भारत रत्न और देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की आज जयंती है. उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था तथा लम्बी बीमारी के बाद 16 अगस्त 2018 को एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में 5 बजकर 5 मिनट पर उनका निधन हो गया था. पूर्व प्रधानमंत्री के निधन से देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में शोक की लहर फैल गई थी. कई पड़ोसी मुल्कों ने ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी जी के निधन पर शोक प्रकट किया था.
राजनीतिक जीवन
अटल बिहारी वाजपेयी जी मई 1996 में पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन इस बार वो सिर्फ 13 दिनों तक ही अपनी सरकार चला सके. इसके बाद वो 1998 में फिर से देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन इस बार भी वो ज्यादा दिनों तक अपनी सरकार नहीं चला पाये और 13 महीने में ही उनकी सरकार गिर गई. अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में एक बार फिर से भारत के प्रधानमंत्री बने और इस बार उन्होंने पहली बार अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया. गौरतलब हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पहले ऐसे नेता थे जो कांग्रेसी नहीं थे.
गौरतलब है कि 1977 के आम चुनावों में ‘जनता पार्टी’ की जीत के बाद वह प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के कैबिनेट में पहली बार विदेश मंत्री बने. विदेश मंत्री के रूप में, उस वर्ष वाजपेयी जी संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण देने वाले पहले व्यक्ति बने थे. अटल जी 33 साल की उम्र में पहली बार 1957 में बलरामपुर से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. वाजपेयी 10 बार लोकसभा सांसद के लिए चुने गए, जबकि वो 2 बार राज्यसभा से सांसद भी रहे. साल 2004 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद 2005 में अटल जी ने राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी थी.
अटल जी का जन्मदिन हो, तो भला उनकी कविताओं को कैसे भूला जा सकता है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं आज भी कई बड़ें मंचों पर पढ़ी जाती हैं; ‘दूध में दरार पड़ गई’ से लेकर ‘झुक नहीं सकते’ कविताओं को लोग बड़े आनंद के साथ सुनते और पढ़ते हैं. यहां पेश हैं उनकी कुछ कविताएं:
1. दूध में दरार पड़ गई
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया.
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई.
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.
बात बनाएं, बिगड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
2. झुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अँधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अन्तिम अस्त होती है।
दीप निष्ठा का लिए निष्कम्प
वज्र टूटे या उठे भूकम्प,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध,
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।
किन्तु फिर भी जूझने का प्रण,
पुन: अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की माँग अस्वीकार।
दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते;
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
(सन् 1975 में आपातकाल के दिनों कारागार में लिखित रचना)
3. दो अनुभूतियां
पहली अनुभूति
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
दूसरी अनुभूति
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
4. कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
5. मनाली मत जइयो
मनाली मत जइयो, गोरी
राजा के राज में.
जइयो तो जइयो,
उड़िके मत जइयो,
अधर में लटकीहौ,
वायुदूत के जहाज़ में.
जइयो तो जइयो,
सन्देसा न पइयो,
टेलिफोन बिगड़े हैं,
मिर्धा महाराज में.
जइयो तो जइयो,
मशाल ले के जइयो,
बिजुरी भइ बैरिन
अंधेरिया रात में.
जइयो तो जइयो,
त्रिशूल बांध जइयो,
मिलेंगे ख़ालिस्तानी,
राजीव के राज में.
मनाली तो जइहो.
सुरग सुख पइहों.
दुख नीको लागे, मोहे
राजा के राज में.
6. एक बरस बीत गया
झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया.
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