अफीम की खेती के लिए दुनियाभर में अपनी खास पहचान रखने वाला मध्य प्रदेश का मंदसौर जिला अब मसाला फसलों की खेती के जरिए देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी अपनी ख़ास पहचान बना रहा है. दरअसल, मंदसौर की मिट्टी में पैदा हुई लहसुन की डिमांड दक्षिण भारत के साथ-साथ दुबई, सिंगापुर में तेजी से बढ़ रही है.
बता दें कि यहां पैदा हुई लहसुन देश के दूसरे हिस्सों की तुलना में अधिक चमकदार, कड़क, तीखी तथा अधिक समय तक ख़राब नहीं होती है. यही वजह है कि 'गार्लिक मंदसौर' एक ब्रांड बनकर उभरा है. हाल ही में 'एक जिला, एक उत्पादन' के तहत जिले में लहसुन की खेती का चयन किया गया है. जिसके बाद मध्य प्रदेश सरकार मंदसौर जिले की लहसुन को दुनिया भर में एक अलग पहचान दिलाने के लिए ख़ास ब्रांडिंग कर रही है. इसके लिए राज्य सरकार के अलावा, जिला प्रशासन और स्थानीय एफपीओ (Farmer Producer Organization) विशेष प्रयास कर रहे हैं.
मंदसौर जिले की लहसुन क्यों ख़ास है?
मंदसौर गार्लिक फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के डायरेक्टर कीर्तिप पाटीदार ने कृषि जागरण से बातचीत में बताया कि यहां कि मिट्टी में सल्फर और पोटेशियम की अधिक मात्रा होने के कारण उत्पादित लहुसन में एक ख़ास अरोमा (सुगंध) होती है. जो इसे दूसरे जगहों के लहसुन की तुलना में अलग बनाता है. मंदसौर के कॉलेज ऑफ हार्टिकल्चर के कृषि वैज्ञानिक डॉ एस.एस. कुशवाह का कहना है कि मंदसौर की लहसुन सुन्दर, सफेद और कड़क है, इसमें ऑयल और तीखापन ज्यादा होता है. वहीं, अन्य जगहों की लहसुन की तुलना में इसे 15 महीनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
दरअसल, यहां कि मिट्टी में वाटर होल्डिंग कैपैसिटी ज्यादा है तथा पोटाश की मात्रा उपयुक्त है. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ जी.एस. चुण्डावत का कहना है कि यहां कि लहसुन इसलिए भी अलग है क्योंकि यहां कि मिट्टी में रासायनिक तत्वों की मात्रा बेहद कम पाई जाती है. मंदसौर के उद्यानिकी विभाग के उप-संचालक मनीष चौहान का कहना है कि मंदसौर की लहसुन पूरे विश्व में एक अलग पहचान बनाए, इसके लिए विभाग प्रयासरत है.
लहसुन की ब्रांडिंग के लिए ख़ास प्रयास
राज्य सरकार यहां की लहसुन को दुनियाभर में ख़ास पहचान दिलाने के लिए ब्रांडिंग पर काम कर रही है. गार्लिक मंदसौर की अलग ब्रांडिंग के लिए अच्छी पैकेजिंग, क्वालिटी में निखार, रखरखाव, एक्सपोर्ट सुलभता के लिए जिला प्रशासन कोशिशें कर रहा है. जिला प्रशासन का कहना है कि गार्लिक मंदसौर देश के साथ विदेशों में भी एक ब्रांड बनकर उभरे, इसके लिए तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं.
गौरतलब है कि मंदसौर जिले में तकरीबन 955 गांवों में 30 हजार से अधिक किसान लहसुन की खेती करते हैं. वहीं जिले के 18 हजार हेक्टेयर रकबे में लहसुन की खेती होती है. जिससे हर साल 1 लाख 82 हजार मीट्रिक टन लहसुन का उत्पादन होता है. देश की 10 फीसदी लहसुन का उत्पादन मंदसौर और उसके आसपास के जिलों में होता है. इधर, मंदसौर मंडी व्यापारी संघ के उपाध्यक्ष संतोष गोयल का कहना हैं कि लहसुन की ब्रांडिंग से जिलें को भरपूर फायदा मिलेगा. इससे जिले की लहसुन को पूरी दुनिया में एक अलग पहचान मिलेगी.
चीन की तर्ज पर होगी खेती
मंदसौर गार्लिक फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के डायरेक्टर कीर्तिप पाटीदार ने आगे बताया कि इसी साल अप्रैल महीने में नाबार्ड से एफपीओ रजिस्टर्ड कराया गया है और बेहद कम समय में कंपनी के प्रयास को देखते हुए जिले के तकरीबन 1000 किसान जुड़ गए हैं. उन्होंने बताया कि एफपीओ लहसुन के गुणवत्तापूर्ण और अधिक उत्पादन से लेकर ब्रांडिंग, पैकेजिंग, प्रोसेसिंग, स्टोरेज, मार्केटिंग आदि पर काम करेगी.
कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर मंगल पाटीदार ने बताया कि जिले में ज्यादातर किसान पारंपरिक तरीके से खेती करते हैं. कंपनी किसानों को लहसुन की एकीकृत खेती तरफ मोड़ने का प्रयास कर रही है. आज चीन में लहसुन की एकीकृत खेती होती है, इस वजह से वहां की लहसुन की दुनियाभर में एक अलग धाक है. लहसुन की एकीकृत खेती के लिए मिट्टी परीक्षण, सही किस्मों का चुनाव, बीज उपचार, पोषक प्रबंधन, सिंचाई की आधुनिक पद्धतियों, कीट प्रबंधन जैसी जानकारियों से किसानों को अवगत कराया जाएगा.
लहसुन की इन किस्मों की होती है खेती
मंगल पाटीदार ने बताया कि जिले में बड़े पैमाने पर लहसुन की खेती होती है. यहां लहसुन की चार क़िस्मों की खेती होती है, इसमें देशी, रियावन, जी-2 और ऊटी जैसी किस्में शामिल हैं. किसानों को ऊटी किस्म की लहसुन के अच्छे दाम मिलते हैं, जो मध्य अगस्त तक लगाई जाती है. दक्षिण भारत में इसकी खेती बड़े स्तर पर होती है. वहीं इसकी डिमांड ज्यादा रहती है. इसकी कली दूसरी किस्मों के मुकाबले बड़ी होती है. उन्होंने बताया कि इस साल कंपनी ने 40 से 50 टन लहसुन अच्छे दामों में बैंगलोर, मैंगलुरु समेत कई मंडियों में बेचीं. जिसका किसानों को सीधा लाभ हुआ है. किसानों को 14000 से 15000 हजार प्रति क्विंटल तक के भाव मिले हैं. वहीं इस साल दुबई, सिंगापुर से 30 से 40 टन की डिमांड है.
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