लिए भूमि चुनाव (Land selection for moong cultivation)
मूंग की खेती के लिए पी एच 7 वाली हल्की से भारी मिट्टी सबसे उपयुक्त है. खेतों में जल निकासी की उचित व्यवस्था का होना जरूरी है, क्योंकि पानी का भराव इसके लिए अच्छा नहीं है. ध्यान रहे कि लवणीय, क्षारीय एवं अम्लीय भूमि इसकी खेती के लिए सही नहीं है.
मूंग फसल की जुताई (Plowing of moong crop)
खेत की जुताई मानसून प्रारंभ होते ही हल या ट्रैक्टर से दो-तीन बार की जानी चाहिए. दीमक व अन्य कीटों के नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण का उपयोग किया जा सकता है. आप चाहें तो जैविक कीटनाशकों का उपयोग भी कर सकते हैं. जुताई के बाद खेत को पाटा लगाकर ढक देना और उसे समतल करना उचित है. इससे खेतों में नमी बनी रहती है.
मूंग के बीज एवं बुवाई (Moong seeds and sowing)
मूंग की बुवाई के लिए जुलाई से अगस्त तक का समय उत्तम है. स्वस्थ एवं अच्छे गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना जरूरी है. इसकी बुवाई कतारों में ही होनी चाहिए, ऐसा करने से निराई-गुड़ाई का काम आसान हो जाता है. ध्यान रहे कि कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए.
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मूंग की कटाई एवं गहाई (Moong harvesting and threshing)
मूंग की फलियां जब काली पड़ने लगे, तो सूखने के बाद कटाई का काम शुरू कर देना चाहिए. ध्यान रहे कि फलियां अधिक सूखने न पाएं, फलियों के अधिक सुखने पर वो चिटकने लग जाती है. फलियों के बीज को थ्रेसर द्वारा या डंडे द्वारा अलग किया जा सकता है.
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