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हरियाणा की खट्टर सरकार की तर्ज पर अब उत्तर प्रदेश सरकार भी पानी के भू-स्तर को लेकर चिंता में है. सरकार भी पानी के गिरते स्तर को रोकने के लिए नए तरीके को अपनाने जा रही है. हरियाणा सरकार ने राज्य में भू-जल के स्तर को गिरने से रोकने के लिए जो योजना बनाई है उसमें धान की खेती को छोड़कर पानी की कम खपत वाली फसलें उगाने वाले किसानों को सरकार नकद सहायता देती है.
सरकार ड्रिप तकनीक को बढ़ावा देगी
धान की फसल के बदले सरकार मक्का, दलहन और तिलहन को बढ़ावा देने पर जोर देगी. इससे इलाके में ज्यादा जल दोहन को रोकने में मदद मिलेगी. अत्याधिक जल के दोहन होने से हरियाणा के जिले डार्क जोन में आ गए हैं जो कि ठीक संकेत नहीं है. उत्तर प्रदेश सरकार भी राज्य के वेस्ट हिस्से में बढ़ते जल संकट को देखते हुए स्र्प्रिंकल इरिगेशन सिस्टम को बढ़ावा देने का काम कर रही है. सरकार की कोशिश से 3 लाख हेक्टेयर जमीन को ड्रिप इरिगेशन से सिंचित करने में कामयाबी मिल पाई है. इस कार्य के लिए सरकार किसानों को सब्सिडी भी उपलब्ध करवा रही है.
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गांव का पानी गांव में जाएगा
यहां पर किस फसल को कितनी मात्रा में पानी दिया जाएगा इसकी जानकारी को देने के लिए किसानों को केंद्र सरकार के एम पोर्टल के साथ जोड़ा जा रहा है. अभी तक कुल 30 लाख किसान इससे जुड़ चुके है. ज्यादातर इसमें गन्ना किसान शामिल है. यहां पर एक संगोष्ठी का आयजोन करके किसानों को बताया जा रहा है कि किस तरीके से जीवन में जल का महत्व है. सरकार 'गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में' इस योजना पर काम कर रही है. हाल ही में हुए सर्वेक्षण में पता चला है कि गन्ने की फसल को इतने ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है. गन्ने के खेतों में जो जरूरत से अधिक पानी दिया जा रहा है उसको रोकने की जरूरत है.
अन्य विकल्पों पर ध्यान
अगर वेस्ट यूपी के बारे में बात करें तो यहां पर भू-जल का ग्राफ लगातार गिरता ही जा रहा है. अगर वक्त रहते कदम नहीं उठाया गया तो हालात खतरनाक स्तर पर जा सकते है. यहां पर भू-जल का स्तर हर साल 91 सेंटीमीटर तक गिर रहा है. कई जगहों पर यह 200 फीट से भी ज्यादा पहुंच गया है. इसके अलावा कुंओं का अस्तित्व समाप्त हो चुका है. यहां के तालाब अवैध कब्जों की भेंट चढ़ गए है. इसीलिए उत्तर प्रदेश सरकार जल के लिए वैकल्पिक उपायों पर काम कर रही है. सरकार ऐसी फसलों को उगाने को प्रोत्साहित कर रही है जिसमें कम पानी की जरूरत हो.
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