बिहार के पटना जिले में स्थित गांव चकनावाड़ा के शिव शंकर प्रसाद एक सीमांत किसान हैं. तीन भाइयों में बंटवारे के बाद उनके पास केवल 7 कट्ठा जमीन आई थी. जिसमें दिनरात जी तोड़ मेहनत करने के बावजूद वे अपने परिवार का पेट नहीं भर पाते थे. ऐसे में उन्हें किसी ने मशरूम की खेती के बारे में बताया, जिसमें न तो अधिक जमीन की आवश्यकता पड़ती है, न ही अधिक लागत की.
शिव शंकर ने इसलिए पटना के बाढ़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क किया. जहां से उन्होंने ऑयस्टर और मिल्की मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण लिया. इसके बाद, उन्होंने बेहद कम इन्वेस्टमेंट में अपनी पत्नी रंजना देवी के साथ मशरूम उत्पादन शुरू किया. इससे वे सालाना अच्छी कमाई कर लेते हैं. वहीं उन्हें इससे पैसा भी नगदी मिल जाता है. तो आइए जानते हैं शिव शंकर प्रसाद से ऑयस्टर और मिल्की मशरूम की खेती की पूरी जानकारी-
कई बार असफल हुए
अपने परिवार के लालन-पालन के लिए शिव शंकर ने लीज पर भूमि लेकर सब्जियों की खेती शुरू की. इसके बाद उन्होंने केवीके के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और अफसरों की सलाह पर मशरूम का उत्पादन शुरू किया. शुरूआत में उन्होंने 70X30 के शेड में मिल्की मशरूम का उत्पादन शुरू किया. लेकिन यहां भी उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई. सही मौसम और पर्याप्त रिर्सोसेज नहीं होने के कारण वे मिल्की मशरूम उगाने में असफल रहे. हालांकि, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मशरूम शेड में दूधिया मशरूम उगाने में सफलता पाई. मशरूम शेड को गीला रखने के लिए उन्होंने निकास पंखा, ड्रिपर और फोगर का प्रयोग किया. इस तरह वे मशरूम की खेती करने में सफल हुए.
ऑयस्टर, मिल्की मशरूम ही क्यों उगाई
कृषि जागरण से बातचीत करते हुए शिवशंकर प्रसाद ने अपनी सफलता की कहानी बयां की. उन्होंने बताया कि पटना की जलवायु के मुताबिक ऑयस्टर और मिल्की मशरूम की खेती आसान होती है. वहीं बटन मशरूम की खेती में ठंडे तापमान की आवश्यकता पड़ती है. जबकि मशरूम की यह दोनों किस्में 37 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी उगाई जा सकती हैं. वहीं इन दोनों किस्मों की तुलना में बटन मशरूम की खेती करना महंगा पड़ता है. उन्होंने बताया ऑयस्टर मशरूम में 80 फीसदी तक नमी होना चाहिए, जिससे बाजार में इसके अच्छे दाम मिलते हैं.
आइए जानते हैं, ऑयस्टर मशरूम की खेती कैसे करें?
उन्होंने बताया कि वे रासायनिक तरीके से ऑयस्टर मशरूम की खेती करते हैं. इसके लिए सबसे पहले गेहूं का भूसा लेकर वह उसे अच्छी तरह गीला कर लेते हैं. फिर उसमें बाविस्टीन और फर्मलीन का छिड़काव करते हैं. इसके बाद मिश्रण को पॉलिथीन से ढंककर 8 से 24 घंटे तक रखा जाता है, जिसके बाद इसमें मशरूम की बिजाई की जाती है. गौरतलब है कि ऑयस्टर या ढिंगरी मशरूम की खेती विभिन्न फसलों के अपशिष्ट पदार्थो में आसानी से की जा सकती है. इसके लिए गेहूं के भूसे के अलावा धान पुआल, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, गन्ना, मुंगफली, सरसों, सूरजमुखी तथा सोयाबीन आदि के पत्तों का उपयोग किया जा सकता है.
45 से 60 दिनों में पहला उत्पादन
उन्होंने बताया कि ऑयस्टर या ढिंगरी मशरूम को सर्दी, गर्मी सभी मौसम में सालभर उगा सकते हैं. 30 से 35 दिनों में मिल्की मशरूम बाहर निकल आती है. बता दें कि जब ढिंगरी मशरूम की छतरी बाहर आकर किनारे ऊपर की तरफ मुड़ने लगे तब इसकी तुड़ाई करना चाहिए. वहीं मशरूम की तुड़ाई से पहले पानी के छिड़काव के बाद करना चाहिए. एक बार बिजाई के बाद 3 बार उत्पादन लिया जा सकता है. 8 से 10 दिनों में मशरूम की दूसरी तुड़ाई की जा सकती है.
कितनी कमाई होगी?
मशरूम की खेती एक लाभकारी बिजनेस है, जिससे सालाना लाखों रूपए की कमाई की जा सकती है. शिवशंकर प्रसाद का कहना है कि वे सालाना लगभग 25 से 30 क्विंटल मशरूम का उत्पादन लेते हैं. इससे उन्हें प्रति वर्ष 3 से 4 लाख रूपए का मुनाफा मिल जाता है. मशरूम खेरची में 150 रूपए किलो बिक जाती है. उन्होंने बताया कि वे पटना और आसपास के बाजार में अपनी उपज बेचते हैं.
कई पुरस्कार मिल चुके हैं
खेती में नवाचार के लिए शिवशंकर प्रसाद को साल 2012 में बिहार के साबौर स्थित बीएयू बेस्ट इनोवेटिव फार्मर का अवार्ड मिल चुका है. इसके अलावा, उन्हें बिहार एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट से बेस्ट वेजिटेबल ग्रोवर का अवार्ड भी मिल चुका है.
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