बैंगन विभिन्न रंग, आकार एवं आकृतियों में पाई जाने वाली एक बहुवर्षीय फसल है. इसकी खेती के दौरान इनमें रोग लगने का खतरा रहता है, जिससे इसकी उत्पादकता पर बहुत प्रभाव पड़ता है. आज हम आपको बैंगन में लगने वाले रोग और उससे बचाव के तरीके के बारे में बताने जा रहे हैं.
आर्दगलन
यह रोग पीथियम अफेनिडर्मेटम नामक कवक से उत्पन्न होता है. यह मुख्यत: पौधषाला में उगे पौधों पर लगता हैं. इसके कारण पौधे छोटी अवस्था में ही मर जाते हैं. कुछ पौधे के तने वाले हिस्से में पीले-हरे रंग के विक्षत बनने लगते है.
बचाव
बैंगन के बीज को बुवाई से पूर्व कैप्टान से उपचारित करके ही बोयें. जहाँ तक हो सके तो बीजों की बुवाई के समय उचित जल निकास युक्त भूमि से 10-15 सेमी. ऊंचाई पर बुवाई करें. आप बीजों को बुवाई से पूर्व 50 डिग्री सेल्सियस तापमान के गर्म पानी से 30 मिनट तक उपचारित भी कर सकते हैं.
फोमोप्सिस झुलसा रोग
यह रोग फोमोप्सिस वेकसेन्स नामक कवक द्वारा उत्पन्न होता हैं. इससे रोगी पौधों की पत्तियों पर छोटे छोट गोन भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं एवं अनियमित आकार के काले धब्बे पत्तिायों के किनारों पर दिखाई पड़ने लगते हैं. इस रोग का प्रकोप पौधषाला में भी होता हैं, जिसके कारण पौधे झुलस जाते हैं.
बचाव
पौधों पर कैप्टान का 7 से 8 दिन में छिड़काव करें. आप रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला भी सकते हैं. रोगप्रतिरोधी किस्में जैसे 'पूसा भैरव' और 'फ्लोरिडा मार्केट' का चयन कर सकते हैं.
पत्ती धब्बा रोग
यह कवक से फैलने वाला रोग है. इसके कारण पत्तियों पर अनियमित आकार के भूरे धब्बे बन जाते हैं और ये धब्बें आपस में मिलकर विक्षत का रूप धारण कर लेते हैं, जिससे पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं. इससे रोगी फल पीले पड़ जाते हैं तथा पकने से पूर्व ही गिरने लगते हैं. यह कवक फलो में सड़न भी उत्पन्न कर देता हैं तथा फलों का आकार छोटा रह जाता है, जो किसान की पैदावार पर असर डालता है.
बचाव
खेत में खरपतवारों की रोकथाम नियमित रूप से करते रहना चाहिए तथा रोगी पत्तिायों को तोड़ कर जला देना चाहिए. आप डाइथेन जॅड, फाइटोलोन या ष्लाइटोक्स आदि के घोल को 7 से 8 दिन के अंतराल पर पौधों पर छिड़काव कर सकते हैं.
स्कलेरोटीनिया अगंमारी रोग
यह रोग स्कलेरोटीनिया नामक कवक द्वारा उत्पन्न होता हैं, इस रोग के लक्षणों में संक्रमण स्थान पर शुष्क विवर्णित धब्बा बनता है, जो धीरे - धीरे तने या शाखा को घेर लेता हैं तथा ऊपर नीचे फैल कर संक्रमित भाग को सम्पूर्ण नष्ट कर देता हैं.
बचाव
इस रोग के रोकथाम हेतु फसल अवशेष, खरपतवार संक्रमित फल इत्यादि को एकत्रित कर के जला देना चाहिए तथा खेत की गहरी जुताई कर दें ताकि मिट्टी में मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाए. प्याज, मक्का, पालक इत्यादि के साथ फसल चक्र भी अपनाना चाहिए.
उक्टा या म्लानी रोग
यह रोग वर्टिसीलियम डहेली नामक कवक द्वारा उत्पन्न होता है, इस रोग का संक्रमण मुख्यत: जड़ों एवं तने पर होता है. इसके संक्रमण से पौधा बौना रह जाता है और सामान्यत: फलोत्पादन नहीं करता और पौधे के पुष्प तथा फल विकृत होकर गिर जाते हैं.
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बचाव
यह एक मृदोड़ रोग है इसलिए मृदा उपचार टाइकोड्रमा तथा स्यूडोमोनास फ्लरोसेंस द्वारा किया जाता हैं. रोग के लक्षण दिखने पर पौधों पर बेनटेल का छिड़काव करना चाहिए.
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