बुद्ध पुर्णिमा को महात्मा बुद्ध की जयंती के रुप में बनाया जाता है। आज गौतम बुद्ध की 2580वीं जयंती मनाई जाएगी। इस दिन को बौद्ध धर्म के अनुयायी विश्वभर में बडे धूम-धाम से मनाते है। संस्कृत कैलेंडर के अनुसार इस दिन को वैसाख पुर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। महात्मा बुद्ध जी का जन्म,ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वार्ण तीनो आज ही के दिन अर्थात वैसाख पुर्णिमा को हुए थे। हिन्दु धर्म के लोगो के लिए भगवान बुद्ध विष्णु के 9 वे अवतार थे। अत: हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।
महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु लुम्बिनी मैथिला(नेपाल का पुराना नाम) के राजपरिवार मे हुआ था। उनके पिता मैथिला के राजा थे। महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ गैतम है। उनके पिता का नाम शुद्धोधन एंव माताजी का नाम मायादेवी था। कथा है की उनके जन्म पर उनके नामकरण के लिए उनके पिताजी ने ज्योतिषि को बुलवाया और बच्चे का भविष्य जाना चाहा। तो इस पर ज्योतिषि ने कहा आपका पुत्र या तो एक अजेय योद्धा होगा या फिर एक महान संन्यासी जो संसार को ज्ञान और सत्य के मार्ग पे ले जाएगा। किन्तु राजकुमार सिद्धार्थ के पिताजी उन्हे एक श्रेष्ठ राजा ही बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होने राजकुमार सिद्धार्थ को बचपन से ही सभी सुख-सुविधाओ और भोगविलास से युक्त रखा।
राजकुमार सिद्धार्थ के आसपास सदैव सुंदर स्त्रियो अथवा दासियों का जमावडा रहता था। जो उनकी हर जरुरत को पुरा करने के लिए सदैव त्तपर रहती थी। यह खाश इंतजाम उनके पिता ने इसलिए किए क्योंकी वह सिद्धर्थ को संसार के दुखो. से बचाना चाहते थे। संसार के कठोर सत्यो से उन्हे दुर रखना चाहते थे। परंतु एक दिन सिद्धार्थ ने बाहर जाने कि इच्छा जताई उन्होने अपने पिता से कहा की वह अपने राज्य का भ्रमण करना चाहते है। इस पर उनके पिता ने अपने कुसल रथ और सारथी को सिद्धार्थ को भ्रमण कराने का आदेश दिया।
अपनी यात्रा में उन्होने सबसे पहले वृद्ध आदमी को देखा जो जोर-जोर से खांस रहा था। उन्होने अपने सार्थी से प्रश्न किया की यह व्यक्ति कौन है? इसका शरीर इतना कमजोर क्यों है? सार्थी ने उत्तर दिया की यह व्यक्ति बूढा हो चुका है। बुढापे में बीमारियां आम है। सभी लोग इस अवस्था से गुजरते है। तो सिद्धार्थ ने मन ही मन प्रशन किया क्या मै भा बूढा होंग?,क्या मै भी बीमार पडूंगा? आगे उन्होने एक मृत व्यक्ति को देखा यात्रा के अंत के दौरान उन्होने एक संन्यासी को पेड के नीचे तप करते हुए देखा। उस संन्यासी के चेहरे पर एक विचित्र सी मुस्कान थी। यहीं से सिद्धर्थ ने एक संन्यासी बनने का निर्णय लिया।
यहीं से सिद्धर्थ की महात्मा बुद्ध बनने की यात्रा आरंभ हुई। 27 वर्ष की उम्र में उन्होने घर छोड दिया और संन्यास ग्रहण कर संन्यासी बन गए। उन्होने एक पीपल के पेड के नीचे ज्ञान की खोज में छ: वर्षो तक कठोर तपस्या की जहां उन्हे सत्य का ज्ञान हुआ जिसे 'संबोधी' कहा गया। उस पीपल के पेड को तभी से बोद्धिवृक्ष कहा जाता है।
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला संदेश सारनाथ में दिया एंव बौद्ध पंथ की स्थापना की। महात्मा बुद्ध जी के अनुसार पवित्र जीवन बिताने के लिए मनुष्य को दोनो प्रकार की अति से बचना चाहिए ना तो उग्र तप करना चाहिए और ना ही सांसारिक सुखो में लगे रहना चाहिए,उन्होने मध्यम मार्ग पर बल दिया,वह अपने शिष्यो से हमेशा कहा करते थे की उन्होने किसी नए धर्म की स्थापना नही की है तथा यह धर्म हमेशा से चला आ रहा है। यह तो सनातन सत्य है। महात्मा बुद्ध ने बौद्ध संघो की स्थापना की जिसमे सभी जातियो के पुरुष एंव महिलाओं को प्रवेश दिया गया। बौद्ध संघ बहुत ही अनुशासनबद्ध और जनतांत्रिक संगठन थे।
धर्म की शिक्षाओं को तीन ग्रंथो में एकत्र किया गया जिन्हे त्रिपटिक कहते है। बुद्ध ने जात-पात,ऊंच-नीच के भेदभाव तथा धार्मिक जटिलता को गलत बताया।
पुर्णिमा के समारोह व पूजा की विधि
श्रीलंकाई इस दिन को वेसाक उत्सव के रुप में बनाते है। जो वैसाख शब्द का अपभ्रंश है।
इस दिन बौद्ध घरो में दीपक जलाए जाते और फूलो को घरो से सजाया जाता है।
दुनियाभर से बौद्धधर्म के अनुयायी बोद्धगया आते है और प्रर्थनाएं करते है।
बौद्ध धर्म के ग्रंथो का निरंतर पाठ किया जाता है।
मंदिर व घरो मे अगरबत्ती जलाई जाती है मूर्ति पर फल-फूल चढाए जाते है। और दीपक जलाकर पूजा की जाती है।
इस दिन मांसाहार का परहेज होता है। क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे।
गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते है।
पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश मे छोड दिया जाता है।
दिल्ली संग्रहालय इस दिन बुद्ध की अस्थियो को बाहर निकालता है। जिससे बौद्ध धर्मावलंबी वहां आकर प्रार्थना कर सके।
-भानु प्रताप
कृषि जागरण
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