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ज्वार की खेती करने से होगी बंपर कमाई, जानिए इससे जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

ज्वार को इंग्लिश में सोरघम कहते हैं. मूलतः भारत में इसकी खेती खाद्य और जानवरों के लिए चारा के रूप में की जाती है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) के सस्य विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ .गजेन्द्र सिंह तोमर अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि ज्वार की खेती का भारत में तीसरा स्थान है. अनाज व चारे के लिए की जाने वाली ज्वार की खेती उत्तरी भारत में खरीफ के मौसम में और दक्षिणी भारत में रबी के मौसम में की जाती है.

विकास शर्मा
Jowar
Jowar

ज्वार को इंग्लिश में सोरघम कहते हैं. मूलतः भारत में इसकी खेती खाद्य और जानवरों के लिए चारा के रूप में की जाती है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) के सस्य विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ .गजेन्द्र सिंह तोमर अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि ज्वार की खेती का भारत में तीसरा स्थान है. अनाज व चारे के लिए की जाने वाली ज्वार की खेती उत्तरी भारत में खरीफ के मौसम में और दक्षिणी भारत में रबी के मौसम में की जाती है. ज्वार की प्रोटीन में लाइसीन अमीनो अम्ल की मात्रा 1.4 से 2.4 प्रतिशत तक पाई जाती है जो पौष्टिकता की दृष्टि से काफी कम है. इसके दाने में ल्यूसीन अमीनो अम्ल की अधिकता होने के कारण ज्वार खाने वाले लोगों में पैलाग्रा नामक रोग का प्रकोप हो सकता है. इसकी फसल अधिक बारिश वालों क्षेत्रों में सबसे अच्छी होती है. ज्वार के अच्छे भावों को दृष्टिगत रखते हुए अगर कुछ किसान मिलकर अपने पास-पास लगे हुए खेतों में इस फसल को उगाकर अधिक लाभ उठा सकते हैं. क्योंकि इसके दाने और कड़वी दोनों ही उचित मूल्य पर बिक सकते हैं. 

खेत की तैयारी

डॉ. गजेन्द्र सिंह के मुताबिक, ज्वार की फसल कम वर्षा में भी अच्छी उपज दे सकती है और कुछ समय के लिए पानी भरा रहने पर भी सहन कर लेती है. पिछली फसल के कट जाने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से खेत में 15-20 सेमी. गहरी जुताई करनी चाहिए. इसके बाद 4-5 बार देशी हल चलाकर मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए. बुवाई से पूर्व पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए. मालवा व निमाड़ में ट्रैक्टर से चलने वाले कल्टीवेटर व बखर से जुताई करके जमीन को अच्छी तरह से भुरभुरी बनाते है. ग्वालियर संभाग में देशी हल या ट्रेक्टर से चलने वाले कल्टीवेटर से जमीन को भुरभुरी बनाकर पाटा से खेत समतल कर बुवाई करते हैं.

भूमि के अनुसार उपयुक्त किस्में

ज्वार की फसल सभी प्रकार की भारी और हल्की मिट्टियां, लाल या पीली दोमट और यहां तक कि रेतीली मिट्टियो में भी उगाई जाती है, परन्तु इसके लिए उचित जल निकास वाली भारी मिट्टियां (मटियार दोमट) सर्वोत्तम होती है. असिंचित अवस्था में अधिक जल धारण क्षमता वाली मृदाओं में ज्वार की पैदावार अधिक होती है. मध्य प्रदेश में भारी भूमि से लेकर पथरीले भूमि पर इसकी खेती की जाती हैं. छत्तीसगढ़ की भाटा-भर्री भूमिओं में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है. ज्वार की फसल 6.0 से 8.5 पी. एच. वाली मृदाओं में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है. ज्वार से अच्छी उपज के लिए उन्नतशील किस्मों का शुद्ध बीज ही बोना चाहिए. किस्म का चयन बोआई का समय और क्षेत्र अनुकूलता के आधार पर करना चाहिए. बीज प्रमाणित संस्थाओं का ही बोये या उन्नत जातियों का स्वयं का बनाया हुआ बीज प्रयोग करें. ज्वार में दो प्रकार की किस्मों के बीज उपलब्ध हैं-संकर एंव उन्नत किस्में. संकर किस्म की बोआई के लिए प्रतिवर्ष नया प्रमाणित बीज ही प्रयोग में लाना चाहिए. उन्नत जातियों का बीज प्रतिवर्ष बदलना नहीं पड़ता.

संकर किस्में

मध्यप्रदेश के लिए ज्वार की समर्थित संकर किस्में सीएसएच5, सीएसएच9, सीएसएच-14, सीएसएच-18 है. इनके अलावा जिनका बीज हर साल नया नहीं बदलना पड़ता है वे है जवाहर ज्वार 741, जवाहर ज्वार 938, जवाहर ज्वार 1041 एसपीवी 1022 और एएसआर-1. इनके बीजों के लिए ज्वार अनुसंधान परियोजना, कृषि महाविद्यालय इंदौर से संपर्क कर सकते हैं. ढाई एकड़ के खेत में बोने के लिए 10-12 किलोग्राम बीज लगता है. उत्तर प्रदेश में सीएसएच-16, सीएसएच-14, सीएमएच-9, सीएसबी-15, सीएसबी-13, वषा, र्मऊ टी-1, मऊ टी-2 की पैदावार की जाती है.

जल्दी तैयार होने वाली किस्में

ज्वार की देशी किस्मों के पौधे लंबे, अधिक ऊंचाई वाले, गोल भुट्टों वाले होते थे. इनमें दाने बिलकुल सटे हुए लगते थे. ज्वार की उज्जैन 3, उज्जैन 6, पीला आंवला, लवकुश, विदिशा 60-1 मुख्य प्रचलित किस्में थीं. इनकी उपज 12 से 16 क्विंटल दाना और 30 से 40 क्विंटल कड़वी (पशु चारा) प्रति एकड़ तक मिल जाती थी. इनका दाना मीठा, स्वादिष्ट होता था. ये किस्में कम पानी व अपेक्षाकृत हल्की जमीनों में हो जाने के कारण आदिवासी क्षेत्रों की प्रमुख फसल थी. ये उनके जीवन निर्वाह का प्रमुख साधन था. साथ ही इससे उनके पशुओं को चारा भी मिल जाता था. इनके झुके हुए ठोस भुटटों पर पक्षियों के बैठने की जगह न होने के कारण नुकसान कम होता था. उत्पादन की दृष्टि से ज्वार में बोनी का समय बहुत महत्वपूर्ण है. ज्वार की फसल को मानसून आने के एक सत्पाह पहले सूखे में बोनी करने से उपज में 22.7 प्रतिशत देखी गई है.

प्रमुख बीच निर्माता कंपनियां एवं उसका पता

विपणन एवं निरीक्षण
निदेशालय (डी.एम.आई),
एनएच- IV, सीजीओ
कॉम्प्लैक्स, फरीदाबाद
वेबसाइट: www.agmarknet.nic.in

केंद्रीय भांडागार निगम
(सीडब्लसी ), 4/1, सिरी
इंस्टीट्यूशनल एरिया, सिरी फोर्ट के सामने,नई दिल्ली-110016
वेबसाइट:www.fieo.com/cwc

भारतीय निर्यात संगठन परिसंघ
(एफआईइओ) पीएचक्यूहाउस
(तीसरी मंजिल )
एशियन गेम्स के सामने नई दिल्ली-110016 

English Summary: You will get a bumper income from cultivation of jowar, know all the information related to it Published on: 18 May 2020, 06:41 PM IST

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