आज देशभर में कई ऐसे युवा फार्मर्स हैं, जो इनोवेटिव खेती के जरिए अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. मध्य प्रदेश के धार जिले के सिरसौदा गांव के शिक्षित और युवा किसान विनोद चौहान भी इनोवेटिव खेती करके अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं. रबी सीजन में उन्होंने काले चने की खेती का नवाचार किया है, जिसमें में वे सफल हुए और प्रति एकड़ 8 से 9 क्विंटल की उपज प्राप्त करने में सफल हुए हैं. प्रोटीन, आयरन व विभिन्न फाइबर तत्वों से युक्त काला चना की खेती किसानों के लिए लाभकारी है. हालांकि, देश में काले चने की खेती का बेहद कम रकबा है, फिर भी इसकी खेती में अच्छी संभावनाएं नज़र आ रही हैं. कृषि वैज्ञानिकों का भी यही मानना है कि अभी यह एक नवाचार है, आने वाले समय में काले चने की किस्म किसानों में लोकप्रिय हो सकती है.
ज्यादा उत्पादन देने में सक्षम
कृषि जागरण से बात करते हुए विनोद चौहान ने बताया कि बीते रबी सीजन में उन्होंने तकरीबन 8 से 9 एकड़ में काला चना बोया था. इससे उन्हें प्रति एकड़ 8 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हुई. हालांकि, यह चने की एक उन्नत किस्म है, जिससे प्रति एकड़ 10-12 क्विंटल तक उत्पादन लिया जा सकता है. उन्होंने बताया कि पिछले रबी सीजन ज्यादा ठंड और पाला गिरने से प्रति एकड़ से औसत उत्पादन 8 क्विंटल तक रहा. बता दें कि धार (मध्य प्रदेश ) जिले में यह पहला मौका है, जब काले चने की सफल खेती की गई है. विनोद ने बताया कि इस किस्म को बाजार में 13 से 15 हजार रुपए प्रति क्विंटल बेचा जा सकता है.
कांटे वाले चने के आकार का है दाना
विनोद के मुताबिक, इसका दाना कांटे वाले चने के बराबर होता है, जो देखने में बिल्कुल काला होता है. हालांकि, इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है. इसकी खेती के लिए कोई ख़ास तैयारी नहीं करना पड़ती है. कंटीले चने की तरह यह भी 1-2 सिंचाई में तैयार हो जाती है. वहीं अन्य किस्मों की तुलना में इसकी बीज दर भी कम होती है. जहां चने की देशी किस्मों के लिए प्रति एकड़ 40 किलोग्राम तथा डॉलर चने के लिए 60 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है. वहीं इस किस्म का केवल 30 किलोग्राम बीज ही लगता है. विनोद ने आगे बताया कि इसमें प्रति एकड़ 30 किलो डीएपी खाद की जरुरत होती है. वहीं इल्ली आदि के रोकथाम के लिए कोराजोन का समय-समय पर छिड़काव करना पड़ता है.
काले चने की किस्म एमपीके-179 किस्म
काले चने की इस किस्म को एमपीके-179 किस्म नाम दिया गया है. जिसे महाराष्ट्र के राहुरी स्थित महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ के कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित किया है. यह किस्म महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात एवं छत्तीसगढ़ आदि राज्यों की जलवायु और मिट्टी के अनुकूल है. इस किस्म को चने की अन्य सामान्य किस्मों की तरह ही उगाया जाता है.
कृषि वैज्ञानिकों का क्या कहना हैं?
विनोद चौहान ने काले चने की खेती कृषि विज्ञान केन्द्र, धार के फसल वैज्ञानिक डॉ जीएस गाठिए की मार्गदर्शन में की है. डॉ. जीएस गाठिए ने कृषि जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि एमपीके-179 चने की नई किस्म है, जिसका रंग जीन (D.N.A.) के परिवर्तन के कारण काला होता है. विनोद चौहान ने धार जिले में पहली बार नवाचार करते हुए इस किस्म को सफलतापूर्वक उगाया है. आज इस किस्म के प्रति किसानों को जागरूक करने की बेहद आवश्यकता है. हालांकि, अभी इस किस्म की टेस्टिंग जरूरी है कि यह मध्य प्रदेश की जलवायु की कितनी उपयुक्त है. इसके लिए कृषि वैज्ञानिक अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं.
काले चने की खेती में समस्याएं
वैसे, इसकी खेती में किसी प्रकार की दिक्क्तें नहीं है, लेकिन अभी मंडियों में इसे खरीदने वाले व्यापारी नहीं है. इस वजह इसे बेचने थोड़ी परेशानी होती है. हालांकि, विनोद कहते हैं कि इस किस्म को हेल्थ के प्रति अवेयर रहने वाले लोगों को बेचते हैं, जिससे उन्हें बेहतर दाम मिलते हैं. वहीं अभी यह किस्म आम लोगों और किसानों में बेहद प्रचलित नहीं हो पाई. हालांकि माना जा रहा है कि अधिक उत्पादन और पोषक तत्वों की अधिकता को देखते हुए जल्दी ही आम लोगों के बीच पैठ बन सकती है.
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