Cucumber Farming: कद्दूवर्गीय फसलों में खीरे का एक महत्वपूर्ण स्थान है, इसकी खेती देश भर में की जाती है. गर्मी के मौसम में खीरे की काफी अधिक डिमांड रहती है. Kheera ki Kheti किसान खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में ही कर सकते हैं. तेज धूप और चिल्लाती गर्मी में शरीर को पानी की अधिक आवश्यकता होती है, ऐसे में रसदार फल और सब्जियों की मांग काफी अधिक बढ़ जाती है. खीरे में 80 प्रतिशत तक पानी पाया जाता है, जिससे गर्मी के मौसम में इसकी मांग बाजारों में काफी ज्यादा हो जाती है.
गर्मियों में किसान खीरे की खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. आइये कृषि जागरण के इस आर्टिकल में जानते हैं, खीरे की खेती कैसे की जाती है और इसकी उन्न्त किस्में कौन-सी है.
खीरे की खेती के लिए उपयुक्त तापमान
खीरे की खेती के लिए मैदानी क्षेत्रों को चुना जाता है, जहां इसकी खेती साल में 2 बार की जाती है. इसकी पहली बुआई गर्मी के मौसम में फरवरी से मार्च तक की जाती है, वहीं दूसरी जून-जुलाई में की जाती है. इस कद्दूवर्गीय फसल के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32 से 40 डिग्री सेल्सियस माना जाता है. अधिक तापमान या अधिक बारिश के चलते इसकी खीरे की फसल में रोग और कीटों को लगने का खतरा बढ़ जाता है.
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खीरे की खेती के लिए उत्तम भूमि
खीरे की खेती के लिए सबसे उत्तम भूमि दोमट और बलुई दोमट को माना माना जाता है, इससे जल निकासी आसान हो जाती है. किसानों को खीरे की बुवाई करते वक्त प्रत्येक गड्ढे में लगभग 3 से 4 बीजों को लगाना चाहिए. जब इसके बीज अंकुरित होने शुरू हो जाए और बाहर आने लगे, तो 2 को छोड़कर बाकियों को उखाड़ देना चाहिए. अब आपको अच्छे उत्पादन के लिए इसके खेत में 60 किलो प्रति हेक्टयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए. आपको खीरे की खेती में पहला छिड़काव बुवाई के समय, दूसरा पत्तियां आने पर और तीसरा फूल आने पर ही करना है.
खीरे की उन्नत किस्में
भारत में खीरे की उन्नत किस्मों में पूसा संयोग, पूसा बरखा, पूसा उदय, पंजाब सलेक्शन, पूना खीरा, खीरा 90, खीरा 75, पीसीयूएच- 1, कल्यानपुर हरा खीरा, स्वर्ण पूर्णिमा, स्वर्ण अगेती, स्वर्ण पूर्णा और स्वर्ण शीतल आदि शामिल है. खीरे की हाइब्रिड किस्म पूसा संयोग को माना जाता है, जो 50 दिन में ही पककर तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक किसानों को पैदावार प्राप्त होती है.
खीरे की निराई और गुड़ाई
किसानों को खीरे के खेत से खरपतवार को निकालते रहना चाहिए. गर्मी के मौसम में फसल में 15 से 20 दिनों के अंतर से लगभग 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. वहीं बरसात के मौसम में इसकी फसल में 15 से 20 दिनों के अंतर से 4 से 5 बार निराई-गुड़ाई करनी आवश्यक होती है.
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