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जैविक तरीके से हानिकारक कीटों का नियंत्रण कैसे करें?

अनाज, फलों, सब्जियों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में कीटों से वाली हानि के नियंत्रण के लिये किसानों द्वारा अत्यधिक जहरीले रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जा रहा है, जिससे कई प्रकार की समस्याओं जैसे कीटों में कीटनाशकों में बढ़ती प्रतिरोधकता, प्राकृतिक शत्रु कीटों एवं परागण करने वाले कीटों तथा लाभदायक कीटों पर प्रतिकूल प्रभाव, रसायनों द्वारा मानव के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव, भूमि की गुणवत्ता खराब आदि है. हमारे देश के पंजाब राज्य में रासायनिक कीटनाशी का कहर बहुत बढ़ गया है और कैंसर जैसी भंयकर बीमारी से ग्रसित हैं. इस प्रकार की समस्या पर काबू पाने का सिर्फ एक ही तरीका है जैविक (Organic farming) या रसायन विहिन तरीके से कीटों का प्रबंधन करना.

हेमन्त वर्मा
Trap crop
Trap crop

अनाज, फलों, सब्जियों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में कीटों से वाली हानि के नियंत्रण के लिये किसानों द्वारा अत्यधिक जहरीले रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जा रहा है, जिससे कई प्रकार की समस्याओं जैसे कीटों में कीटनाशकों में बढ़ती प्रतिरोधकता, प्राकृतिक शत्रु कीटों एवं परागण करने वाले कीटों तथा लाभदायक कीटों पर प्रतिकूल प्रभाव, रसायनों द्वारा मानव के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव, भूमि की गुणवत्ता खराब आदि है. हमारे देश के पंजाब राज्य में रासायनिक कीटनाशी का कहर बहुत बढ़ गया है और कैंसर जैसी भंयकर बीमारी से ग्रसित हैं. इस प्रकार की समस्या पर काबू पाने का सिर्फ एक ही तरीका है जैविक (Organic farming) या रसायन विहिन तरीके से कीटों का प्रबंधन करना.

पंचगव्य (Panchagavya)

पंचगव्य का क्षेत्र कृषि में अत्यधिक प्रभावशाली महत्व है. पंचगव्य गाय से प्राप्त 5 पदार्थों जैसे- गौमूत्र, गोबर, दही, दूध एवं घी इन सभी को मिलाकर तैयार किया जाता है. पंचगव्य एक कार्बनिक उत्पाद होता है. इसमें किसी भी प्रकार के रसायन का उपयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाता है. इसका उपयोग कीटनाशी के रूप में किया जाता है, जिससे पौधों को हानि पहुंचाने वाले कीटों का नियंत्रण होता है.

मट्ठा (Whey)

मट्ठा, छाछ, दही आदि नामों से जाना जाने वाला यह उत्पाद भी कीट नियंत्रण में अपनी अहम भूमिका निभाता है. यह मिर्च, टमाटर आदि फसलों में लगने वाले कीटों तथा रोगों की रोकथाम में अधिक प्रभावी सिद्ध हुआ है. 100 से 150 मि.मी. छाछ को 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से नियंत्रण होता है. यह उपचार सस्ता व सरल होता है वो भी बिना किसी प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण के.

गौमूत्र (Cow urine)

गौमूत्र को काँच की बोतल में भरकर धूप में रख सकते हैं. जितना पुराना गौमूत्र होगा उतना ही अधिक असरकारी होगा. 12 से 15 मि.मी. गौमूत्र को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रेयर की सहायता से फसलों के ऊपर छिड़का जाता है जिससे पौधों में कीट प्रतिरोघी क्षमता विकसित हो जाती है, जिससे कीटों के प्रकोप की संभावना कम हो जाती है.

भू-परिष्करण क्रियाएँ (intercultural operation)

भू-परिष्करण क्रियाओं में हम गहरी जुताई करते हैं, जिससे कीटों की भूमि के अन्दर गढी हुई कई अवस्थाएँ ऊपर आ जाती हैं और फिर उन्हें पंछियो द्वारा पकड़कर खाकर खत्म कर दिया जाता है.

फसल चक्र (Crop rotation)

एक ही फसल अथवा एक ही समुदाय की फसलों को लगातार एक ही स्थान या क्षेत्र में बुवाई करने से उनमें लगने वाले कीटों का प्रकोप हर साल बढ़ जाता है, क्योंकि कीटों को निरन्तर भोजन मिलता रहता है. इसलिये फसल-चक्र अपनाकर हम फसलों को अदल-बदल कर बोते हैं, जिससे कीटों का प्रकोप कम किया जा सकता है.

ट्रेप/फांस फसलें (Trap crops)

इससे मुख्य फसल को कीट के आक्रमण से बचाया जा सके उसके लिये जैसे एक पंक्ति में गेंदा तथा 16 पंक्ति में टमाटर के पौधे लगाते हैं, जिससे कीट गेंदे पर आते हैं, टमाटर पर नहीं आते है.

इन्टर क्रापिंग (Inter cropping)

दक्षिणी भारत में अन्तर फसलों के रूप में कपास के साथ अन्तर फसलों के रूप में मूंग, उड़द तथा लोबिया लगाते हैं, जिससे कपास में लाल सूंडी का आक्रमण कम हो जाता है.

फसल बोने का समय (Time of Sowing)

समय पर जल्दी बुवाई करने से कीटों द्वारा होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है जैसे- चने की जल्दी बुवाई करने से चने की सूंडी का प्रकोप कम किया जा सकता है तथा इसी प्रकार सरसों की जल्दी बुवाई करने से माहू कीट के आक्रमण को कम किया जा सकता है.

कीट प्रतिरोधी किस्में (Resistance variety)

प्रतिरोधी किस्में ऐसी किस्में होती है, जिन पर कीटों का प्रकोप होता ही नहीं है या कम होता है या उनमें कीटों के प्रकोप को सहन करने की क्षमता होती है. इस प्रकार हम बिना किसी रसायन के प्रयोग से प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करके भी कीट के प्रकोप को कम कर सकते हैं.

निकोटीन (Nicotine)

निकोटीन लगभग तम्बाकू की 15 किस्मों से मिलता है. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर बनाकर पानी में घोलकर इसका उपयोग किया जाता है. ये कीट के शरीर में प्रवेश करके उसके तंत्रिका तन्त्र को प्रभावित करता है, जिससे कीट को लकवा मार जाता है और कुछ समय बाद कीट की मृत्यु हो जाती है. इनका प्रयोग माहू कीट के नियंत्रण के लिये किया जाता है.

पायरेथ्रम (pyrethrum)

यह मुख्यतः गुलदाउदी के फूल से तैयार किया जाता है. इसका प्रयोग करने से तुरन्त ही अपना शक्तिशाली प्रभाव दिखाता है. यह मुख्यत पायरेथ्रम का स्राव तथा क्ले मिट्टी के पाउडर के मिश्रण से बना होता है, इसे डस्ट, फुहार तथा ऐरोसोल के रूप में प्रयोग करते हैं. रेटिनॉल (retinol)

यह मुख्यत पान लता की जड़ों से तैयार किया जाता है. जिसका सामान्यत उपयोग मछली विष और पत्ती खाने वाली सूंडी के लिये किया जाता है. इसकी पीसी हुई जड़ों के एक भाग के पाउडर और क्ले पाउडर तथा जिप्सम के 5 भाग के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है.

रिसिनॉल (Ricinol)

यह अरण्डी की पत्तियों से तैयार किया जाता है जो कि कोडलिंग मोथ के लार्वा के विरूद्ध उपयोग में लाया जाता है.

नीम उत्पाद (Neem products)

नीम के बीज और नीम सीड करनेल एक्सट्रेक्ट का प्रयोग मुख्यतः काटने व चबाने वाले कीटों को नियंत्रण करने के लिये प्रयोग में लाया जाता है. नीम की 10 से 12 किलोग्राम पत्तियों को 200 लीटर पानी में 4 दिन तक भिगोकर रखें. पानी हरा पीला होने पर उसे छानकर 1 एकड़ की फसल में छिड़काव करने से इल्ली की रोकथाम की जा सकती है.

मिर्च या लहसुन (Chilli & Garlic)

500 ग्राम हरी मिर्च व 500 ग्राम लहसुन को पीसकर चटनी बनाकर पानी में घोल बनाते हैं  फिर इसे छानकर 100 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करने से कीटों का नियंत्रण होता है.

English Summary: How to control harmful pests without chemical products Published on: 31 July 2021, 07:06 PM IST

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