जीवामृत एक जैविक खाद (Organic manure) है जो कि देशी गाय के गोबर, मूत्र, गुड़, बेसन तथा मिट्टी से मिलाकर बनाया जाता है, जोकि पौधों की वृद्धि और विकास में बहुत सहायक है, तथा पौधों की प्रतिरोधक क्षमता (Resistance capacity) को बढ़ाता है. जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ साथ मिट्टी की संरचना (Soil structure) सुधारने में काफी मदद करता है. यह पौधों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा करता है तथा पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाने का कार्य करता है, जिससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है.
जीवामृत बनाने की सामग्री (Jivamrit making material)
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प्लास्टिक का एक ड्रम (लगभग 200 लीटर)
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10 किलो देशी गाय का गोबर
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10 लीटर पुराना गौमूत्र
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1 किलो गुड या 4 लीटर गन्ने का रस (जीवाणुओ की क्रियाशीलता बढ़ाने के लिए)
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1 किलो बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी
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1 किलो दाल का आटा
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1 ढकने का कपड़ा
जीवामृत बनाने की विधि (Method ofJivamrit)
एक प्लास्टिक के 200 लीटर ड्रम को छायां में रखकर 10 किलो देशी गाय का ताजा गोबर, 10 लीटर पुराना गोमूत्र, 1 किलोग्राम किसी भी दाल का आटा (अरहर, चना (Gram), मूंग, उड़द आदि का आटा), एक किलो बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी तथा एक किलो पुराना सड़ा हुआ गुड़ को 200 लीटर पानी में अच्छी तरह से लकड़ी की सहायता से मिलाया जाता है. अच्छी तरह मिलाने के बाद इस ड्रम को कपड़े से इसका मुह ढक दें. इस घोल पर सीधी धूप (Direct sun light) नही पड़नी चाहिए. अगले दिन भी इस घोल को फिर से किसी लकड़ी की सहायता से दिन में दो या तीन बार हिलाया जाता है. लगभग 5-6 दिनों तक प्रतिदिन इसी कार्य को करते रहना चाहिए.
लगभग 6-7 दिन के बाद, जब घोल में बुलबुले उठने कम हो जाये तब समझ लेना चाहिए कि जीवामृत तैयार हो चुका है. जीवामृत का बनकर तैयार होना ताप पर भी निर्भर करता है अतः सर्दी में थोड़ा ज्यादा समय लगता है किन्तु गर्मी में 2 दिन पहले तैयार हो जाता हो जाता है.
जीवामृत बनाने में रखी जाने वाली सावधानियां (Precautions to be taken in making Jivamrit)
मिट्टी बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे से लेना चाहिए, क्योंकि बरगद व पीपल का पौधा हर समय ऑक्सीज़न देता है जिसके कारण जीवाणु (Bacteria) की संख्या अधिक पाई जाती है. मिश्रण को छाया में रख कर ड्रम के मुँह को सूती कपड़े से बांधा जाता है ताकि उसमें मक्खियाँ (fly), मच्छर अन्दर न जा सके. मिश्रण को दिन में दो बार लकड़ी के डंडे से हिलना जरूरी होता है, ताकि जीवाणु अपनी क्रियाशीलता बढ़ा सके. 2 किग्रा बेसन को 5 लीटर पानी में अच्छी तरह से मिलावें ताकि बेसन पूर्ण रूप से पानी में घुल जावे. यह सारे काम छाव में होने चाहिए. सूरज की सीधी धूप नहीं पड़नी चाहिए.
तरल जीवामृत का प्रयोग कैसे करें (How to use liquid Jivamrit)
तरल जीवामृत का प्रयोग दो तरीके से किया जा सकता है. पहला सिचाई (Irrigation) जल के साथ और दूसरा तरीका फसलों पर स्प्रे करके. फसल को दी जाने वाली प्रत्येक सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से उपयोग किया जा सकता है, अथवा इसे अच्छी तरह से छानकर टपक (Drip) या छिड़काव सिंचाई के माध्यम से भी प्रयोग कर सकते है, जो कि एकड़ क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है.
पर्णीय छिड़काव (Foliar spray) के रूप में अधिकतम फसलों में 10 % जीवामृत का स्प्रे लाभकारी होता है. यानि 10 लीटर जीवामृत को 100 लीटर पानी में मिलाकर पतियों पर छिड़काव करते है.
जीवामृत से होने वाले लाभ (Benefits of Jivamrit)
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यह फसलों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
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इसके उपयोग से फलों और फूलों की संख्या मे बढ़ोतरी होती है.
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मिट्टी में पौषक तत्व की उपलब्धता बढ़ाता है.
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बीजों की अंकुरण क्षमता (Germination capacity) को बढ़ाता है.
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फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है.
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मृदा की उर्वरा शक्ती (Fertility)में वृद्धि होती है.
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मृदा की भौतिक, जैविक, रासायनिक गुणों में भी सुधार करता है.
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इसक इस्तेमाल से मृदा मे उपस्थित हानिकारक रसायन नष्ट हो जाते है.
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