देश के किसानों के लिए चेना की खेती उनकी आमदनी बढ़ाने में अच्छा विकल्प है. देखा जाए तो अन्य धान्यों फसलों के समान ही चीना की खेती/ Chena Ki Kheti भी दाने के लिये की जाती है. बहुत कम समय में तैयार होने के कारण इसका उपयोग मनुष्य आहार एवं पशुओं के चारे के लिये किया जाता है. इसके दानों को पीसकर रोटी बनायी जाती है. वहीं, कुछ क्षेत्रों में इसे चावल की तरह उबालकर व भूनकर भी खाया जाता है. सघन खेती/ Intensive Farming के लिये सघन फसल चक्र के उपयुक्त है. बता दें कि जल सम्बन्धी आवश्यकता भी कम है. सिंचित क्षेत्रों में गर्मियों में व असिंचित क्षेत्रों में खरीफ में उगा सकते हैं. इसके दाने मुर्गियों का अच्छा आहार है. इसमें प्रोटीन 12.5 तक व लाइसीन नामक अमीनो अम्ल 4. 6% काफी पाया जाता है. इसमें 68.8% तक कार्बोहाइड्रेट व 1.2% तक वसा होती है.
भारत को अधिकांश वैज्ञानिक इसका जन्म स्थान मानते है. जंगली जाति पैनिक साइलोपोडियम (Psilopodium) से इसका जन्म मानते हैं. यह पौधा भारत, बर्मा व मलेशिया में पाया जाता है.
देश के इन राज्यों में की जाती है चीना की खेती
चीना की खेती भारत, चीन, जापान व पश्चिमी यूरोप में की जाती है. वहीं, भारत में चीना की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में की जाती है. चीना का क्षेत्रफल भारत में लगभग 96 हजार हैक्टर है. उत्तर प्रदेश में मैनपुरी, अलीगढ़ और लखनऊ जिलों में चीना अधिक उगाया जाता है. उत्तर प्रदेश में इसका क्षेत्रफल लगभग 4 हजार हैक्टर तक फैला है.
चीना की खेती के लिए जलवायु
देश के विभिन्न भागों में चीना की खेती खरीफ और रबी दोनों ही ऋतुओं में की जाती है. यह एक शुष्क व गर्म जलवायु सहन करने वाली फसल होने के कारण ऐसे स्थानों पर उगाई जाती है जहां पर वर्षा कम होती है. इसलिये जिन स्थानों पर अन्य फसलों को पैदा नहीं किया जा सकता; वहां पर इसकी खेती की जा सकती है.
चीना की खेती के लिए भूमि
अन्य लघु धान्य फसलों के समान ही चीना के लिए अधिक उपजाऊ और उत्तम भूमि की आवश्यकता नहीं होती है. इसकी खेती अधिकतर कमजोर भूमियों पर जैसे लाल दोमट, हल्की दोमट और रेतीली दोमट आदि पर की जाती है. मृदा में जल निकास का प्रबंध होना आवश्यक है.
चीना का उन्नत किस्में
वैसे तो चीना की कई तरह की उन्नत किस्में पाई जाती है. जो कुछ इस प्रकार से हैं...
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को० 1- यह किस्म लगभग 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है. पौधों की ऊंचाई लगभग 85 सेमी होती है. एक हेक्टेयर से लगभग 10-12 कु० दाना तथा 30-40 कु० भूसा प्राप्त हो जाता है.
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एम० एस० 4872- यह किस्म 65-70 दिन में पककर तैयार हो जाती है. पौधों की ऊंचाई लगभग 95 सेमी० होती है . एक है० से 11 कु० दाना तथा 30-40 कु० भूसा मिल जाता है.
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एम० एस० 4884-55-60 दिन में पककर तैयार हो जाती है. एक है० से लगभग 10-12 कु० दाना मिल जाता है.
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पी० वी० 196- लगभग 60-65 दिन में पककर तैयार हो जाती है. एक है० से लगभग 12-15 कु० दाने की उपज मिल जाती है.
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पी० वी० 1685- यह किस्म 65-70 दिन, में पककर तैयार हो जाती है. पौधों की ऊंचाई लगभग 80 सेमी होती है . एक है० से 15 कु० दाना तथा 35-40 कु० भूसा मिल जाता है.
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BR 7 – फसल अवधि 65-70 दिन, अर्ध बौनी 18-20 पत्तियाँ प्रति पौधा, पौधे की” सेमी, बाल की लम्बाई 22-25 सेमी, उपज 20-22 कु० /है० तक है. देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनाई जाने वाली अन्य प्रमुख उन्नतशील जातियाँ वन्दना PV 18, P 7 36, राम चेना, श्याम चेना आदि हैं. तमिलनाडु की सी० ओ० 2 भी अच्छी किस्म है अच्छी पैदावार के लिए अच्छी बीज शैया तैयार करना आवश्यक है.
चीना के लिए खेत की तैयारी
मानसून की वर्षा के बाद दो या तीन जुताई करके खेत तैयार करते हैं. फसल के बाद पलेवा करके खेत तैयार किये जाने चाहिए.
चीना का बीज की मात्रा
8 से 10 किग्रा बीज प्रति हे० पर्याप्त होता है. मिश्रित फसल में 3-4 किग्रा प्रति हे० प्रयोग करते हैं.
बोने का समय
खरीफ की फसल के लिए 1 से 15 जुलाई और ग्रीष्मकालीन फसल के लिये 15 अप्रैल का समय उपयुक्त है. रबी की फसल काटते ही चीना बोया जा सकता है.
बोने की विधि
इसकी बुआई अधिकतर छिटकवाँ ढंग से की जाती है. परन्तु पंक्तियों में बोने से इसकी पैदावार अच्छी होती है. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सेमी रखनी चाहिए . इसको बैलों के पीछे कुंड में भी बोया जा सकता है. बीज 2-3 सेमी0 गहरा बोया जाता है. पंक्ति में पौधे की दूरी 8-10 सेमी रखते हैं.
चीना की खेती के लिए खाद
सिंचित दशाओं में 50 किग्रा नाइट्रोजन, 30 किग्रा फास्फोरस और 20 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए. नाइट्रोजन की आधी या 2/3 मात्रा बोते समय व शेष आधी या 1/3 मात्रा पहली सिंचाई पर देनी उपयुक्त है. फास्फेटिक व पोटाश उर्वरक बुआई पर ही भूमि में बीज से 3-4 सेमी की गहराई पर देते हैं . जस्ते की कमी व झुलसे से प्रभावित क्षेत्रों में बुआई के समय 15 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें.
चीना में सिंचाई
खरीफ की फसल के लिए सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं. वर्षा न होने पर; दानों में दूध पड़ने की अवस्था में सिंचाई आवश्यक है. गर्मी में 2-4 सिंचाई, जलवायु एवं भूमि पर निर्भर करती है. पहली सिंचाई बोने के 20 दिन बाद करनी चाहिये. बाद की सिंचाइयाँ 15-20 दिन के अंतर पर करते हैं. इसकी जड़ें उथली होती हैं. अतः हल्की सिंचाई करनी चाहिये. दानों में दूध के समय (milking stage) पर मृदा में नमी की कमी नहीं होनी चाहिये .
निराई-गुड़ाई
शुरू में एक या दो बार निराई करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं. साधारणतया निराई-गुड़ाई इस फसल में नहीं करते हैं .
फसल चक्र
(i) कम वर्षा वाले स्थानों के लिये- (1) चीना-गेहूँ/जौ/चना, (2) चीना- लाही/तारामीरा .
(ii) वर्षा वाले स्थानों के लिये – (1) मक्का – आलू – चीना, (2) मक्का-गेहूँ-चीना, (3) मक्का- लाही- गेहूँ- चीना.
चीना की कटाई
कटाई-मड़ाई-फसल 65-75 दिन में पककर तैयार हो जाती है. बाली के ऊपर बीज पकने पर बिखरने लगते हैं नीचे के बीज व पैनीकल जब तक नहीं पकते . अतः 2/3 भाग बीज पकने पर फसल काट लेनी चाहिए. जून-जौलाई तक इसकी फसल पककर तैयार हो जाती है. पकने पर हँसिये से पूरा पौधा काटकर बालियों को अलग कर लेना चाहिये . दाना बालियों को पीटकर अलग किया जाता है.
चीना की उपज
किसान चीना की उन्नत किस्मों से करीब दाना 10-12 कु० / हे० तक उपज प्राप्त कर सकते हैं.
चीना में कीट-पतंगे और बीमारी
इस फसल में विशेषतया कोई कीट या बीमारी नहीं लगती कभी-कभी कंडुआ (Smut) या गेरुई (Rust) का प्रकोप देखा गया है. तना मक्खी का प्रकोप भी कभी-कभी हो जाता है. उसके लिए 0.15% थायोडान के घोल का छिड़काव करना चाहिए. कंडुवा के लिये बुआई के समय बीज को सेरेसान 2.5 ग्रा०/किग्रा बीज की दर से उपचारित करें. गेरुई के लिये 0.2% डाइथेन एम० -45 का छिड़काव करें.
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