खीरे कदुवर्गीय फसलों की श्रेणी में आने वाली फसल है| इसकी खेती खरीफ में खुले खेत में आसानी से की जा सकती है किन्तु ग्रीन हाउस में इसकी खेती पूरे वर्ष की जा सकती है| वैसे ग्रीन हाउस जैसी संरचना में इसकी खेती ऑफ सीजन में ही करनी चाहिए| ताकि कम लागत और अधिक मुनाफा मिले| खीरे के फल को सलाद या सब्जियों के रूप में प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें 96 प्रतिशत पानी होता हैं|
खीरा की खेती के लिए जलवायु (Climate for Cucumber Farming)
खीरा उष्ण मौसम में होने वाली फसल है। फलों की उचित बढ़वार के लिए 15-20 डिग्री सेंटीग्रेट का तापक्रम उचित होता है। वृध्दि अवस्था के समय पाला पड़ने से इसको अत्यधिक नुकसान होता है। विदेशी किस्मों को सर्दी के मौसम मे भी ग्रीनहाउस या पोलीहाउस मे सफलता पूर्वक उगाया जा रहा है। ग्रीनहाउस या पॉलीहाउस में एक वर्ष मे खीरे की तीन फसले पैदा की जा सकती है। सामान्य खीरे के बजाए बीज रहित खीरे की बाजार में अधिक मांग रहती है|
खीरे की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव (Selection of soil for Cucumber cultivation)
खीरे की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की उच्च मात्रा, मिट्टी का pH 6-7 और पानी का अच्छा निकास हो, अच्छी मानी जाती है|
खीरे की उन्नत किस्में (Improved varieties of Cucumber)
इसकी अधिकतर बीज रहित किस्में गाइनोसियस होती है, जिनमें फल कोमल, मुलायम और अधिक उत्पादन देने वाले होते है| बीज रहित किस्मों का विकास बिना परागण के होता है| इन किस्मों का विकास निदरलेंड, टर्की, इज़राइल और अन्य यूरोपियन देश बड़े पैमाने पर करते है| विदेशों में बीज रहित किस्मों में गर्मी के मौसम के लिए सेरिंग और हसन है तथा सर्दी के मौसम के लिए मुहासन और दिनार प्रमुख किस्में है| भारत में भी बड़ी बड़ी कम्पनियाँ भी इस प्रकार का बीज उपलब्ध कर रही है, इनमें नन-9729, नन-3019, यीयान, प्रमुख है| एक ही बेल पर नर और मादा के फूल अलग अलग शाखाओं पर बनने वाली क़िस्मों में पूसा संयोग, जापनीस लोंग ग्रीन, प्वाइनसेट इत्यादि है|
इसकी अन्य किस्में पूसा उदय, पूसा बरखा, पंजाब खीरा-1, पंजाब नवीन है, जो अपने अधिक उत्पादन के लिए जानी जाती है.
बुवाई/रोपण का तरीका (Method of sowing / planting in Cucumber farming)
खेत में ऊंचाई बना कर पौधे के बीज 2—3 सेमी गहरे बो देना चाहिए| इन दो उठी हुई क्यारियों की दूरी 1.5-1.6 मीटर रखे और पौधो से पौधो की दूरी 30 सेमी रखी जा सकती है| यदि ड्रिप की व्यवस्था है तो इन्ही क्यारियों पर लगा दे|
पौध संरक्षण (Plant protection of Cucumber)
ग्रीन हाउस और पॉली हाउस में कीट व रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है किन्तु खुले में बीज रहित किस्मों में कुछ कीट व रोगों का प्रकोप होंने की संभावनाए रहती है| प्रमुख कीट व रोग इस प्रकार है-
एंथ्रेकनोस या फल गलन (Anthracnose or fruit rot): यह बीमारी पौधों के पत्तियों, तने एवं फलों पर लक्षण दिखाई देते हैं। इस रोग से पत्तों पर पीले रंग के धब्बे और फलों के ऊपर अण्डाकार धब्बे निर्मित होते है| अत्यधिक नमी के कारण इन धब्बों का निर्माण होता है और इन धब्बों से गुलाबी चिपचिपा पदार्थ निकलता है। इस रोग की रोकथाम के लिए मैनकोज़ेब 75% WP @ 500 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव कर दे| या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम/एकड़ के रूप में उपयोग किया जा सकता है|
चूर्णिल आसिता/ भभूतिया रोग (Powdery mildew): इसे पाउडरी मिलड्यू रोग भी कहा जाता है| सबसे पहले पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफ़ेद-धूसर धब्बे दिखाई देते है जो बाद में बढ़कर सफ़ेद रंग के पाउडर में बदल जाते हैं। संक्रमित भाग सूख जाता है और पत्तियां गिर जाती है। हेक्ज़ाकोनाजोल 5% SC 400 मिली या थियोफेनेट मिथाइल 70% WP या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23 SC का 200 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
फल मक्खी (Fruit fly): यह खीरे की फसल में पाये जाने वाला गंभीर कीट हैं| मादा मक्खियां फल के नीचे की ओर अंडे देती हैं| इस अंडों से लट्टे निकालकर फल को छेद देती है और फल के गुद्दे को खाती रहती हैं, जिस कारण फल गलना शुरू हो जाता है| रोकथाम के लिए सायपरमेथ्रिन 25% EC @100 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
रस चूसक कीट (Sucking pest): इस प्रकार के कीटों में एफीड, जैसिड, सफेद मक्खी आदि आते है| ये कीट पौधों की पत्तियों, डालियों तथा नरम भाग से रस चूस कर पौधे को कमजोर और बीमार बना देते है| इस प्रकार के कीटों से बचाव हेतु एसिटामिप्रीड 20% SP की 80 ग्राम मात्रा या थियामेंथोक्साम 25% WG की 100 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दे| यह मात्रा एक एकड़ क्षेत्र के लिए प्रायप्त है| जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना पाउडर की 250 ग्राम मात्रा भी एकड़ की दर से छिड़काव किया जा सकता है.
खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer of Cucumber)
नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (सिंगल फास्फेट 125 किलो) और पोटाशियम 20 किलो (म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 35 किलो) का उपयोग बुवाई के समय कर दे| बिजाई के समय नाइट्रोजन का एक तिहाई हिस्सा और पोटाशियम और फास्फोरस की पूरी मात्रा डालें| एक महीने बाद बचा हुआ यूरिया पौधों को दे|
सिंचाई व्यवस्था (Irrigation management of Cucumber)
गर्मी के मौसम में 5-6 दिन बाद सिंचाई की जरूरत होती है और बारिश के मौसम में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है| इस फसल को कुल 10-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती हैं| ड्रिप के द्वारा पानी 2-2.5 घन मीटर प्रति 1000 वर्ग मीटर के हिसाब से गर्मियों में 2-3 दिन बाद और सर्दियों में 6-7 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिए|
खरपतवार प्रबंधन (Weed management of Cucumber farming)
हाथों के द्वारा या रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है| ग्लाइफोसेट 1.6 लीटर को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर खीरे की फसल से पहले खरपतवार पर स्प्रे करें जिससे खेत खरपतवार मुक्त हो सके|
फसल की तुड़ाई और उपज (Crop harvesting and yield of Cucumber)
बिजाई से 45-50 दिनों बाद पौधे पैदावार देनी शुरू कर देते हैं| पूरे फसल काल में इसकी 10-12 बार तुड़ाई की जा सकती है| कटाई के लिए तेज़ चाकू या किसी और नुकीली चीज़ का इस्तेमाल करना चाहिए| फल तुड़ाई मुख्य तौर पर फल हरे और छोटे होने पर करें| इसकी औसतन पैदावार ग्रीन हाउस वाली क़िस्मों में 250 से 350 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैं तथा पूसा उदय, पूसा बरखा, पंजाब नवीन क़िस्मों की औसत उपज 70-75 क्विंटल प्रति एकड़ है|
भण्डारण (Storage of Cucumber fruit)
तुड़ाई के बाद खीरों की ग्रेडिंग कर दे| उसके बाद हवादार प्लास्टिक के केरेट या टोकरी में डालकर मंडी भेज दे| तुड़ाई सुबह के समय कर देनी चाहिए|
खीरे की खेती से फायदा (Cucumber farming benefits)
इस फसल की मांग सालो साल रहती है| इसका उपयोग सलाद और सब्जी के लिए अधिक मात्रा में किया जाता है| इसकी खेती ग्रीन हाउस में करने से अधिक उपज के साथ ऑफ सीजन उत्पादन भी मिल जाता है| खीरा एक मोलिब्डेनम तत्व और विटामिन का अच्छा स्त्रोत माना जाता है| खीरे का प्रयोग त्वचा, किडनी और दिल की समस्याओं के इलाज और अल्कालाइज़र के रूप में भी किया जाता है| एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 50,000 रुपए लागत आती है और लगभग 2-2.5 लाख तक शुद्ध मुनाफा कमाया जा सकता है|
अधिक जानकारी और बीज प्राप्त करने के संपर्क सूत्र (Contact information for getting more information and seeds)
बीजरहित किस्मों की बीज के लिए नजदीकी कृषि विश्वविध्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग में संपर्क किया जा सकता है| या पाइवेट डीलर 09653464100 (लुधियाना) या 08048864695 (पंचकुला) या 08068441070 (जयपुर) या 08758666888 (गाजियाबाद) पर भी संपर्क किया जा सकता है|
दिल्ली के पूसा अनुसंधान केन्द्र या बैंगलौर का भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, निदेशक 080-28466471 080-28466353 से सम्पर्क किया जा सकता है|
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