फाल्गुन माह की शुरूआत हो चुकी है. ऐसे में रंगों का पर्व होली भी पास ही आने वाला है. इस साल यह पर्व 28 मार्च को होलिका दहन (Holika Dahan) के साथ शुरू होगा. 22 मार्च से तो होलाष्टक शुरू हो चुके हैं. ऐसे में शास्त्रों के मुताबिक, इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने पर मनाही है. इस बार बड़ी होली 29 मार्च के दिन मनाई जाएगी. जैसे ही होलिका दहन होता है उसी दिन होलाष्टक पूरी तरह से समाप्त हो जाते है. इस साल होली के शुभ अवसर पर ग्रह-नक्षत्र पूरी तरह से बदलने वाले हैं. ऐसे में यह त्यौहार बहुत ही खास हो जाता है. जिस दिन होलिका दहन का दिन होता है उस दिन भी विशेष पूजा का समय होता है. इस होलिका दहन के पीछे खास मान्यता भी होती है. यह लोगों के लिए शुभ फल दाई भी होती है. आज हम आपको बता रहे है कि होलिका दहन के पीछे पौराणिक मान्यता क्या है.
होली के पीछे पौराणिक मान्यता (Mythological belief behind holi)
दरअसल, होलिका दहन के पीछे कईं तरह की पौराणिक मान्यता भी है, जिसपर ज़्यादातर लोग विश्वास भी करते हैं. इस पर एक कहानी है हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की. एक बार अत्याचारी राक्षस हिरण्यकश्यप ने घोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा को खुश कर उनसे अमर होने का वरदान प्राप्त कर लिया था. उसने भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि उसे संसार का कोई भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस,मनुष्य और पक्षी कोई भी न मार सके. ब्रह्मा ने उसको वरदान दे दिया और वरदान पाते ही हिरण्यकश्यप निरकुंश हो गया था. उसी दौरान भगवान विष्णु में विश्वास रखने वाला प्रहलाद जैसा भक्त उसके घर पर पैदा हुआ. प्रहलाद एक एक ऐसा बालक था जिसपर भागवान विष्णु की आसीम अनुकंपा थी और वह भगवान का परम भक्त था. उसके पिता हिरण्यकश्यप ने यह आदेश दे दिया था कि वह भगवान विष्णु का गुणगान और भक्ति न करें लेकिन प्रहलाद ने उसके आदेश को नहीं माना. प्रहलाद को बार-बार समझाने के बाद भी हिरण्यकश्यप ने यह फैसला लिया कि वह अब प्रहलाद को मार देगा और उसने इसके लिए पूरी कोशिशें शुरू कर दी.
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए कई तरह की कोशिशें की लेकिन वह नहीं मरा और हमेशा भगवान विष्णु की कृपा से बचता रहा. असुर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था. इसी बात को ध्यान में रखकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ प्रहलाद को मारने की योजना बनायी. उसने योजना बनाई कि बहन होलिका के साथ प्रहलाद को गोद में बिठाकर आग के हवाले किया जाए. योजना के मुताबिक होलिका प्रहलाद को गोद में ले जाकर बैठ गई लेकिन वहां पर सबकुछ उलट हुआ. भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद तो आग से बच गया लेकिन होलिका आग में जल गई. तभी से यह त्यौहार होलिका दहन के रुप में सभी जगह मनाया जाने लगा.
क्या होता है होलिका दहन में (What happens in Holika Dahan)
होलिका दहन के दिन जो भी पूजा होती है उसे शुभ महूर्त में किया जाता है. इस बार होलिका भद्रा लगी हुई है यानि कि इस बार होलिका दहन रात 9 बजे के बाद किया जाएगा. होलिका दहन से पहले कई तरह के नियम होते हैं जो पूजा से पहले ध्यान रखना आवश्यक है -
इस बार होलिका दहन शाम 6:37 मिनट के बाद से रात 8:56 बजे तक किया जाएगा.
होली के पूजन में नारियल और गेहूं की बालियां चढ़ाना काफी शुभ माना जाता है. यह काफी शास्त्रसम्मत माना गया है.
होलिका दहन के बाद लोग एक-दूसरे पर गुलाल लगाते हैं और उसके अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है. अगर आप होली पर तंत्र क्रिया नहीं करना चाहते हैं तो आप अपने ऊपर से गोमती चक्र को 7 बार धारण कर लें और बाद में होली में डालें. होली की भस्म को चांदी की डिबिया में भरकर तिजोरी में रखें.
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