हिन्दू धर्म के सभी व्रतो में एकादशी व्रत का अपना एक अलग ही महत्व है. एक साल मे 24 एकादशी होती है और जिस साल अधिकमास या मलमास होता है उस साल एकादशी कि संख्या बढ़ के 26 हो जाती है. हिन्दू मान्यता के अनुसार आषाढ़ के शुक्लपक्ष के एकादशी को भगवान विष्णु योग निंद्रा में चले जाते है. इसके बाद चातुर्मास के समाप्त होने पर कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन नारायण इस निद्रा से जागते हैं उसी दिन को देवोत्थान, प्रबोधिनी या देव उठावनी एकादशी के रूप में इसे मनाया जाता है.
भगवान को जगाने का श्लोक
भगवान विष्णु को चार मास की योग निद्रा से जागृत करने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के साथ निम्नलिखित श्लोक पढकर जगाया जाता है।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमंगलम्कुरु॥
जो भक्त हिन्दी नहीं बोल पाते है वे भक्त उठो देवा, बैठो देवा का उच्चारण कर श्री नारायण को जगा सकते है.
शुद्ध मन से करें पूजा
प्रबोधिनी या देव उठावनी एकादशी के दिन श्रीहरि की षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है। भक्त प्रातःकाल मे उठकर शुद्ध मन से श्रीहरी के पूजा का संकल्प ले उसके बाद विभिन्न प्रकार के फलो से भोग लगाए. संभव हो तो उपवास रखें अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करें। इस एकादशी में रातभर जाग कर कीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हो जाते हैं। चार मास से रुके हुए विवाह आदि मांगलिक कार्यो का आरंभ इसी दिन से होता हैं
एकादशी का महत्व
हिन्दू समाज में ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है. पद्मपुराण मे बताया गया है कि श्री हरि प्रबोधिनी यानि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलता है। इस के विधिवत व्रत से सब पाप भस्म हो जाते हैं तथा व्रत करने वाला मरने के बाद बैकुण्ठ जाता है। इस एकादशी के दिन जप तप, स्नान दान, सब अक्षय फलदायक माना जाता है।
प्रभाकर मिश्र, कृषि जागरण
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