केंद्र सरकार (Central Government) अर्थव्यवस्था (Economy) को सुधारने के लिए कई वादे और दावे कर रही है, लेकिन फिलहाल देश की अर्थव्यवस्था की हालत सुस्त ही बनी है. ऐसे में तमाम अर्थशास्त्रियों (Economists) का मानना है कि इस मंदी को मात दी जा सकती है, अगर निवेश को बढ़ा दिया जाए. बता दें कि खपत का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण उपभोग पर निर्भर रहता है, ऐसे में अगर निवेश को बढ़ा दें, तो इस मंद अर्थव्यवस्था से छुटकारा पा सकते हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए पीएम किसान सम्मान निधि (PM Kisan Samman Nidhi) जैसी योजनाएं भी कारगर साबित हो सकती हैं.
पीएम किसान सम्मान निधि की राशि
मोदी सरकार (Modi government) ने साल 2019 के आम चुनाव से पहले इस योजना की शुरुआत की थी, जिसमें हर किसान को सालभर में 3 बराबर किश्तों में कुल 6 हजार रुपये देना है. बता दें कि यह योजना साल 2018-19 के अंतिम चार महीने चली, जिसके लिए लगभग 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. इसके बाद साल 2019-20 में लगभग 75,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया गया, लेकिन इस बजट में से लगभग 54,370 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाया, क्योंकि पात्र किसानों ने काफी धीमी गति से हिस्सा लिया.
बजट में योजना की राशि को बढ़ाना चाहिए
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि पेश हुए बजट में खेती की बढ़ती लागत को देखकर इस योजना में हर साल दी जाने वाली राशि को बढ़ाकर 24 हजार रुपये कर देना चाहिए था. कई राज्य में इससे मिलती-जुलती सरकारी योजनाएं लागू हैं, जिन्हें इस योजना में ही शामिल किया जा सकता है.
ग्रामीण क्षेत्रों की क्रय शक्ति को बढ़ाएं
अगर हर किसान को सालभर में 24 हजार रुपये मिलने लगे, तो ग्रामीण क्षेत्रों में क्रय-शक्ति बढ़ जाएगी, क्योंकि खर्च बढ़ने से मांग बढ़ती है. अगर मांग बढ़ेगी, तो बिक्री, उत्पादन, रोजगार भी बढ़ेगा, जिससे सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष में ज्यादा टैक्स मिलेगा. इस राशि से ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा प्रभाव पड़ेगा, जिससे देश की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ सकती है.
पीएम किसान योजना की राशि बढ़ने से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती
पिछले साल घरेलू कंपनियों (Domestic companies) पर कॉरपोरेट टैक्स (Corporate tax) को लगभग 30 प्रतिशत से घटाकर लगभग 22 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे सरकार के ऊपर लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये का बोझ आ गया. सरकार को उम्मीद थी कि आयकर (Income tax) कम करने से कंपनियां निवेश को बढ़ा देंगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. अगर यही पैसा किसानों के लिए दे दिया जाता, तो अर्थव्यवस्था में मांग तत्काल रुप से बढ़ जाती, क्योंकि इससे निवेश की संभावनाएं और औद्योगिक उत्पादन बढ़ सकता था, साथ ही रोजगार भी बढ़ता.
ग्रामीण क्षेत्रों में राशि देने से मंद अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री का मानना है कि मंद अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाना बेहद ज़रूरी है. इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में राशि दी जानी चाहिए, तो वहीं एक रास्ता यह भी हो सकता है कि इस योजना में अगले एक साल में हर किसान का पंजीकरण और सत्यापन किया जाए.
पात्र किसानों को मिलनी चाहिए सभी किश्त
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जो भी किसान इस योजना का पात्र है, उन्हें 1 दिसंबर, 2018 से वितरित सभी किश्त का भुगतान मिलना चाहिए. अगर इस योजना के तहत आवंटित धनराशि का समय पर वितरण न हो पाए, तो बची राशि को अगले साल के बजट में जोड़ दें. इसके अलावा हर साल इस योजना की धनराशि को मुद्रास्फीति की दर में लगभग 5 प्रतिशत जोड़कर बढ़ाया जाए. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चीन ने अपने किसानों के लिए लगभग 232 अरब डॉलर की मदद की, तो हम अपने अन्नदाताओं के लिए 2-3 लाख करोड़ रुपये तो दे ही सकते हैं.
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