अफीम एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल है, इसके दूध में लगभग 40 तरह के अल्कलॉइड्स पाए जाते हैं. इसका प्रयोग दर्द निवारक व आम दवाओं के रूप में किया जाता है. इसकी खेती हेतु सरकार के नारकोटिक्स विभाग से लाइसेंस प्राप्त करना जरूरी होता है. अफीम में मुख्यता काली मस्सी रोग, तना व डोडा सड़न और पर्णकुंचन रोग लगते हैं. जिससे अफीम के उत्पादन में भारी कमी आ जाती है. ये रोग निम्न प्रकार के है-
मृदुरोमिल आसिता या काली मस्सी रोग (Downey midew disease)
यह रोग फफूंद जनित रोग है तथा अफीम का मुख्य रोग है. यह रोग बीज से भी फैलता है. इस रोग का प्रकोप बढ़वार अवस्था से डोडा आने तक होता है. रोग के संक्रमण होने पर पहले पत्तियां पीले पड़कर मुड़ जाती है पौधों की बढ़वार बढ़वार रुक जाती है, जिससे पौधा छोटा व कमजोर रह जाता है. आगे चलकर एक माह की फसल की पत्तियों पर काले धब्बे बनकर फैलते हैं और अधिक पानी व नमी में रोग अधिक फैलता है. पत्तों के नीचे फफूंद नजर आती है. पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती है बाद में तना व डोडे भी सूखने लगते हैं. रोकथाम के उपाय अपनाने के लिए स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज ही बोये तथा बीज उपचार अवश्य करें. जिन खेतों में रोग का प्रकोप हो जाए वहां फसल चक्र अपनाएं और अगले तीन साल तक अफीम नहीं बोनी चाहिए. बुवाई से पहले एक किलो बीजों को 10 ग्राम एप्रोन 35 एसडी से उपचारित करें. फसल पर रोग के लक्षण नजर आते ही मेटालेक्सिल 4+ मेंकोजेब 64 डबल्यूपी (रिडोमिल गोल्ड) से 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 30, 50 और 70 दिन बाद स्प्रे करें. या मेंकोजेब 75 डबल्यूपी @ 800 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें और आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन बाद दोहराएं.
तना व डोडा सड़न रोग (Stem and Boll rot disease)
इस रोग में तना बीच में से सूखने लगता है एवं बदबू देने लगता है. बाद में डोडे में भी सड़न पैदा होने लगती है. इसके रोकथाम के लिए फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देते ही 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन का 15 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
चूर्णिल आसिता या भभूतिया रोग (Powdery mildew)
पत्तियों और डोडो पर सफेद चूर्ण जमा हो जाती है. रोकथाम हेतु फरवरी में 1 किलो घुलनशील गंधक का चूर्ण या 100 ग्राम कार्बेण्डजीम 50 डबल्यूपी का छिड़काव एक एकड़ खेत में कर दें.
पर्णकुंचन रोग (Leaf curl disease)
यह रोग विषाणु से होता है, जो सफ़ेद मक्खी, माहू जैसे कीटों से फैलता है. इससे रोगी पौधे छोटे रह जाते हैं पत्तियां मुड़ जाती है. नियंत्रण हेतु रोगी पौधों को शुरू से उखाड़ कर नष्ट कर देवें. इन रस चूसक कीटों को नियंत्रण करने के लिए एसिटामिप्रीड 20 एसपी 80 ग्राम या थायोमेथोक्सोम 25 डबल्यूजी 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें.
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