ज्वार का नाम सुनते ही,गांवो में चूल्हे पर बनी ज्वार की गर्मागर्म रोटी का स्वाद ज़ुबान पर आने लगता है और साथ में जब लहसुन की चटनी हो तो फिर कहना ही क्या...आज भी खेतों में मेहनतकश किसान भूख लगने पर ज्वार की रोटी ज़रूर खाते है. ज्वार को पौष्टिक और सुपाच्य धान माना जाता है. प्रतिवर्ष किसान भाई-बहन कई प्रमुख फसलों की बुवाई करते हैं, जिसमें ज्वार (Jowar Crop) भी शामिल है. यह मोटे अनाजों में गिनी जाने वाली एक प्रमुख फसल है. किसान इसकी खेती खाद्यान्न और पशुधन के लिए मीठे-हरे चारे के रूप में करते हैं. खरीफ सीजन की इस फसल की बुवाई मानसून के पूर्ण आगमन पर होती है.
अगर आप चाहें, तो ज्वार की खेती कम लागत में करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, क्योंकि यह कम लागत में अच्छी पैदावार देने वाली फसलों में से एक है. ज्वार की उन्नत किस्मों से लेकर खेत की तैयारी, बुवाई, रोग नियंत्रण, बाजार भाव आदि के बारे में जानकर आप ज्वार की खेती से मुनाफ़ा कमा सकते है.कृषि जागरण के इस लेख में पढ़िये ज्वार की खेती से जुड़ी हर जानकारी-
ज्वार की खेती पर नए शोध (New research on Jowar Cultivation)
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ज्वार की एक नई CSV 35 MF किस्म का विकास हुआ, जिसे सूडान घास ज्वार CoFS 29 से उत्परिवर्तन द्वारा विकसित किया गया. इसे अखिल भारतीय ज्वार उन्नयन परियोजना, कोयम्बटूर के वैज्ञानिकों द्वारा चयनित किया गया है. इसके पौधों में कल्लों की संख्या, जैवभार, पुनरुद्भवन क्षमता, शुष्क पदार्थ पाचकता व प्रोटीन की मात्रा अधिक थी.
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साल 2019 में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के चारा अनुभाग के वैज्ञानिकों द्वारा एसपीवी 2445 किस्म विकसित की गई है.
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ज्वार की 4 और नई उन्नत किस्मों की बुवाई की जा रही है. इनमें एसपीवी 2437 (चारा व दाने के लिए), एसपीवी 2423 (दाने के लिए), एसपीवी 2018 (गुणवत्ता चारे हेतु) और एसपीवी 2445 (एक कटाई हेतु चारा के लिए) हैं.
देश में ज्वार का उत्पादन (Production of Jowar in the Country)
भारत में मुख्य रूप से ज्वार की खेती महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में होती है. अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो मुख्यतः झांसी, हमीरपुर, जालौन, फतेहपुरा, इलाहाबाद, फरुखाबाद, मथुरा, हरदोई क्षेत्रों में धान की खेती की जाती है.
ज्वार की खेती के लिए ये समय है उत्तम (This is the best time for Jowar cultivation)
इसकी खेती रबी व खरीफ दोनों मौसम में होती है. उत्तरी भारत में ज्वार की बुवाई का उचित समय जुलाई का प्रथम सप्ताह है. ज्वार की बुवाई मानसून की पहली बरसात के साथ कर देनी चाहिए| देश के दक्षिणी राज्यों जैसेः महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु जहां ज्वार रबी के मौसम में उगाई जाती है, वहां बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर के मध्य करना अच्छा रहता है|
ज्वार की खेती के लिए ये जलवायु है उत्तम ( This climate is best for the cultivation of jowar)
देश के अधिकतर शुष्क क्षेत्रों में ज्वार की खेती की जाती है, साथ ही जहां पर औसतन कम वर्षा होती है, वहां पर फसल का अच्छा उत्पादन होता है.
ज्वार की खेती के लिए ये मिट्टी है उत्तम (This soil is best for jowar cultivation)
इसके लिए हल्की लाल, बलुई, रेतीली, भूरी भुरभुरी दोमट, हल्की काली जैसी मिट्टी अच्छी होती है. इसके अलावा ज्वार की फसल के लिए जलभराव वाली भूमि कम अच्छी रहती है.
ज्वार की खेती के लिए ये हैं उन्नत किस्में (These are the improved varieties for the cultivation of jowar)
किसान भाई अपने क्षेत्रों के अनुसार उन्नत किस्मों का चुनाव करें, ताकि फसल का अधिक उत्पादन मिले. इसके साथ ही उन्नत तकनीकी के साथ खेती करें. इसके लिए किसान अपने निकटवर्ती कृषि कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं.
उन्नत ज्वार की किस्में (Improved Jowar Varieties)
मध्यप्रदेश- सीएसएच-5, एएसआर-1, सीएसएच-9, MP Chari, विदिशा 60-1, HC 260, HC 171, MFSH 3, सीएसएच-18, जवाहर ज्वार- 741, जवाहर ज्वार -938, उज्जैन 3 और 6, पीला आंवला, लवकुश, जवाहर ज्वार- 1041 और एसपीवी -1022 किस्म प्रमुख हैं.
राजस्थान- जवाहर चरी 69(जे सी-69), एम. पी. चरी, लिलड़ी ज्वार, सुंदिया, धीमी-देशी चरी, पुस चरी-6 और सी एच वी-15 किस्म प्रमुख हैं.
उत्तर प्रदेश- सीएमएच-9, सीएसबी-13, सीएसएच-14, ज्वार वृषा, सीएसबी-15 और सीएसएच-16 किस्म की बुवाई करें.
हरियाणा- एसएल44, सीसीजी 59-3, एचसी 136 और हरा सोना ज्वार किस्म प्रमुख हैं.
महाराष्ट्र- सीएसबी-15, सीएसबी-18, पी वी- 699, सीएसएच-16 औऱ सीएसएच-14 अच्छी हैं.
दक्षिण भारत- सी एस एच -1, MFSH 3, सीएमएच-9, सीएसबी-15, सीएसबी-18, HC 260, HC 171, पी वी- 699, सीएसएच-16 व सीएसएच-14 किस्म उचित हैं.
ज्वार की बुवाई में बीज दर (Seed Rate in Sowing of Jowar)
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अगर देसी ज्वार बीज की बुवाई कर रहे हैं, तो इसके लिए 7 से 9 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज चाहिए.
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अगर संकर किस्म है, तो 5 से 7 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से बीज का प्रयोग करें.
ज्वार की फसल में सिंचाई (Irrigation in Jowar Crop)
यह बारिश के मौसम में बोई जाने वाली फसल है, इसलिए इसके लिए बारिश का ही पानी पर्याप्त होता है. मगर बारिश न होने पर फसल में बाली या भुट्टा निकलते समय और दाना भरते समय खेत में नमी रखनी चाहिए.
ज्वार की कटाई (Jowar harvesting)
अगर अच्छी किस्म की ज्वार है, तो वह 20 से 25 दिन बाद कटाई के योग्य हो जाती है. ध्यान दें कि सिंचाई सुविधा के अनुसार ज्वार की कई कटाई की जाती है.
ज्वार का प्रति हेक्टेयर उत्पादन ? (Production of jowar per hectare?)
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ज्वार की देशी किस्मों से प्रति हेक्टेयर लगभग 28 से 35 क्विंटल पैदावार प्राप्त हो जाती है.
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संकर किस्मों से प्रति हेक्टेयर लगभग 35 से 40 क्विंटल पैदावार प्राप्त होती है.
ज्वार की फसल में लगने वाले कीट व रोग (Pests and diseases in jowar crop)
अक्सर किसान भाइयों की शिकायत होती है कि ज्वार की फसल में कीट या रोग का प्रकोप हो जाता है. तना मक्खी, तना छेदक, पर्ण फुदका, दाना मिज़, बालदार सुंडी और माहू ज्वार के मुख्य नाशी कीट, जबकि दाने का कंडवा रोग, अर्गट, ज्वार का किट्ट, मूल विगलन और मृदुरोमिल आसिता ज्वार के मुख्य रोग हैं|
तना छेदक– इसकी रोकथाम के लिए बुवाई के 25 दिनों बाद कार्बोफ्युरॉन (3 प्रतिशत) दानेदार कीटनाशक 7.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए और 10 दिनों के बाद दूसरा बुरकाव इसी मात्रा में पौधों की गोफ में करना चाहिए.
पर्ण फुदका (पाइरिला) कीट की बात करें तो इस कीट का नियंत्रण सामान्यतया स्वयं ही हो जाता है|
तना मक्खी- कीट की रोकथाम के लिए कार्बोफ्युरॉन 3 जी या फोरेट 10 जी बुवाई के समय 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कूड़ों में डालना चाहिए.
ज्वार का मिज़- जो देश के दक्षिणी राज्यों जैसे- महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में ज्वार की फसल को हानि पहुंचाने वाला मुख्य कीट है, इसकी रोकथाम के लिए कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी या कार्बारिल 3 डी कीटनाशक का ज्वार में भुट्टे निकलते समय 4 से 5 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए.
ज्वार का माइट- इसकी रोकथाम अन्य कीटों की रोकथाम के साथ स्वतः ही हो जाती है.
बालदार सुंडी- कीट की रोकथाम करनी हो, तो फोलीडोल 2 प्रतिशत धूल का 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या थायोडान (35 ई सी) का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए.
रोग प्रबंधन-
दाने का कंड (स्मट)- यह ज्वार का सबसे हानिकारक कवक जनित रोग है. इसकी रोकथाम के लिए बीज को किसी कवकनाशी दवा जैसे- केप्टान या वीटावैक्स पावर से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें.
अर्गट रोग- संकर ज्वार में प्रकोप अधिक होता है. अर्गट रोग से ग्रसित भुट्टों को काटकर जला देना चाहिए,भुट्टों में दाना बनने की अवस्था पर थिरम 0.2 प्रतिशत के 2 से 3 छिड़काव करके रोग के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
ज्वार का किट्ट- यह भी एक कवक जनित रोग है, रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्में उगानी चाहिए तथा पौधों पर रोग के लक्षण दिखाई देने पर डाइथेन एम- 45 (6.2 प्रतिशत) नामक कवकनाशी का 10 दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए.
जड़ विगलन- रोग कवक द्वारा फैलता है. रोकथाम के लिए बीजों को बोने से पूर्व किसी कवकनाशी रसायन जैसे थिरम या केप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करना चाहिए एवं ज्वार की रोगरोधी प्रजातियां उगानी चाहिए.
मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू)- रोग के लक्षण पौधों की ऊपरी नई पत्तियों पर पहले दिखाई पड़ते हैं| रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए, बीज को बुवाई से पूर्व एपरान- 35 एस डी या रिडोमील एम जेड- 72 से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करना चाहिए तथा फसल पर रिडोमिल (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिए.
तना-विगलन (चार कोल विगलन)- रोग का प्रकोप तमिलनाडु व महाराष्ट्र में रबी में उगाई जाने वाली ज्वार की फसल में अधिक देखा गया है. इसके प्रभावी नियंत्रण के लिए फसल चक्र व अन्तः फसलीकरण प्रणाली अपनानी चाहिए.
साल 2021 में ज्वार का बाजार भाव (Market price of jowar in the year 2021)
ज्वार के बाजार भाव की बात करें, तो देश के बाजार और मंडियों मे भाव अलग-अलग हैं. साल 2021 में सामान्यतः ज्वार गुणवत्ता के अनुसार 1300 रुपए से लेकर 3500 रुपए प्रति क्विंटल के भाव में बिक रहा है.तो किसान भाइयों यदि आप उपर्युक्त बातों का ध्यान रखकर ज्वार की खेती करते हैं, तो कम लागत में फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा. इसके साथ ही आप अधिक मुनाफ़ा पा सकेंगे.
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