Beetroot Cultivation: चुकंदर के लिए ‘फल एक, गुण अनेक’ कहावत कही जाती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि चुकंदर खाने के बहुत सारे फायदे बताये जाते हैं. तभी तो कहते है कि शरीर में खून की मात्रा बढ़ानी है, तो चुकंदर का जूस पीना चाहिए, इसलिए इसका सेवन हम सब्जी, सलाद और जूस के रूप में किया जाता है.
चुकंदर का इस्तेमाल
बता दें कि चुकंदर एक ऐसा फल है, जिसे सब्जी के रूप में पकाकर या बिना पकाये भी खाया जाता है. इसके पत्तों की सब्जी भी बनाई जाती है. ये खाने में हल्का मीठा लगता है, इसलिए इसकी खेती मीठी सब्जी के रूप में की जाती है. इसके फल जमीन के अंदर लगते हैं.
चुकंदर की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा
चुकंदर में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो मानव शरीर के लिए काफी जरूरतमंद साबित होते हैं. इसमें फाइबर, विटामिन ए, विटामिन सी और आयरन भरपूर मात्रा में पाई जाती है. इसके साथ ही इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के लिए भी फायदेमंद साबित होते हैं.
कहा जाता है कि ये शरीर में खून की कमी को भी पूरा करता है. इसके इतने सारे फायदों की वजह से ही इसकी डिमांड सालभर बाजार में बनी रहती है. ऐसे में इसकी खेती करना किसान भाईयों के लिए किसी मुनाफे के सौदे से कम नहीं है. तो चलिए जानते हैं चुकंदर की खेती करने के लिए उपयूक्त मिट्टी, जलवायु, मौसम, खेती करने का तरीका और रोग नियंत्रण से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां...
चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
चुकंदर की खेती करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि इसकी खेती जलभराव वाली भूमि में नहीं की जाती है, क्योंकि जलभराव की स्थिति में इसके पौधों के फल सड़ने लगते हैं. इसके साथ ही इसकी खेती करने के लिए भूमि का P.H. मान 6 से 7 के बीच होना आवश्यकता है.
चुकंदर की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम
चुकंदर की खेती के लिए ज्यादा गर्मी का मौसम सही नहीं माना जाता है. इसके साथ ही इसकी खेती बारिश के मौसम में तो भूलकर भी नहीं की जाती है, क्योंकि इसकी फसलों को पानी की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती हैं और ज्यादा पानी से इसकी फसलें खराब और सड़ने लगती हैं. चुकंदर की खेती के लिए सबसे अच्छा मौसम सर्दी का माना जाता हैं, क्योंकि इसके पौधे सर्दियों के मौसम में तेजी से विकास करते हैं. हालांकि अधिक तेज़ ठंड और पाला इसकी पैदावार को प्रभावित भी कर सकता है.
चुकंदर की खेती के लिए तापमान और समय
इसकी बुवाई मानसून सीजन खत्म होने के बाद यानी सितंबर के पहले सप्ताह से लेकर मार्च के पहले सप्ताह के बीच में की जाती है. इसके पौधों को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है. वहीं इसके उपयुक्त विकास के लिए 20 डिग्री तापमान सही माना जाता है.
चुकंदर की बुवाई और कटाई का उचित समय
चुकंदर की फसल 120 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है. इसकी कटनी (हार्वेस्टिंग) किसान 90 दिनों में करने लगते हैं. बता दें कि इसकी कटनी एक साथ नहीं की जाती है. ऐसे में देखा जाए, तो दिसंबर अंत और जनवरी के पहले सप्ताह में इसकी स्टैंडर्ड क्वालिटी खोदकर मंडी में बिकने के लिए चला जाता हैं.
चुकंदर की खेती के लिए उन्नत किस्में
चुकंदर की बहुत सारी किस्में मौजूद हैं, जिन्हें उत्पादन की दृष्टि से तैयार किया जाता है. इनमें डेट्रॉइट डार्क रेड, क्रिमसन ग्लोब, अर्ली वंडर, मिस्त्र की क्रॉस्बी, रूबी रानी, रोमनस्काया, एम.एस.एच.–102 शामिल हैं.
चुकंदर की खेती के लिए कैसे करें खेत की तैयारी?
चुकंदर की खेती करने के लिए खेत की कोई खास तैयारी नहीं करनी पड़ती है, लेकिन इसके खेत की तैयारी करने के दौरान एक बात का ध्यान जरूर रखें कि खेत की मिट्टी महीन होनी चाहिए. ऐसे में सबसे जरूरी है कि खेत की अच्छे से जुताई करें. इसके लिए सबसे पहले कल्टीवेटर और रोटीवेटर के माध्यम से एक बार खेत की गहरी जुताई करें. इसके बाद 2-3 हल्की जुताई करने के बाद ही बीजों की बुवाई करें. अगर आप अपनी फसल से और अच्छा पैदावार लेना चाहते हैं, तो खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ खेत में 4 टन गोबर की खाद डालकर मिलाएं.
बुवाई की विधि
चुकंदर की खेती करने के लिए इसकी दो विधि से बुवाई की जाती है. इसमें पहली छिटकवा विधि और दूसरी मेड़ विधि है.
छिटकवा विधि- इस विधि के तहत क्यारी बनाकर बीजों को फेंक कर बुवाई की जाती है. इसके लिए प्रति एकड़ 4 किलो बीज लगता हैं.
मेड़ विधि- इस विधि के तहत 10 इंच की दूरी पर मेड़ बनाकर बीजों की बुवाई की जाती है. इसमें पौधे से पौधे की दूरी 3 इंच रखी जाती है. वहीं आधे सेंटीमीटर की गहराई पर बीज की बुवाई की जाती है.
नोट- ऐसा कहा जाता है कि मेड़ विधि से इसकी खेती करने से बीज कम लगते हैं और पैदावार भी अच्छी मिलती है. वहीं इसके उलट छिटकवा विधि में बीज की मात्रा अधिक डालनी पड़ती है और पैदावार भी कम मिलती है. इसके साथ ही अच्छी पैदावार हो इसके लिए खरपतवार नियंत्रण का होना बेहद जरूरी है, इसके लिए 25 से 30 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करें.
चुकंदर की फसलों में सिंचाई
चुकंदर की फसल को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है, इसलिए हल्की सिंचाई की जाती है. इसमें सिर्फ क्यारियों को नमी देने की जरूरत होती है. बता दें कि इसकी फसल में पहली सिंचाई बीज रोपाई के बाद की जाती है. इसके बाद 20 से 25 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए.
कितना मिलेगा मुनाफा?
इस समय बाजार में चुकंदर लगभग 60 रुपये प्रति किलो बिक रहा है और ज्यादातर ये 40 से 50 रुपये किलो के भाव से ही बिकता है. वहीं एक अनुमान के मुताबिक, एक हेक्टेयर में चुकंदर की फसल लगभग 300 क्विंटल चुकंदर का उत्पादन करती है. ऐसे में आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि मात्र 3 महीने में पैदावार देने वाली ये फसल किसानों को कितना अधिक मुनाफा देगी.
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