
Success Story of Hetha Organics: अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़कर एक नया और अनजाना रास्ता चुनना बहुत साहस का काम होता है. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के असीम रावत ने ऐसा ही साहसिक निर्णय लिया और देसी गायों की डेयरी पर केंद्रित एक व्यवसाय खड़ा कर दिखाया. 14 वर्षों तक आईटी सेक्टर में काम करने के बाद उन्होंने एक सफल सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी को अलविदा कहा और पूरी तरह से देसी गायों पर आधारित डेयरी फार्मिंग (Desi Cow Dairy Farming) में जुट गए.
आज उनकी संस्था Hetha Organics न केवल देश की जानी-मानी ब्रांड बन चुकी है, बल्कि इसका वार्षिक टर्नओवर 10 करोड़ रुपये से अधिक है. 1100 से ज्यादा गौवंश, 130 से ज्यादा उत्पाद, 5 फार्म लोकेशन और 110 से अधिक कर्मचारियों के साथ Hetha Organics एक स्वदेशी नवाचार की जीवंत मिसाल बन चुकी है. ऐसे में आइए डेयरी किसान असीम रावत की सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-

सॉफ्टवेयर से स्वरोजगार की ओर सफर
असीम रावत का जन्म एक मध्यम परिवार में हुआ था. ऐसे परिवारों में आमतौर पर सरकारी या प्राइवेट नौकरी को ही जीवन का लक्ष्य माना जाता है. उनके पिता जी भी एक इंजीनियर थे, और यही सोच उनके जीवन में भी आई. अच्छी पढ़ाई-लिखाई के बाद उन्होंने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग को चुना और कोलकाता, बेंगलुरु जैसे महानगरों के साथ-साथ विदेशों में भी काम करने का मौका मिला. वह बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने अनुभवी लोगों से बहुत कुछ सीखा, लेकिन फिर भी दिल में एक खालीपन था. उन्हें लगने लगा कि केवल नौकरी करना, पैसे कमाना और दिनचर्या में उलझ जाना ही जीवन नहीं है.
एक टीवी कार्यक्रम ने बदल दी दिशा
उनकी सोच में सबसे बड़ा बदलाव तब आया, जब उन्होंने एक टीवी डिबेट में देसी गायों को लेकर बहस देखी. एक पक्ष का कहना था कि देसी गायें डेयरी फार्मिंग के लिए उपयुक्त नहीं हैं, क्योंकि वे कम दूध देती हैं. उनके अनुसार, डेयरियां सिर्फ भैंसों या विदेशी नस्ल की गायों से ही सफलतापूर्वक चलाई जा सकती हैं. वहीं, दूसरा पक्ष उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और औषधीय गुणों पर जोर दे रहा था. यह बात असीम को बहुत गंभीर लगी, क्योंकि बचपन से ही वे यह पढ़ते और सुनते आए थे कि गाय में लक्ष्मी का वास होता है और वह हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. लेकिन उस कार्यक्रम में सामने आई बातें इस धारणा से बिलकुल अलग थीं.

तभी उन्होंने सोचा, "अब यह केवल सोचने की नहीं, बल्कि करके दिखाने की बात है." उन्होंने यह सिद्ध करने का निश्चय किया कि देसी गायों से भी एक लाभकारी और सफल डेयरी व्यवसाय (Dairy Business) चलाया जा सकता है.
परिवार की आशंका और शुरुआती संदेह
जब असीम रावत ने अपने माता-पिता से अपनी योजना साझा की कि वे देसी गाय पालन (Desi Cow Dairy Farming) करना चाहते हैं, तो उन्हें बहुत चिंता हुई. एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, जिसने दुनियाभर में काम किया हो, वह अब गाय पालेगा? इसके अलावा, सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री की तुलना में डेयरी सेक्टर बिल्कुल नया था. यह बात उन्हें समझ नहीं आई. लेकिन असीम ने न केवल उन्हें विश्वास में लिया, बल्कि दो देसी गायें खरीदकर काम शुरू भी कर दिया. यहीं से Hetha Organics का बीज बोया गया.

Hetha Organics की स्थापना और उद्देश्य
Hetha Organics की स्थापना दिसंबर 2015 में हुई थी, जब भारत में ‘स्टार्टअप इंडिया’ की घोषणा से ठीक एक सप्ताह पहले उन्होंने रजिस्ट्रेशन करवाया. असीम बताते हैं कि यदि यह योजना कुछ दिन पहले आई होती, तो उन्हें कुछ लाभ मिल सकते थे, लेकिन उन्होंने बिना किसी सहायता के ही अपने दम पर यह काम शुरू किया.
Hetha का उद्देश्य था –
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देसी गायों की नस्लों को बढ़ावा देना
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शुद्ध और औषधीय गुणों से भरपूर दूध और डेयरी उत्पाद तैयार करना
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भारतीय कृषि आधारित परंपरा को व्यवसाय में बदलना
भारत भ्रमण और सीखने की यात्रा
जब असीम ने यह तय किया कि वे देसी गायों पर आधारित डेयरी व्यवसाय (Dairy Business Based on Indigenous Cows) शुरू करेंगे, तो उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों का भ्रमण किया. वे यह जानना चाहते थे कि क्या कोई सफल मॉडल पहले से मौजूद है. उन्हें निराशा हाथ लगी क्योंकि ज्यादातर डेयरियां हाइब्रिड नस्लों या देसी भैंसों पर आधारित थीं. कहीं-कहीं पर शौकिया रूप में देसी नस्लें जरूर पाली जा रही थीं, लेकिन ऐसा कोई व्यावसायिक मॉडल नहीं था जो केवल देसी गायों पर टिका हो.
असीम को यह समझ आ गया कि यह काम किसी और के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. उन्होंने खुद से प्रयोग शुरू किया, जोखिम उठाया और एक मॉडल खड़ा किया.

गायों की देसी नस्लों पर काम
आज Hetha Organics देसी गायों की चार नस्लों पर विशेष रूप से काम कर रहा है:
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गिर - गुजरात की मशहूर नस्ल, अच्छी मात्रा में दूध देती है
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थारपारकर - राजस्थान की नस्ल, गर्मी सहन करने में सक्षम
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साहिवाल - पंजाब की नस्ल, उच्च गुणवत्ता और औषधीय गुण
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बद्री - उत्तराखंड की स्थानीय पहाड़ी नस्ल, दूध कम लेकिन औषधीय गुणों से भरपूर
उत्तराखंड के चंपावत जिले में तीन फार्म, और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद व बुलंदशहर में दो फार्म मिलाकर Hetha की 5 फार्म लोकेशंस हैं.
शुरुआती कठिनाइयां और आत्म-संशय
Hetha की शुरुआत में असीम रावत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा:
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आर्थिक दबाव: नौकरी छोड़ने के बाद आमदनी का कोई निश्चित स्रोत नहीं था.
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टीम बनाना: सही लोग मिलना, उन्हें प्रशिक्षण देना और वेतन देना एक बड़ा काम था.
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ग्राहकों को समझाना: लोगों को यह समझाना कि देसी गाय का दूध और उससे बने उत्पाद स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद हैं, इसलिए उनकी कीमत थोड़ी अधिक होना स्वाभाविक है - यह समझ विकसित करना आसान नहीं था.
लेकिन उन्होंने इन सभी कठिनाइयों को अपने संकल्प और धैर्य से पार किया.

130 उत्पाद और देशभर में बिक्री नेटवर्क
आज Hetha Organics 130 से अधिक प्राकृतिक उत्पाद बना रही है. इन सभी उत्पादों को वे अपनी वेबसाइट hetha.in के अलावा Amazon, Flipkart जैसी ई-कॉमर्स साइट्स पर भी बेचते हैं. वे आज अपने शुद्ध उत्पादों के लिए देशभर में पहचान बना चुके हैं.
10 करोड़ का टर्नओवर और 110+ कर्मचारियों की टीम
आज Hetha Organics का सालाना टर्नओवर 10 करोड़ रुपये से अधिक है. संस्था में 110 से अधिक लोग कार्यरत हैं, जिनमें फार्म के कार्यकर्ता, उत्पादन से जुड़े कर्मचारी, मार्केटिंग और तकनीकी विशेषज्ञ शामिल हैं.
यह सिर्फ एक आर्थिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण रोजगार और कृषि आधारित उद्योग को बढ़ावा देने की एक मिसाल है.
राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार
Hetha Organics को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. इनमें ‘राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार’ भी शामिल है. इन पुरस्कारों ने संस्था की साख को और भी मजबूत किया है और असीम रावत की सोच को मान्यता दी है.
भविष्य की योजनाएं और दृष्टिकोण
असीम रावत की सफलता का आधार देसी गायों के प्रति उनका गहरा विश्वास है और उनका मानना है कि आगे भी उनका पूरा ध्यान इसी पर केंद्रित रहेगा. वे वर्तमान में जिन चार नस्लों पर काम कर रहे हैं, उनमें और भी नस्लें जोड़ना चाहते हैं. इस विस्तार से वे देसी गायों के उत्पादों की विविधता को बढ़ा सकेंगे.
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