रबी प्याज (Rabi Onion) में कई प्रकार के कीट व रोगों का आक्रमण होता है जिससे फसल की उपज पर विपरीत असर पड़ता है. प्याज की फसल में कीटों जैसे थ्रिप्स, कटवर्म कीट और नेमाटोड प्रमुख रूप से प्याज की फसल को नुकसान पहुंचाते है. तो आइये जानते है प्याज के प्रमुख कीट (Major Onion Insects) फसल को किस प्रकार से नुकसान करते है और कैसे इनका नियंत्रण किया जा सकता है.
कटुआ सूँडी या कटवर्म (Cut worm)
प्याज में कटुआ सूँडी या कटवर्म पौधे के सभी अवस्था में नुकसान पहुंचा सकता है किन्तु अंकुरण के समय यह कीट सबसे अधिक नुकसान करता है. यह लट्ट फसल को काट कर नष्ट कर देती है. खेत के या आसपास के खरपतवारों (Weeds) में ये लट्टे शरण पाती है और फसल के अंकुरण के साथ फसल को अनियमित छोटे छेद कर नुकसान पहुंचाती है. ये कीट दिन में धूप से बचने के लिए जमीन के अन्दर रहते है मगर रात को जमीन से ऊपर आकर पौधे के नीचे का भाग खाती रहती है.
इस कीट का व्यस्क काले भूरे रंग का चित्तीदार पतंगा होता है. इस पतंगा के आगे वाले पंख हल्के भूरे या काले भूरे तथा कीनारों पर काले चिन्ह होते है, वही पिछले पंख सफ़ेद होते है. मादा पतंगा पौधों, खरपतवारों, नम भूमि या भूमि की दरारों में मोतियों के समान अंडे देती है जो बाद में हल्के भूरे रंग के हो जाते है. कुछ दिनों बाद अंडे से लार्वा निकलते है. ये छोटे लार्वा हल्के भूरे व चिकने होते है लेकिन जब बड़े हो जाते है तो पीठ पर दो पीले रंग की धारियाँ बन जाती हैं. यह कीट लार्वा अवस्था में ही हानि पहुंचाता है. इन लट्ट (Larva) को छूने पर यह c आकार के मूड जाता है.
कटवर्म से नियंत्रण के उपाय (Control measures of Cutworm)
रोकथाम के लिए खेत और आसपास की जगह को खरपतवार मुख्त रखें. इसके नियंत्रण के लिए रोपाई के समय कार्बोफ्युरोन 3% GR की 7.5 किलो मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत में मिला दें. या कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 4% G की 7.5 किलो मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत में बिखेरें. या जैव-नियंत्रण के माध्यम से एक किलो मेटारीजियम एनीसोपली (Metarhizium anisopliae) को 50 किलो गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद में मिलाकर बुवाई से पहले खेत में मिलाएं.
खड़ी फसल में कीट दिखाई देने पर क्लोरपायरीफोस 20% EC की 1 लीटर मात्रा सिंचाई के पानी के साथ मिलकर प्रति एकड़ की दर से दें. छिड़काव के रूप में क्लोरपायरीफोस 20% EC @ 300 मिली या डेल्टामेथ्रिन 2.5 EC प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर करें. हर छिड़काव के साथ जैविक बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
थ्रिप्स कीट (Thrips)
एक छोटे आकार का कीट होता है, जो प्याज की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाता है. इसके शिशु और वयस्क दोनों रूप पत्तियों के कपोलों में छिपकर रस चूसते हैं जिससे पत्तियों पर पीले सफेद धब्बे बनते हैं, और बाद की अवस्था में पत्तियां सिकुड़ जाती है. यह कीट शुरू की अवस्था में पीले रंग का होता है जो आगे चलकर काले भूरे रंग का हो जाता है। इसका जीवन काल 8-10 दिन होता है. व्यस्क प्याज के खेत में ज़मीन में, घास पर और अन्य पौघो पर सुसुप्ता अवस्था (Dormancy period) में रहते है. सर्दियों में थ्रिप्स (तैला) कंद में चले जाते है और अगले वर्ष संक्रमण के स्त्रोत का कार्य करते है. यह कीट मार्च-अप्रैल के दौरान बीज उत्पादन और प्याज कंद पर बड़ी संख्या में वृद्धि करते हैं जिससे ग्रसित पौधों की वृद्धि रुक जाती है, पत्तियाँ घूमी हुई जलेबी जैसी नजर आती है और कंद निर्माण पुरी तरह बंद हो जाता है. भंडारण (Storage) के दौरान भी इसका प्रकोप कंदों पर बना रहता है.
थ्रिप्स कीट के रोकथाम उपाय (Preventive measures of Thrips insect)
प्याज में रोग एवं नियंत्रण हेतु गर्मी में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए. अधिक नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग ना करें क्योकि इससे थ्रिप्स कीट ज्यादा आते है. कीट दिखाई देने पर प्रोफेनोफोस 50 ई.सी. @ 45 मिली या लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% सी.एस. @ 20 मिली या स्पिनोसेड @ 10 मिली या फिप्रोनिल 5 एस.सी. SC या ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP @ 10 ग्राम प्रति 15 लीटर की दर से छिड़काव करें. जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. आवश्यकता अनुसार छिड़काव को दोहराए और दवा को भी बदलते रहे.
सूत्रकृमि (Nematode)
लगातार नमी वाली जगहों में ये सूत्रकर्मी पनप कर फसल की जड़ों को संक्रमित कर देते हैं. ये सूत्रकृमी (नेमाटोड) सूक्ष्म आकार के होते हैं और यह फसल की जड़ के आंतरिक भागों में रहकर जड़ों को नुकसान पहुंचाते रहते हैं. प्रभावित जड़ों पर गांठों का गुछा बन जाता है. पौधें की जड़ें पोषक तत्व (Nutrients) अवशोषित नहीं कर पाती है. इस कारण फूल और फलों की संख्या में बड़ी कमी आती है और पौधों की पत्तियां पीली हो जाती है, जिससे पौधा अपना भोजन भी उचित मात्रा में नहीं बना पाता है. इसके अलावा, नेमाटोड के संक्रमण के कारण अन्य फफूंद भी जड़ों में प्रवेश कर पौधे में रोग फैलाने की अधिक संभावना बढ़ आती है.
नेमाटोड या सूत्रकर्मी से प्रभावित पौधे सूख जाते हैं और उकटा रोग (Wilt disease) के लक्षण दिखाई देते हैं. पत्तियां पीली पड़कर सुकड़ने लगती है और पूरा पौधा बौना रह जाता है. अधिक संक्रमण होने पर पौधा सुखकर मर जाता है.
सूत्रकृमि का प्रभाव (Effect of Nematodes)
सूत्रकृमि पौधे की जड़ों पर आक्रमण करने के कारण पौधा जल और पोषक तत्व लेने की अपनी क्षमता खो देता है. सूत्रकृमि के आक्रमण से पत्तियों में पीलापन, पौधे बौने व झाड़ीनुमा अविकसित रह जाते है. फसल की उपज पर विपरीत असर पड़ता है. सामान्यतौर पर सूत्रकृमि से फसल को 20-30 % नुकसान होना स्वाभाविक है किन्तु रोग की अधिकता से 70-80 % तक भी फसल को नुकसान हो जाता है.
सूत्रकृमि से बचाव के उपाय (Preventive measures of Nematodes)
सूत्रकृमि से बचने का एक उपाय फसल चक्र है. इसमें ऐसी फसलों का चयन किया जा सकता है जिसमें सूत्रकृमि की समस्या ना होती हो. ये फसलें है- पालक, चुकंदर, ग्वार, मटर, मक्का, गेहूं आदि हैं. नीम, सरसों, महुआ या अरंडी की खली 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ खेत में डालने से सूत्रकृमि का प्रभाव कम हो जाता है. ग्रीष्मकाल मेँ गहरी जुताई (Deep ploughing) करने से सूत्रकृमि के साथ अन्य कीट व रोगों के बीजाणुओं को भी नष्ट किया जा सकता है. यह तरीका बड़ा प्रभावी पाया गया है. कार्बोफ्यूरान 3 % दानों को रोपाई पूर्व 10 किलो प्रति एकड़ की दर से खेत मेँ मिला दें. सूत्रकृमि के जैविक नियंत्रण के लिए 2 किलो वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम (Verticillium chlamydosporium) या 2 किलो पैसिलोमयीसिस लिलसिनस को 100 किलो अच्छी सड़ी गोबर के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिला दें.
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