देश के कई राज्यों के किसानों के चेहरे पर एक बार फिर ख़ुशी देखने को मिल रही है. आपको बता दें कि वर्धा और अकोला जिले में कपास का अधिकतम दाम 12,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है. MSP की अगर बात की जाए, तो किसानों को मिलने वाला यह दाम एमएसपी (MSP) का लगभग आधा है.
ऐसे में किसानों का कहना है कि कई साल से कपास की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन अब जाकर इतना अच्छा मुनाफा मिला है. कपास की खेती ने किसानों के बिच खुशी की लहर पैदा कर दी है.
एक समय था जब किसान और खास कर महाराष्ट्र के किसानों का कहना था कि कपास की खेती उनके लिए सिर्फ नुकसान का सौदा है. इसका मुख्य कारण बढ़ती लागत और कम मुनाफा था. जिसकी वजह से किसान काफी परेशान थे. उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी कम दाम पर अपने फसलों को बेचना पड़ता था, लेकिन मांग की वजह से किसान इसकी खेती छोड़ भी नहीं सकते हैं. अब यहां कपास की खेती (Cotton Farming) करने वाले किसानों का कहना है की उनके अच्छे दिन वापस लौट आए हैं.
पिछले दो साल के आकड़ों पर अगर नजर डालें, तो किसानों को ओपन मार्केट में एमएसपी से ज्यादा भाव मिल रहा है. जिस वजह से उन्हें कपास से अच्छा मुनाफा मिल रहा है. वर्धा एवं अकोला जिले की बात करें, तो यहाँ कपास का अधिकतम दाम 12 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है.
मंडी में कपास का भाव (Cotton price in mandi)
इस साल अकोट मार्केट कमेटी में कपास का सबसे अधिक दाम 12,000 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज किया गया है. इस मार्केट में कपास के दाम (Cotton Price) का रिकॉर्ड बन रहा है. उधर, 26 मार्च को वर्धा में कपास का दाम 12011 रुपये पहुँच गया था. वहीँ, मॉडल प्राइस की बात करें, तो वह 9525 रुपये रहा. परभणी में 25 मार्च को कॉटन का मॉडल प्राइस 11600 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज किया गया. जानकारी के मुताबिक, कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6025 रुपये प्रति क्विंटल है.
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अधिक दाम ने बढ़ाई बुवाई का दायरा (Higher price increased the scope of sowing)
फसलों पर कीट का प्रकोप हमेशा मंडराता रहता है. ऐसे में इसका असर फसल के पैदावार और गुणवत्ता पर भी दिखाई देता है. जिस वजह से किसानों को फसल का सही भाव नहीं मिल पाता है. कुछ साल से कपास की गिरती कीमतों और गुलाबी सुंडी के प्रकोप से कपास का रकबा दिन प्रति दिन घटता जा रहा था. मराठवाड़ा सहित विदर्भ में खरीफ सीजन के दौरान कपास मुख्य फसल हुआ करती थी, लेकिन इन समस्याओं से परेशां होकर किसानों ने इसकी खेती करनी छोड़ दी.
पिछले दो साल से स्थितियां काफी बदली नजर आ रही है. जिस वजह से कपास का रिकॉर्ड भाव मिल रहा है. कपास महाराष्ट्र की प्रमुख फसलों में शामिल है.
इसलिए कृषि विभाग (Agriculture Department) ने अनुमान लगाया है कि आने वाले खरीफ में रकबा पांच से सात लाख हेक्टेयर बढ़ जाएगा. वहीँ इसको लेकर यह भी प्रयास लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में इसकी खेती पर अधिक जोड़ डाला जा सके. यहां कपास का रकबा अभी 38 से 40 लाख हेक्टेयर है.
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