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Chhath Puja 2022: सबसे पहले किसने रखा छठ व्रत, बांस के बने सूप का क्यों होता है इस्तेमाल

प्राचीन काल से ही बांस को शुद्धता, सुख-समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक माना जाता रहा है. शास्त्रों के अनुसार बांस के बने सूप का विशेष महत्व है

मोहम्मद समीर
28 अक्टूबर से छठ महापर्व की शुरूआत हो जाएगी
28 अक्टूबर से छठ महापर्व की शुरूआत हो जाएगी

कल 28 अक्टूबर से छठ महापर्व की शुरूआत हो जाएगी. बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल सहित देश के कई हिस्सों में यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा. आज हम आपको बताएंगे कि छठ में आख़िर बांस की टोकरी या सूप का इस्तेमाल क्यों किया जाता है.

सूर्य को अर्घ्य देने के लिए होता है इस्तेमाल-

छठ पूजा के दौरान सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए बांस से बने सूप, टोकरी या देउरा में फल वग़ैरह रखकर छठ घाट पर ले जाया जाता है. महिलाएं इसी के ज़रिए सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं और छठी मइया को भेंट भी करती हैं.

बांस से बने सूप का शास्त्रों से है संबंध-

दरअसल सनातन संस्कृति में प्राचीन काल से ही बांस को शुद्धता, सुख-समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक माना जाता रहा है. शास्त्रों के अनुसार बांस के बने सूप का विशेष महत्व है. मान्यता है कि सूर्य को सूप से अर्घ्य देने से सूर्य देव परिवार की हर विपदा से रक्षा करते हैं. मान्यताएं ऐसी भी हैं कि जिस तरह मिट्टी में बांस बग़ैर किसी रुकावट के बढ़ता है ठीक उसी तरह वंश का भी तेज़ी से विस्तार होता है.

सबसे पहले सीता और श्रीराम ने किया व्रत-

छठ पर्व की महानता और प्राचीनता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पर्व का ज़िक्र अथर्व वेद में भी मिलता है. ये एकलौता ऐसा त्यौहार है जिसमें डूबते सूर्य की उपासना होती है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़ इस महाव्रत को सबसे पहले सतयुग में भगवान राम और सीता ने किया. महाभारत काल में कुंती ने और द्रौपदी ने सूर्य अराधना की थी. 

ये भी पढ़ें- इस दिन शुरू हो रही छठ पूजा और यह दिन होता है ख़ास, जानें सबकुछ

छठ पूजा 2022:

इस साल लोक आस्था के पर्व छठ की शुरूआत 28 अक्टूबर को हो रही है और 31 तारीख़ को इस पर्व का समापन होगा. छठ महापर्व कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है.

सबसे ख़ास माने जाने वाले इस व्रत में 36 घंटे तक निर्जला रहना होता है. यह व्रत संतान के लिए रखा जाता है. छठ पूजा के दिन षष्ठी मैया व सूर्यदेव की पूजा-अर्चना की जाती है. 

ये है छठ पूजा का क्रम-

नहाय-खाय (पहला दिन):

पहले दिन यानि नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरूआत होती है. नहाय खाय के दिन व्रत रखने से पहले बस एक ही बार खाना होता है. उसके बाद नदी में स्नान करना होता हैं. इस बार नहाय-खाय 28 अक्टूबर को है.

खरना (दूसरा दिन):

छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना नाम से जाना जाता है. खरना के दिन सूरज निकलने (Sunrise) से लेकर सूरज डूबने (Sunset) तक महिलाएं व्रत रखती हैं. सूर्यास्त के तुरंत बाद व्रत तोड़ा जाता है फिर पकवान बनाया जाता है. भोजन तैयार होने के बाद सूर्य को भोग लगाया जाता है. छठ पर्व का तीसरा दिन दूसरे दिन के प्रसाद के बाद ही शुरू हो जाता है. खरना यानि दूसरा दिन 29 अक्टूबर को है.

अर्घ्य (तीसरा दिन):

तीसरे दिन यानि अर्घ्य के दिन को छठ पूजा में सबसे अहम माना जाता है. इस दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बांस के सूप को चावल के लड्डू, फल, ठेकुआ वग़ैरह से सजाया जाता है. व्रती सपरिवार सूर्व भगवान को अर्घ्य देता है. इस दिन डूबते हुए सूरज की अराधना होती है.  सूर्यदेव को अर्घ्य देने की परम्परा सदियों से चली आ रही है. पहला अर्घ्य इस बार 30 अक्टूबर को है .

उषा अर्घ्य (चौथा दिन):

36 घंटे व्रत के बाद यह अर्घ्य उगते हुए सूरज को दिया जाता है. उषा अर्घ्य 31 अक्टूबर को छठ के अंतिम दिन होता है. ये छठ का आख़िरी दिन है. इस दिन सूर्योदय का समय सुबह 6 बजकर 31 मिनट होगा.

English Summary: importance of bamboo basket on chhath puja Published on: 27 October 2022, 05:38 PM IST

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