गिलोय समूह में रहने वाला आरोही पौधा है पुराने तने 2 सेमी व्यास वाले होते है शाखाओं के गठीले निशानों से जड़ें निकालती है तनों और शाखाओं पर सफ़ेद अनुलंब दाग होते है इसकी छाल सलेटी - भूरी या हल्की सफ़ेद, मस्सेदार होती है और आसानी से छिल जाती है.
इसकी पत्तियां 5 - 15 सेमी अंडाकार होती है. शुरू में ये झिल्लीदार होती है. किंतु समय के साथ कम या अधिक मांसल हो जाती है. इस पर राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की तरफ से 30 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान की जा रही है.
गिलोय की खेती के लिए जलवायु एवं मिट्टी
यह पौधा उप उष्णकटिबंधीय जलवायु में जैविक तौर से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी में उगाया जाता है.
गिलोय उगाने की सामग्री
तनों की कटाई जून -जुलाई के दौरान की जाती है जो पौधारोपण की सर्वश्रेष्ठ सामग्री है.दो गांठों सहित 6 -8 इंच की कटिंग सीधे रोपी जाती है.
गिलोय की नर्सरी की विधि
गिलोय के पौध तैयार करना:
मुख्य पौधे से जून - जुलाई में प्राप्त तने 24 घंटों के अंदर खेत में सीधे रोपे जाते हैं.
गिलोय पौधों की दर और पूर्व उपचार:
एक हेक्टेयर भूमि में पौधारोपण के लिए 2500 कलमों की जरूरत पड़ती है.
गिलोय की खेती के लिए खेत में पौधरोपण करना
मिट्टी : मध्यम काली से लाल
मिट्टी तैयार करना और उर्वरक का प्रयोग:
जमीन की अच्छी जुताई और खरपतवार से मुक्त किया जाना चाहिए। मिट्टी तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर 10 टन उर्वरक और नाइट्रोजन की आधी खुराक (75 किलो ) प्रयोग की जाती है.
पौधरोपण और दूरी :
गांठो सहित तने की कटिंग को सीधे ही खेत में बोया जाता है. बेहतर उपज के लिए 3 मी.* 3 मी. की दूरी सही मानी जाती है. उगाने के लिए पौधे को लकड़ी की खपच्चियों के सहारे की जरूरत होती है. झाड़ी या पेड़ उगाने से भी पौधे को सहारे मिल सकता है.
संवर्धन विधियां :
75 किलों नाइट्रोजन के साथ 10 टन उर्वरक की खुराक सही मानी जाती है अच्छी बढ़त के लिए करीब दो से तीन बार निराई - गुड़ाई की जरूरत होती है. बार – बार निराई व गुड़ाई करके कतारों में पौधों के बीच की दूरी को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए.
सिंचाई विधि :
यह फसल वर्षों जनित स्थितियों में उगाई जाती है. तथापि, अत्यधिक शीत और गर्म मौसम के दौरान आकस्मिक सिंचाई लाभकारी रहेगी.
रोग और कीट नियंत्रण :
किसी गंभीर कीट संक्रमण और बीमारी की जानकारी नहीं है.
फसल प्रबंधन
फसल पकना और कटाई :
तने की कटाई पतझड़ के समय की जाती है जब यह 2.5 सेमी.से अधिक व्यास का हो जाता है. आधार का हिस्सा फिर से बढ्ने के लिए छोड़ दिया जाता है.
कटाई पश्चात प्रबंधन :
तने को सावधानीपूर्वक छोटे टुकड़ों में कांटे और छाया में सुखाएं. इसे जूट के बोरें में रखकर ठंडे और हवादार भंडार गोदाम में रखा जा सकता है.
पैदावार :
पौधे से करीब दो वर्षो में प्रति हेक्टेयर करीब 1500 किलो ताजा तने की उपज होती है.जिसका शुष्क भार 300 किलों रह जाता है.
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