आपने करेला का नाम सुना ही होगा, ठीक करेला का छोटे भाई की तरह दिखने वाला एक और नाम जहन में आ जाता है जिसे हम कंटोला, काकरोल या खेखसा के नाम से जानते हैं. कहीं-कहीं पर इसे बड़ करेला, अगाकारा और अंग्रेजी में स्पाइन गार्ड के भी नाम से जानते हैं. यह गर्म एवं नम जलवायु में तेजी से उगने वाला पौधा है. इसे लगाने का सही समय जून-जुलाई का है और ये बड़ी ही आसानी से लगने वाला पौधा है. ऐसे में आइए कंटोला के फायदे जानते हैं-
कंटोला के फायदे
कंटोला की सब्जी खाने से अनेकों फायदे होते हैं. इसमें विटामिन A प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. जोकि आंखों की रोशनी बढ़ाने में काफी मददगार होता है. साथ ही साथ कंटोला का बीज कब्ज को दूर कर पाचन क्रिया को भी दुरुस्त करता है. इतना ही नहीं ये हृदय रोग, कैंसर व लिवर की समस्या को दूर करने में भी इसकी पत्तियां, फल व जड़ कारगर है.
कंटोला की जड़ में एंटी कैंसर गुण पाया जाता है. इसके नियमित सेवन से शरीर में कैंसर की कोशिकाएं नहीं बनती.
कंटोला के पत्ते में को पीस कर लेप लगाने से त्वचा संबंधित रोग को भी दूर किया जा सकता है जैसे एक्जिमा, मुहासा, त्वचा पर कोई पुरान दाग, फोड़ा-फुंसी. साथ ही साथ इसके नियमित सेवन से शूगर भी कन्ट्रोल किया जा सकता है.
कंटोला में पाए जाने वाले पोषक तत्व:-
कार्बोहाइड्रेट- 7.7g, प्रोटीन- 3.1g, वसा,3.1g, फाइबर- 3.0g, कैल्शियम- 50mg, सोडियम- 150mg, पोटेशियम- 830mg, आयरन- 14mg, जिंक- 134mg मुख्य रूप से पाया जाता है जो कि हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सहायता करते हैं.
कंटोला पौधे की देखभाल:-
कंटोला जितना खाने में स्वादिष्ट और औषधीय गुणों से भरपूर है, उतना ही ये नाजुक पौधा है. थोड़ी सी लापरवाही से इसमें कई तरह के रोग पनप सकते हैं और पौधा देखते ही देखते नष्ट हो सकता है. इसकी देखभाल में स्थान ऐसा होना चाहिए जहां सूर्य की रोशनी आती हो. छाया वाले स्थान में इसे रोपित करने से बचना चाहिए साथ ही पानी संतुलित मात्रा में डालना चाहिए. पौधे की जड़ में पानी अधिक होने से इसे कई तरह की रोग हो सकती है. जिससे पूरा पौधा बर्बाद हो सकता है. अधिक नमी होने की वजह से भी पौधे का जड़ गल सकता है और बर्बाद हो सकता है.
कंटोला में पाए जाने वाले रोग-
अत्यधिक नमी या जड़ की सतह पर अधिक पानी होने की वजह से कंटोला में कई तरह के रोग हो सकते हैं, जैसे-
डाउनी मिल्ड्यू रोग-
डाउनी मिल्ड्यू रोग को आम भाषा में फफूंदी भी कहते हैं. ये पौधों में होने वाला फंगस रोग है. ये तब होता है जब पौधों की जड़ में या पत्तों में नमी ज्यादा होती है. और सूर्य की किरण पर्याप्त मात्रा में पौधों को नहीं मिलती जिसकी वजह से पौधे नष्ट होने लगते हैं.
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1) डाउनी मिल्ड्यू रोग के लक्षण-
- इस रोग की वजह से कंटोला की पत्तियां पीले या भूरे रंग की होने लगती है.
- पत्तियों के ऊपरी सतह पर फंगस झिल्लीदार दिखने लगते है.
बचाव:-
- कंटोला के पौधे को रोपते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि इसे सूर्य की रोशनी जड़ तक मिल रही है या नहीं.
- पौधे में पानी संतुलित मात्रा में डालना चाहिए या दो-तीन दिन के अंतराल में डालना चाहिए. अगर पौधे के जड़ के पास बरसात का पानी जमा हो जाए तो ध्यानपूर्वक के पानी को निकाल देना चाहिए और जब तक मिट्टी सूखी प्रतीत ना हो तब तक पानी डालने से बचना चाहिए.
2) पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण:-
कंटोला में ये रोग भी अत्यधिक नमी की वजह से ही होता है. इसमें कंटोला के पत्तियों के ऊपरी सतह पर सफेद फफूंदी लग जाते हैं या फूल की कलियों में सफेद फफूंदी लगकर उसे बढ़ने नहीं देते. पाउडरी मिल्ड्यू कंटोला के फल के उपर भी लग जाता है जिसकी वजह से फल बहुत छोटा ही रह जाता है कभी कभी फल का आकार छोटा, टेढ़ा हो जाता है. पाउडरी मिल्ड्यू रोग की वजह से कंटोला की पत्तियां सफेद होकर मुर्झाने लगतीं है और फलों का विकास रुक जाता है.
बचाव:-
पाउडरी मिल्ड्यू रोग से कंटोला के पौधे को बचाने के लिए कवकनाशी या कीटनाशी दवा का प्रयोग संतुलित मात्रा में करना चाहिए. इस दवा का प्रयोग करने वक्त अपने मुँह, नाक को अच्छे से ढंक लेना चाहिए और पौधों पर दवा का छिड़काव करने के बाद हाथ अच्छे से धो लेना चाहिए.
घरेलू उपचार में उपले/कंड़ा/ गोइठा के राख का छिड़काव करना चाहिए. कभी-कभी पत्तियों पर नमी होने की वजह से बरसाती कीड़े (परजीवी) भी पत्तियों पर अपना डेरा जमा लेते हैं और उसके पोषण को नष्ट कर देते हैं. उसके लिए कीटनाशक या राख का छिड़काव जरूरी है.
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