केन्द्र सरकार के कृषि बिल का एक बार फिर किसानों ने पुरजोर तरीके से विरोध किया है. इसके लिए लगभग 50 हजार किसानों ने दिल्ली की तरफ कूच किया है. हालांकि कई लोगों अभी यह नहीं पता है कि आखिर केन्द्र सरकार का नया कृषि बिल (Krishi Bill )है क्या? और इसका इतने व्यापक तरीके से विरोध क्यों हो रहा है? तो आइए जानते हैं आसान भाषा में कृषि बिल के बारे में.
कृषि बिल क्या है?(What is krishi bill 2020 )
नए कृषि कानूनों को सरकार कृषि सुधार बिल बता रही है. इसमें पहला बिल है एक कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020. यह कानून किसानों और व्यापारियों को एपीएमसी मंडी से बाहर फसल बेचने की आजादी देता है. इस बिल को लेकर सरकार का मानना है कि वह मंडियों को बंद नहीं कर रहे हैं बल्कि किसानों मंडी से बाहर उपज बेचने से अच्छे दाम मिल सकते हैं. दूसरा बिल है कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वाशन तथा कृषि सेवा पर करार कानून 2020. यह कानून कृषि बिजनेस फार्म, फार्म सेवाओं, कृषि उत्पादों की बिक्री, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों को किसानों के साथ जुड़ने का अधिकार देता है. सरल शब्दों में समझे तो यह एक तरह से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की आजादी देता है. यानि कि किसान बड़ी कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट बेस्ड खेती कर सकते हैं. वहीं तीसरा बिल आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून है.
क्यों हो रहा है कृषि बिल का विरोध-
दरअसल, किसानों का मानना है कि पहला बिल जिसमें किसानों और व्यापारियों को अपनी उपज मंडी बाहर बेचने की आजादी होगी, यह मंडियों को खत्म कर देगा. जिससे निजी कंपनियां मनमानी करेंगी और उन्हें उनकी फसल का अच्छा दाम नहीं मिलेगा. स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव का कहना है कि यह बात सही है कि मंडियों में आज कई तरह की परेशानी है. सरकार का नया कानून किसानों उनकी फसल बड़े कारोबारियों को बेचने की इजाजत तो देता है,
लेकिन यह नहीं बताता है कि जो किसान अपनी उपज का मंडियों में मोलभाव नहीं कर सकता वह बडे़ व्यापारियों से कैसे डील कर पाएगा. इसी तरह अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह का कहना है कि दूसरे बिल को लेकर सरकार एक राष्ट्र, एक मंडी की बात तो करती है, लेकिन जो किसान अपनी उपज को एक अपने जिले में ही आसानी से नहीं बेच सकता है दूसरे जिले या दूसरे राज्य में कैसे बेच पाएगा. कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि निजी कंपनियां यही चाहती हैं कि मंडियां समाप्त हो जाएं. देशभर के किसानों को भी इसी बात का डर है. ऐसे में जब मंडियां खत्म हो जाएगी तो एमएसपी भी खत्म हो जाएगी. एक तरह से सरकार अब प्राइवेट सेक्टर कृषि क्षेत्र में लाना चाहती है. जबकि भारत से पहले अमेरिका और यूरोप में योजना फेल हो चुकी है. वहां सब्सिडी मिलने के बावजूद किसान संकट में है.
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