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भारत में कितने मजबूर है किसान, जानें क्या है जमीनी हकीकत और समाधान!

भारत में 85% किसान छोटे और सीमांत हैं, जिन्हें उचित मूल्य, प्राकृतिक आपदाओं और बढ़ती कृषि लागत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. सरकारी योजनाएँ प्रभावी नहीं हो पातीं. समाधान के लिए संगठित खेती, डिजिटल मार्केटिंग, जलवायु-स्मार्ट कृषि, सस्ते ऋण, और तकनीकी प्रशिक्षण जरूरी है ताकि किसान आत्मनिर्भर बन सकें.

KJ Staff
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भारत में किसानों की समस्याएं: जमीनी हकीकत और समाधान

भारत की आत्मा गांवों में बसती है और गांवों की रीढ़ किसान हैं. लेकिन जिस कृषि पर देश की आधी से ज्यादा आबादी निर्भर है, वही आज अनेक समस्याओं से घिरी हुई है. किसानों की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है और उनकी समस्याओं का समाधान करने के प्रयास अभी भी अधूरे दिखते हैं. सरकारें बदलती रहीं, नीतियां बनती रहीं, लेकिन क्या सही मायनों में किसान को उसका हक मिला? इस सवाल का जवाब आज भी अधूरा है.

किसानों की प्रमुख समस्याएं

  1. छोटे और सीमांत किसानों की दयनीय स्थिति

भारत में लगभग 85% किसान छोटे और सीमांत हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है. ऐसे किसानों के लिए आधुनिक तकनीक अपनाना मुश्किल होता है. भूमि के छोटे टुकड़े होने के कारण वे बड़े स्तर पर खेती नहीं कर पाते, जिससे उनकी उत्पादकता और आय सीमित रहती है.

  1. बाजार में उचित मूल्य न मिलना

किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता. बिचौलियों का वर्चस्व और बाजार की अनियमितताएं किसानों के आर्थिक शोषण का प्रमुख कारण हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी सभी फसलों पर लागू नहीं है और जिन फसलों पर लागू है, वहाँ भी किसानों को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता.

  1. प्राकृतिक आपदाएं और जलवायु परिवर्तन

भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर अत्यधिक निर्भर है और हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में अस्थिरता बढ़ गई है. कभी सूखा, कभी बाढ़ और कभी असमय बारिश किसानों की फसलों को तबाह कर देती हैं. आधुनिक तकनीकों और जल प्रबंधन की कमी के कारण किसान इन आपदाओं से निपटने में असमर्थ रहते हैं.

  1. बढ़ती कृषि लागत और कर्ज का बोझ

बीज, उर्वरक, कीटनाशक, डीजल और बिजली की बढ़ती कीमतें किसानों के लिए बड़ा संकट बन गई हैं. लागत बढ़ने के बावजूद उत्पादों की कीमत स्थिर या कम बनी रहती है, जिससे किसान घाटे में चले जाते हैं. ऐसे में वे महंगे ब्याज दरों पर कर्ज लेते हैं और समय पर भुगतान न कर पाने की स्थिति में आत्महत्या तक करने को मजबूर हो जाते हैं.

  1. सरकारी योजनाओं का अधूरा क्रियान्वयन

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किसानों के लिए कई योजनाएँ चलाई जाती हैं, लेकिन उनका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता. भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और जानकारी के अभाव में इन योजनाओं का वास्तविक लाभ किसानों तक नहीं पहुँचता.

समाधान की राह

किसानों की समस्याओं का समाधान केवल सरकारी नीतियों से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है.

  1. संगठित खेती को बढ़ावा देना – छोटे किसानों को सहकारी खेती (Cooperative Farming) के माध्यम से संगठित किया जाए ताकि वे बड़े स्तर पर उत्पादन कर सकें और अधिक लाभ कमा सकें.
  2. सीधे बाजार से जोड़ना – किसानों को ई-नाम (e-NAM) और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से सीधा बाजार उपलब्ध कराया जाए, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो सके.
  3. जलवायु-स्मार्ट कृषि अपनाना – आधुनिक सिंचाई तकनीकें, जल संरक्षण उपाय और मौसम आधारित खेती को बढ़ावा देना जरूरी है.
  4. किसानों की वित्तीय सशक्तिकरण – किसानों को सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जाए और कृषि बीमा योजनाओं को पारदर्शी बनाया जाए.
  5. तकनीकी प्रशिक्षण और जागरूकता – किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों, जैविक खेती और नई वैज्ञानिक विधियों के बारे में शिक्षित किया जाए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें.

निष्कर्ष:

भारतीय किसान केवल अन्नदाता नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माता भी हैं. उनकी समस्याओं को नजरअंदाज करके देश की प्रगति संभव नहीं. यदि सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और समाज मिलकर किसानों को सशक्त करने के लिए एक ठोस रणनीति अपनाएं, तो भारतीय कृषि फिर से समृद्ध हो सकती है और किसान आत्मनिर्भर बन सकते हैं. देश की असली उन्नति तभी होगी जब हर किसान खुशहाल होगा.

लेखक:  रबीन्द्रनाथ चौबे
ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण, बलिया, उत्तर प्रदेश

English Summary: Indian farmers ground reality and solutions Published on: 18 February 2025, 05:35 PM IST

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