डॉ. जनक पाल्टा मैकगिलिगन जब इंदौर आईं, तो यहाँ के सनावदिया क्षेत्र में उन्होंने लगभग 6 एकड़ बंजर ज़मीन ली और उस जगह "बार्ली डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट फॉर रूरल वुमेन" की स्थापना साल 1985 में अपने स्वर्गीय पति के साथ की. इसके ज़रिए उन्होंने महिलाओं को आगे आने का मौका दिया और उन्हें सशक्त बनाया.
दिलचस्प बात यह है कि डॉ. मैकगिलिगन ने न केवल महिलाओं के बारे में सोचा, बल्कि पुरुषों को भी सशक्त बनाने की पहल की. उनका कहना है कि भारत में ज़्यादातर पुरुष ही खाना बनाते हैं. वहीं कई ऐसे भी घर हैं जहां अभी तक यही भ्रम फैला है कि किचन या खाना बनाने की ज़िम्मेदारी केवल महिलाओं की है. इसी भ्रम को तोड़ने के लिए वे आगे आईं. उन्होंने उन पुरुषों की मदद करने के बारे में सोचा जिन्हें खाना बनाना तो नहीं आता, लेकिन वे सभी किचन में अपनी लाइफ़ पार्टनर का हाथ बटाना चाहते थे. उन्होंने इन पुरुषों को खाना बनाने का प्रशिक्षण भी दिया.
सोलर लाइट (solar light) के इस्तेमाल पर दिया जोर
डॉ. जनक पाल्टा का मानना है कि सोलर ऊर्जा के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल से बिजली के खर्च को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है. यही वजह थी कि उन्होंने क्षेत्र के आसपास के गांवों में सोलर लाइट के इस्तेमाल पर भी जोर दिया.
डॉ. जनक पाल्टा के पति भी करते थे सोलर कुकिंग
पर्यावरण के प्रति अपने साथ ही बाकी लोगों को भी प्रेरित करने वाली पद्मश्री डॉ. मैकगिलिगन इंदौर स्थित "जिम्मी मैकगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट" की डायरेक्टर भी हैं. उनके प्रेरणादायी कामों के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
न केवल डॉ. मैकगिलिगन, उनके पति भी सोलर कुकिंग जानते थे और अब जनक पाल्टा पुरुषों को सोलर कुकिंग का प्रशिक्षण देते हुए कई महिलाओं की ज़िन्दगी बदल रही हैं.
इंदौर आने के बाद वहां के आसपास की आदिवासी लड़कियों की जिंदगी भी इन्हीं की वजह से बदल गई.
Share your comments