Success Story: दून की बात चले और वहां के बासमती का जिक्र न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. लेकिन, संभवत: अधिकांश लोगों को मालूम नहीं होगा कि जिस 'देहरादूनी' बासमती की देश-दुनिया में धाक रही है, जो अफगानिस्तान से भारत लाया गया था. आज सफल किसान की इस खबर में हम आपको उत्तराखंड के ऐसे युवा किसान की कहनी बताएंगे, जिन्होंने लोगों के बीच विलुप्त होते इस बासमती चावल को फिर एक नाम दिया. हम बात कर रहे हैं प्रगतिशील किसान आशीष राजवंशी की, जो पिछले 8 सालों से जैविक खेती कर रहे हैं. इन्होंने अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद खेती की शुरुआत की थी और तब से लेकर आज तक वह इसी के जरिए अपनी आर्थिकी स्थिति को मजबूत कर रहे हैं.
कैसे शुरू हुई देहरादूनी बासमती की खेती?
आशीष राजवंशी ने बताया कि वह मुख्य तौर देहरादूनी बासमती की खेती करते हैं,जोकि बासमती की उन्नत किस्मों में से एक है और देश-विदेश में अपने स्वाद और खुशबू के लिए प्रसिद्ध है. उन्होंने बताया कि देहरादूनी बासमती का अपना ही इतिहास और एक कहानी है.उन्होंने बताया कि बात ब्रिटिश-अफगान युद्ध के समय की है, जब अफगान शासक दोस्त मोहम्मद खान की हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें पूरे परिवार के साथ देश से निकाला दिया था. तब दोस्त मोहम्मद खान निर्वासित जीवन बिताने के लिए परिवार के साथ देहरादून के मसूरी आ गए थे.
अफगानिस्तान से भारत आया था ये बासमती चावल
उन्होंने बताया कि दोस्त मोहम्मद को खाने का बड़ा शौक था. उन्हें बिरयानी और चावल से बनीं चीजें काफी पसंद आती थीं. लेकिन, मसूरी में रहने के दौरान उन्हें चावल से संतुष्टि नहीं मिली. ऐसे में दोस्त मोहम्मद ने अफगानिस्तान से बासमती धान के बीज मंगवाए और उनकी बुआई देहरादून की वादियों में करवाए. धान को उन बीजों को न केवल देहरादून की मिट्टी रास आई, बल्कि बासमती की जो पैदावार हुई, उसकी गुणवत्ता पहले के मुकाबले और उम्दा थी.जिसके बाद देहरादून में इस चावल को उगाने का सिलसिला शुरू हुआ. लेकिन, धीरे-धीरे देहरादून का विकास हुआ और शहरीकरण के चलते लोगों ने खेती करनी छोड़ दी और इसकी उपज कम होने लगी.
उन्होंने बताया कि आज भी कई किसान इसकी खेती कर रहे हैं, लेकिन पहले के मुकाबले यह कम हो गई है. उन्होंने बताया कि देहरादूनी बासमती चावल एक उन्नत किस्म का बासमती चावल है. उन्होंने इसकी अहमियत समझी और अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद इसकी खेती में जुट गए. उन्होंने बताया उनके पिता भी एक किसान हैं और 1970 से खेती कर रहे हैं. आशीष राजवंशी ने बताया कि उनके पास कृषि योग्य 80 बीघा जमीन है, जिस पर वह खेती करते हैं. वह क्रॉप रोटेशन में अपनी फसलों की खेती करते हैं. जिसमें उनका फोकस धान पर अधिक रहता है.
9 महीने में तैयार होता है देहरादून बासमती
धान के अलावा, वह सीजन के हिसाब से अलग-अलग फसलों की खेती करते हैं. इसे हर दूसरे साल यानी एक साल छोड़कर उगाया जाता है. उन्होंने बताया कि यह एक लंबी अवधि की फसल होती है और बुआई से लेकर पकने और प्रोसेस होने तक इसमें 9 महीने का वक्त लग जाता है. उन्होंने बताया कि धान की यह किस्म बरसात में लगाई जाती है और प्रोसेस होते-होते इसे फरवरी-मार्च तक का समय लग जाता है. उन्होंने बताया कि देहरादून की जलवायु परिस्थितियां देहरादूनी बासमती चावल के लिए काफी अच्छी है, क्योंकि इसकी सिंचाई सौंग नदी के पानी से की जाती है. उन्होंने बताया कि इस बासमती की अच्छी क्वालिटी होने का यही कारण है की इसकी सिंचाई सौंग नदी के पानी से की जाती है, जिसमें कई तरह से मिनरल्स होते हैं.
खुद तैयार की अपनी मार्केट
उन्होंने बताया कि जब वह 9वीं कक्षा में थे तो उन्होंने देखा की उस समय आढ़ती 25 से 30 रुपये किलो के हिसाब से देहरादूनी बासमती की खरीद करते थे और फिर उसे महंगे दामों पर बाजार में बेचते थे. देहरादूनी बासमती चावल की इसी खासियत को देख उन्होंने बड़े पैमाने पर इसकी खेती शुरू और आढ़तियों के बेचने के बाजए खुद अपनी मार्केट तैयार की. उन्होंने बताया कि शुरुआत में उन्होंने अखबारों में पैम्फलेट के जरिए अपने देहरादूनी बासमती का प्रचार किया और धीरे-धीरे लोगों ने उन्हें जानना शुरू किया. ऐसा करते-करते उन्होंने अपनी मार्केट तैयार की और आज देहरादूनी बासमती में बाजार में काफी डिमांड है और उन्हें इसके अच्छे दाम भी मिल रहे हैं.
एक बीघे में मिलती है इतनी उपज
उन्होंने बताया कि इस बासमती का उत्पादन बहुत ही कम होता है, क्योंकि एक बीघा जमीन पर इससे एक क्विंटल के आसपास उपज मिलती है. जो धान की अन्य किस्मों के मुकाबले कम है. आशीष राजवंशी ने बताया कि सभी फसलों को और अपने कामों को मिलाकर उनकी लागत 7 से 8 लाख रुपये तक बैठ जाती है. जिससे उन्हें 15 से 16 लाख रुपये तक की सालाना आय हो जाती है. वही कृषि जागरण के माध्यम से उन्होंने अन्य किसानों को यह संदेश दिया कि वह जिस भी चीज की खेती करें उसे अपने आसपास बेचें और अपनी ही एक मार्केट तैयार करें. इससे किसानों को फायदा के साथ-साथ अच्छा मुनाफा भी होगा.
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