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जीवामृत के फायदे एवं जीवामृत बनाने की विधि

जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है. जिसे गोबर के साथ पानी मे कई और पदार्थ जैसे गौमूत्र, बरगद या पीपल के नीचे की मिटटी, गुड़ और दाल का आटा मिलाकर तैयार किया जाता है. जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ साथ मिट्टी की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है.

हेमन्त वर्मा
jeevamrut

जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है. जिसे गोबर के साथ पानी मे कई और पदार्थ जैसे गौमूत्र, बरगद या पीपल के नीचे की मिटटी, गुड़ और दाल का आटा मिलाकर तैयार किया जाता है. जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ साथ मिट्टी की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है. यह पौधों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा करता है तथा पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाने का कार्य करता है, जिससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है. फसल को दी जाने वाली प्रत्येक सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से उपयोग किया जा सकता है, अथवा इसे अच्छी तरह से छानकर टपक या छिड़काव सिंचाई के माध्यम से भी प्रयोग कर सकते है, जो कि एकड़ क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है. छिड़काव के लिए 10 से 20 लीटर तरल जीवामृत को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है.

तरल जीवमृत बनाने की सामग्री

  • प्लास्टिक का एक ड्रम (लगभग 200 लीटर)

  • 10 किलो देशी गाय का गोबर

  • 10 लीटर पुराना गौमूत्र

  • 1 किलो गुड या 4 लीटर गन्ने का रस (जीवाणुओ की क्रियाशीलता बढ़ाने के लिए)

  • 1 किलो बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी

  • 1 किलो दाल का आटा

  • 1 ढकने का कपड़ा

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तरल जीवामृत बनाने की विधि

सबसे पहले एक प्लास्टिक बड़ा ड्रम लिया जाता है जिसे छायां में रखकर दिया जाता है. इसके बाद 10 किलो देशी गाय का ताजा गोबर, 10 लीटर पुराना गोमूत्र, 1 किलोग्राम किसी भी दाल का आटा (अरहर, चना, मूंग, उड़द आदि का आटा), 1 किलो बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी तथा 1 किलो पुराना सड़ा हुआ गुड़ को 200 लीटर पानी में अच्छी तरह से लकड़ी की सहायता से मिलाया जाता है.अच्छी तरह मिलाने के बाद इस ड्रम को कपड़े से इसका मुह ढक दें. इस घोल पर सीधी धूप नही पड़नी चाहिए. अगले दिन भी इस घोल को फिर से किसी लकड़ी की सहायता से दिन में दो या तीन  बार हिलाया जाता है. लगभग  5-6 दिनों तक प्रतिदिन इसी कार्य को करते रहना चाहिए.  

लगभग 6-7 दिन के बाद, जब घोल में बुलबुले उठने कम हो जाये तब समझ लेना चाहिए कि जीवामृत तैयार हो चुका है. जीवामृत का बनकर तैयार होना ताप पर भी निर्भर करता है अतः सर्दी में थोड़ा ज्यादा समय लगता है किन्तु गर्मी में 2 दिन पहले तैयार हो जाता हो जाता है. यह 200 लीटर जीवामृत एक एकड़ भूमि के लिये सिंचाई के साथ देने के लिए पर्याप्त है.

English Summary: Benefits of Jeevamrit and method of making Jeevamrit Published on: 30 October 2020, 03:01 PM IST

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