कभी-कभी कुछ लोग कुछ ऐसा कमाल कर जाया करते हैं, जिन्हें शब्दों में बयां करना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन होता है. कुछ ऐसा ही कमाल हरियाणा के रोहतक निवासी रासायन शास्त्री डॉ शिव दर्शन मलिक ने कर दिखाया है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन्होंने बैल के गोबर से ईंट बनाया है. इनके द्वारा बनाई गई यह ईंट अभी खासा चर्चा में है. लोगों के लिए यह विश्वास करना मुश्किल हो रहा है कि भला किसी पशु के गोबर से ईंट कैसे बनाई जा सकती है?
इतना ही नहीं, आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि पशु के गोबर से न महज ईंटें बनाई जा रही है, बल्कि इसका बड़े पैमाने पर भवन निर्माण में इस्तेमाल हो रहा है. कई राज्यों में इन ईंटों की मांग भी बढ़ चुकी है. लोग इस ईंट की अद्भुद शैली को देखकर दंग हो रहे हैं. उनके लिए यह रचना अविश्वसनीय है. आइए, अब हम आपको बताते हैं कि कैसे डॉ मलिक को पशुओं के गोबर से ईंट बनाने का विचार आया और कैसे इन्होंने अपने इस विचार को आगे चलकर मूर्त रूप दिया.
एक मंजर, जिसने बदल दी डॉ मलिक की जिंदगी और बना दिया ईंट
डॉ शिव दर्शन मलिक से हुई बातचीत के मुताबिक, जिंदगी के एक पड़ाव पर उन्होंने एक ऐसा मंजर भी देखा, जिसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी. जब एक कुल्हाडी से चोटिल हो चुके तड़पते बैल पर उनकी नजर गई, तो उस हद्यविदारक तस्वीर को देखकर उनके हदय में जिस वेदना का संचार हुआ यह ईंट बस उसी वेदना का प्रतिफल है. दर्द से कराहते उस बैल की पीड़ा को देखकर डॉ मलिक हा हदय विचलित हो उठा. इसके बाद उन्होंने यह दृढ़संकल्प लिया कि वे इस बैल से कुछ ऐसा कमाल कर दिखाएंगे कि सभी इसकी बेशकीमती को समझने पर बाध्य हो जाएंगे. डॉ मलिक बताते हैं कि इस दर्दनाक मंजर को देखने के बाद वे गौशाला से बैल लेकर आए उसका पालन-पोषण करते रहे. इस दौरान वे अनवरत उस बैल के गोबर को एकत्रित कर उसे सुखाते रहे. पहले तो उन्होंने सोचा कि वे इससे बिजली और आटा चक्की बनाएंगे.
हालांकि, वे अपने इस काम में भी सफल रहे, लेकिन आर्थिक दृष्टिकोण से अधिक महंगी होने के कारण उन्होंने इसे आगे बढ़ाने की योजना को टाल दिया. इस बीच उनका अमेरिका जाना हुआ, जहां हेम क्रि और बोर्ड से बने मकानों की ओर उनकी नजर गई. अमेरिका में बोर्ड से बने मकानों को ध्यान से देखने के बाद डॉ मलिक के जेहन में यह ख्याल आया कि जब वहां बोर्ड से मकान बनाए जा सकते हैं, तो हमारे यहां गोबर से ईंटें क्यों नहीं बनाई जा सकती है. बस, फिर क्या था, डॉ मलिक अपने इस विचार को मूर्त रूप देने की कोशिश में जुट गए और प्रतिदिन बैल के गोबर को एकत्रित कर उसे सूखाना शुरू कर दिया, जिससे वे ईंटे बनाते चले गए.
इस तरह उन्होंने धीरे-धीरे बैल के गोबर से ईंटे बनाना शुरू कर दिया. वे गोबर को सूखाते गए और उससे ईंटे बनाते गए. उनके द्वारा बनाए गए इस ईंट में 80 फीसद गोबर व 20 फीसद चूना, मिट्टी, ग्वार, नींबू का रस समेत अन्य पदार्थ शामिल हैं. इस तरह से जब उनके पास ईंटों का विशाल अंबार एकत्रित हो गया, तो इनके जेहन में घर बनाने का विचार मन में आया. अब तक वे इससे दो घर बना चुके हैं.
बेहद खास हैं इन ईंटों से बने घर
आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि डॉ मलिक द्वारा बनाए गए बैल के गोबर के ईंटों से बना घर अन्य घरों की तुलना में बेहद अलग है. इन ईंटों से बने घरों को न तो तेज धूप से कोई फर्क पड़ता है और न ही ठंड से कोई फर्क प़ड़ता है. इन ईंटों से बनाए गए घर मौसम के बिल्कुल अनुकूल हैं, जिसमें कोई भी व्यक्ति बेहद सहजता रह सकता है.
प्रयोगशाला की जांच में रहा बिल्कुल सफल
यहां हम आपको बताते चले कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह ईंट बिल्कुल सुरक्षित है. यह प्रयोगशालाओं की जांच में भी बिल्कुल सुरक्षित पाई गई है. हरियाणा के सोनिपत स्थित माइक्रो इंजीनियरिंग और टेस्टिंग प्रयोगशाला में फरवरी माह में कराई गई जांच में यह बिल्कुल सुरक्षित पाई गई. प्रयोगशालाओं की जांच खुद इस बात की पुष्टि करती है कि इस ईंट पर न पानी का फर्क पड़ता है, न धूप का और न ही सर्दी का. प्रयोगशाला की जांच के मुताबिक, 350 डिग्री सेंटीग्रेड पर भी यह ईंट बिल्कुल सुरक्षित है. इसमें आग लगने का भी कोई खतरा नहीं है.
आहिस्ता-आहिस्ता अब प्रचारित हो रही यह ईंट
डॉ शिव मलिक के मुताबिक, अब य़ह ईंट धीरे-धीरे प्रचारित हो रही है. डॉ मलिक खुद लोगों को बैल के गोबर से ईंटे बनाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं. अब अन्य राज्यों में भी ऐसी ईंटों की मांग हो रही है. भवन निर्माणकर्ताओं की तरफ से लगातार इन ईंटों की मांग की जा रही है.
ऐसे में जब लाल ईंटों का दबदबा बाजार में अपने चरम पर है, तो ऐसे में माना जा रहा है कि अगर यह सिलसिला यूं ही जारी रहा, तो फिर गोबर से बनी इन ईंटों की मांग आने वाले दिनों में बढ़ सकती है. अब तो भवन निर्माणकर्ता भी इन ईंटों की आपूर्ति का इंतजार कर रहे हैं.
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