आज हमारे देश में किसानों कि स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है। समय-समय पर किसानों से जुड़ी समस्याओं की खबरें सुनने को मिलती है। एक दौर था जब देशे के युवा खेती-बाड़ी की ओर अग्रसर था लेकिन आज का दौर ही कुछ और है। आज के समय में जहां युवा पढ़ लिखकर मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करना चाहता है वहीं देश में कुछ ऐसे भी युवा भी हैं जो पढ़ाई के बाद खेती की ओर लौट रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के रहने वाले लखन सिंह सेमिल कि जिन्होंने खेती के छेत्र में अग्रसर होकर एक सफल उदाहरण पेश किया है।
हर युवा की तरह नौकरी की चाह रखने वाले लखन सिंह ने एग्रीकल्चर से बीएससी करने के बाद संविदा पर सरकारी विभाग में 8000 की तनख्वाह में नौकरी की। कुछ दिनों तक नौकरी करने के बाद जब उनका मन नौकरी में नहीं लगा तो उन्होंने नौकरी छोड़ दो महिने का एक ट्रेनिंग कोर्स ज्वाइन किया। कोर्स के बाद युवा की लाइफ बदल गई और आज वो इससे हर महीने 3.5 लाख रुपए की कमाई कर रहा है।
नौकरी के दौरान उन्होंने देखा कि देश में किसानों को खेती करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। और कई किसानों को खेती की नई तकनीक के बारे में उचित जानकारी भी नहीं है जिसकी वजह से किसान पानी की ज्यादा बर्बादी करते हैं। पानी की बचत और खेती की लागत कम करने के लिए उन्होंने सरकार की मदद ली औऱ ट्रेनिंग से मिली सीख से अपना खुद का बिजनेस शुरू किया।
बता दें की खेती को बेहतर बनाने के लिए और किसानों को हर तरह से खुशहाल करने के लिए सरकार लोगों को ट्रेनिंग दे रही है। वहीं सरकार के द्वारा एग्री प्रोडक्टस का बिजनेस करने की भी प्रशिक्षण दी जा रही है। एग्री क्लिनिक एग्री बिजनेस सेंटर से ट्रेनिंग लेने वाले शख्स को बिजनेस शुरू करने लिए बैंक से आसानी से लोन मिल जाता है।
लखन ने बताया कि उऩ्हें प्रोटेक्टेड कल्टिवेशन का कान्सेप्ट शुरुवआत में ही अच्छा लगा और पॉलीहाउस कल्टिवेशन ट्रेनिंग कोर्स पूरा किया। इसके साथ ही उन्होंने या भी कहा की पॉलीहाउस तकनीक खेती से दोगुने से भी ज्यादा मुनाफा मिलता है। यह जैविक खेती का एक हिस्सा है और पॉलीहाउस में स्टील, लकड़ी, बांस या एल्युमीनियम की फ्रेम का स्ट्रेक्चर बनाया जाता है। खेती में उपयोग होने वाली जमीन को एक घर जैसे आकार में पारदर्शी पॉलीमर से ढक दिया जाता है। और इस पॉलीहाउस में न अंदर और न बाहर की हवा जा सकती है। और इस कारण फसलों पर कीड़े-मकोड़े का भी असर नहीं होता है। और इसमें सबसे अच्छी बात ये होती है की इसमें जरुरत के हिसाब से टेंपरेचर भी एडजस्ट किया जा सकता है। जिससे इसकी मौसम की निर्भरता खत्म हो जाती है। कीटनाशक, खाद, सिंचाई ये सभी काम पॉलीहाउस के अंदर होते हैं और इसे जरूरत के अनुसार प्रयोग किया जाता है।
लखन की कंपनी का टर्नओवर आज करीब 4 करोड़ रूपए का है। और टर्नओवर का दस प्रतिशत प्रॉफिट के अनुसार लखन ने बताया की वो सालाना 40 लाख कमा रहे हैं। वो खुद पॉलीहाउस कंसल्टेंसी का काम कर रहे हैं। एक एकड़ में पॉलीहाउस लगाने में 1.25 लाख रुपए का खर्च बैठता है। जिस पर किसानों को सरकार से 50 से 60 फीसदी तक सब्सिडी मिलती है। लखन का कहना है कि पॉलीहाउस में टमाटर, गोभी, कैप्सिकम, चेरी टमाटर, घेरकीन आदि की खेती पूरे साल की जा सकती है।
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