महंगाई और ज्यादा मांग के इस दौर में किसान जिल्दी-जल्दी फसल लेना चाहते हैं. जिसके चलते सही फसल चक्र नहीं अपनाया जा रहा है..इसकी वजह से लगातार मिट्टी का दोहन हो रहा है. जिससे अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में मौजूद जरूरी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. इस नुकसान को पूरा करने के लिए विभिन्न तरह के उर्वरकों का उपयोग किया जाता है. ये उर्वरक मिट्टी को सिर्फ आवश्यक पोषक तत्व जैसे: नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक आदि ही दे पाते हैं, लेकिन मिट्टी की संरचना, उसकी जल धारण क्षमता और मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मजीवों की संख्या नहीं बढ़ती. रासायनिक खादों द्वारा मिट्टी की संरचना में विपरीत बदलाव आ जाता है जिसकी वजह से मिट्टी में जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है. बहुत ज्यादा रासानिक पदार्थों के इस्तेमाल और गलत फसल चक्र की वजह से जमीन बंजर होती जा रही है. ये रसायनिक खाद महंगे दामों मे मिलती है और इससे पर्यावरण भी प्रदूषित होता है. इसलिए किसानों को वो तरीके अपनाने चाहिए जिनमें मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़े और ज्यादा खर्च भी ना हो. मिट्टी की ऊपजाऊ शक्ति बनाये रखने के लिए हरी खाद एक अच्छा विकल्प साबित हुआ है.
हरी खाद बनाने की प्रक्रिया
कुछ विशेष प्रकार के हरे पौधों को जब मिट्टी में दबाया जाता है तो नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ जाती है इसी क्रिया को हरी खाद देना कहते है. फसल तैयार होने के बाद लगभग 40-50 दिनों में फूल आने से पहले ही मिट्टी को पलट दिया जाता है. रासायनिक उर्वरकों के बजाय हम जैविक खादों जैसे- गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद आदि को उपयोग कर सकते हैं. इनमें हरी खाद का उपयोग सबसे सरल और अच्छा है. हरी खाद का इस्तेमाल करने से पशुधन की निर्भरता भी नहीं रहती.
हरी खाद से होने वाले फायदे (Benefits of green manure)
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हरी खाद न केवल नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों को मिट्टी में मिलाते है बल्कि मिट्टी की संरचना में सुधार भी करती है.
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गोबर की खाद और अन्य कम्पोस्ट की कम आपूर्ति से आज हरी खाद का महत्व और भी बढ़ गया है.
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यह फसल खरपतवारों से भी अधिक तेजी से वृद्धि करती है और विपरीत परिस्थतियों में उगने की क्षमता रखत्ती हैं.
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हरी खाद उगाने में खर्च बहुत कम आता है और लाभ ज्यादा मिलता है.
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हरी खाद के इस्तेमाल से मृदा भुरभुरी, अच्छा वायु संचार, जल धारण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता और क्षारीयता में सुधार एवं मृदा क्षरण भी कम होता है.
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हरी खाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है, जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति और उत्पादन क्षमता बढ्ने में अहम भूमिका है.
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हरी खाद के उपयोग से मृदा जनित रोगों में कमी देखी गई है.
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यह खरपतवारों की वृद्धि रोकने में भी सहायक हैं.
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हरी खाद के उपयोग से रासायनिक उर्वरकों से होने वाली लागत को कम किया जा सकता है.
हरी खाद फसल के आवश्यक गुण (Essential properties of green manure crop)
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हरी खाद के लिए चुनी गई फसल मिट्टी में दबाने से शीघ्र डिकम्पोज़ होनी चाहिए.
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चुनी गई दलहनी फसल में अधिकतम वायुमंडल से नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने की क्षमता वाली होनी चाहिए, ताकि जमींन को अधिक से अधिक नाइट्रोजन उपलब्ध हो.
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फसल की अधिक मात्रा में पत्तियां व कोमल शाखाएं निकल सकें जिससे हरा पदार्थ आसानी से मिट्टी में सड़ सकें
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हरी खाद के लिए चुनी गई फसल की जल मांग और पोषक तत्वों की मांग कम से कम होनी चाहिए.
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हरी खाद के लिए चुनी गई फसल स्थितियों जैसे अधिक ताप, कम ताप, कम या अधिक वर्षा, कीट व रोगों से सहन करने वाली हो.
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हरी खाद की फसल का बीज सस्ता हो और बाजार में आसानी से मिल सके.
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हरी खाद के लिए चुनी गई फसल किसी भी मिट्टी में आसानी से बढ़वार करने वाली हो.
कौनसी हरी खाद वाली फसल किस क्षेत्र के लिए चुने (Which green manure crop should be chosen for which area)
हरी खाद के लिए दलहनी फसलों में सनई, ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार आदि फसलों का उपयोग किया जाता है. इन फसलों की वृद्धि तेजी से हो जाती है. पत्तियां वजनदार और बहुत संख्या में रहती है, जिससे उर्वरक और पानी की आवश्यकता कम रहती है. दलहनी फसलों की जड़ों में गांठे होती है जिनमें स्थित बैक्टीरिया वायुमंडल से नाइट्रोजन स्थिरीकरण कर मृदा में उपलब्ध अवस्था में जमा करते है.
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जहां अधिक वर्षा होती है, उन इलाकों में सनई का उपयोग सही रहता है.
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ढैंचा को कम बारिश वाले इलाकों में और समस्याग्रस्त भूमि में बाया जा सकता है. क्षारीय इलाके में भी हरी खाद के तौर पर ढैंचे की बुवाई कर सकते हैं.
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ग्वार का उपयोग कम वर्षा वाले, रेतीली मिट्टी वाले और कम उपजाऊ इलाकों में किया जा सकता है.
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लोबिया को अच्छे जल निकास वाली क्षारीय मिट्टी में हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
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मूंग और उड़द को खरीफ या गर्मी के मौसम में उपयोग किया जाता है.
बुवाई की तैयारी और बीज की मात्रा (Sowing preparation and seed quantity)
ढैंचा की हरी खाद फसल के लिए 25 किलो प्रति एकड़ बीज की जरूरत होती है और सनई के लिए 32-36 किलो प्रति एकड़ बीज लगता है. मिश्रित फसल में बीज 12-16 किलो प्रति एकड़ लगेगा. खेत में हल्की सिंचाई या हल्की बारिश के बाद इनकी बुवाई करें.
हरी खाद की प्रयोग विधि (Green manure method)
हरी खाद को दो प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है.
पहला प्रयोग: भारत के अधिकतर क्षेत्र में यह विधि अधिक प्रयोग किया जाता है. इस विधि में जिस खेत में हरी खाद का उपयोग करना है उसी खेत में हरी खाद वाली फसल को उगाकर फूल आने से पहले या जब फसल मुलायम अवस्था में हो तब पाटा चलाकर या रोटोवेटर चलाकर या मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी में मिलाकर सड़ने के लिए छोड़ दें. दूसरा प्रयोग: जिस स्थान पर मुख्य फसल उगानी है उस स्थान से अलग हरी खाद की फसल उगाएं. यह विधि अधिक प्रचलित नहीं है, लेकिन दक्षिण भारत में इस विधि का उपयोग किया जाता है. इसमें हरी खाद की फसल अन्य खेत में उगाई जाती है और उसे उचित समय पर काट दिया जाता है. इसके बाद मुख्य खेत में हरी खाद के साथ पेड़, पौधों, झाड़ियों आदि की पत्तियां, टहनियां इकट्ठा करके मिट्टी में मिला दिया जाता है.
हरी खाद की फसलों से प्राप्त नाइट्रोजन की मात्रा (The amount of nitrogen from green manure crops)
ढैंचा की 20-25 टन हरे पदार्थ से 34-42 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है. इसी तरह सनई के 20-30 टन हरे पदार्थ से 35-52 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, लोबिया के 15-18 टन हरे पदार्थ से 30-35 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, ग्वार के 20-25 टन हरे पदार्थ से 27-35 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़, मूंग के 8-10 टन हरे पदार्थ से 14-20 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है.
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